SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 549
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ व्यक्तित्व और कृतित्व ] [ ५०५ एकेन्द्रियों में स्थितिकाण्डक व अनुभागकाण्डक घात का अस्तित्व व प्रमाण शंका-क्या एकेन्द्रियों में भी स्थितिकाण्डकघात तथा अनुभागकाण्डक होते हैं ? इससे वे कितना अनुभाग घातित करते हैं ? उनके अपकर्षण व उत्कर्षण कियस्प्रमाण होते हैं ? . समाधान-जब कोई चतुःस्थानिक अनुभागकी सत्तावाला पंचेन्द्रियजीब मरकर एकेन्द्रियों में उत्पन्न होता है तो उसके तब तक अनुभागकाण्डकघात व स्थितिकाण्डकघात होता है जब तक कि अनुभाग द्विस्थानिक और स्थितिसत्त्व एकसागर न रह जावे । अनुभामकाण्डकघात तो अनन्त बहुभाग का होता है, किंतु उत्कर्षण व अपकर्षण षट्स्थानपतित वृद्धि-हानिरूप होता है। -पत 16-12-78/1/ज. ला. जन, भीण्डर अनुभागकाण्डकघात में कौनसा अनुभाग घातित होता है ? शंका-अनुभागकाण्डकघात में बद्ध का घात विवक्षित है सत्त्वस्थ का? क्या उस समय जघन्य अनुभाग मी घातित होकर उसका ( जघन्य का) अनन्तगुणाहीन अवशिष्ट रह जाता है या उत्कृष्ट एवं उत्कृष्ट के समीप बाले अनुस्कृष्ट ही अनुभागस्पर्धक घातित होते हैं? . समाधान-अनुभागकाण्डकघात में सस्वस्थित अनुभाग का घात ही होता है। उस समय जिस जिस स्पर्धक में तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट अनुभाग है उसका घात होकर अनन्तगुणाहीन हो जाता है । अनुभागकाण्डकघात होने पर जो अनभाग शेष रहता है अब वह उत्कृष्ट कहलाता है। जैसे अनेक प्यालों में भिन्न-भिन्न तापक्रम वाला जल है। किसी में २००.C, किसी में १९०°C, किसी में १८५°C, अन्य में १७५° C, अन्य में १४५°C, अन्य में १५०.c: इतर में १४०°C इत्यादि। अब अनुभागकाण्डकघात होने पर जिनमें १५०°C से अधिक तापक्रम था उनका तापक्रम घातित होकर १५०°C रह जाता है। जिनका तापक्रम १५०°C से कम या १५०.cहै उनके तापक्रम का घात नहीं होता। बन्ध होने पर एक आवलि काल तक तो घात होता नहीं; ऐसा सर्वत्र ध्यान रखना चाहिए। -पतावार 4-12-78/1/ज. ला. जैन, भीण्डर अनुभाग पायुकर्म का "अनुभाग" शंका-आयु का अनुभाग क्या है ? समाधान-पायुकर्म में अनुभाग बन्ध का क्या कार्य है, इसका स्पष्ट कथन प्रागम में मेरे देखने में नहीं भाया है । अनुमान या युक्ति से कवन करना उचित नहीं है, उसमें भूल हो सकती है। -ज.ग. 20-4-72/IX/ यापाल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012009
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages918
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy