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________________ व्यक्तित्व और कृतित्व ] [ ४६६ इस ज्ञान को जो आवरण करता है वह ज्ञानावरणकर्म है । "मोहयतीति मोहनीयम्।" ( धवल पु० ६ पृ० ११) अर्थ-जो मोहित करता है वह मोहनीय कर्म है । पर पदार्थों का ज्ञान न होना यह ज्ञानावरण का कार्य है. किन्तु जानकर उनमें इष्ट, अनिष्ट अर्थात अच्छेबरे की कल्पना करना मोहनीयकर्म का कार्य है। जैसे एक की अाँख में मोतियाबिन्दु हो गया को निकट से जानता है, किन्तु जिसको जानता है उसको यथार्थ जानता है। दूसरे की आंख में पीलिया रोग हो गया। वह सूक्ष्म व दूरवर्ती पदार्थों को जानता तो है, किंतु धवल को भी पीला जानता है अर्थात् अयथार्थ जानता है। -ज. ग. 26-2-70/IX/रो. ला. मित्तल सर्वघाति निद्रादिक के उदय में साधु की स्थिति-सुप्त शंका-जबकि वर्शनावरण की निद्रा आदि ५ प्रकृतियाँ सर्वघाती हैं तो साधु के जब उनका अन्तमुंहतं तक उदय होता है तब साधु की क्या स्थिति होती है ? समाधान-निद्रा आदि ५ प्रकृतियां सर्वघाती हैं अतः इनका उदय होने पर दर्शनोपयोग का घात हो । जाता है और छद्मस्थों के ज्ञानोपयोग, दर्शनोपयोग पूर्वक होता है, इसलिये दर्शन के अभाव में ज्ञान भी नहीं हो पाता। उस समय साधु की सुप्त अवस्था होती है। निद्रा आदिक के उदय का काल जघन्य से एक समय और उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त है । निद्रा का यदि अल्पकाल के लिये उदय होता है तो वह पकड़ में नहीं पाता। -ज.ग. 5-1-78/VIII/शान्तिलाल शंका-संदेह की उत्पत्ति में कारणभूत कर्म मोहनीय व ज्ञानावरण हैं शंका-शंका, संशय, संदेह यह तीनों व्यक्ति में क्यों उत्पन्न होते हैं ? इनको उत्पत्ति में मुख्य क्या कारण है ? समाधान-प्रयोजन भूत तत्त्वों में शंका, संशय, संदेह दर्शन मोहनीय व ज्ञानावरण कर्मोदय के कारण उत्पन्न होते हैं यह तो अंतरंग कारण है। अयथार्थ उपदेश आदि बहिरंग कारण तत्त्व निर्णय में पुरुषार्थ की हीनता भी कारण है। विवक्षावश इनमें से कोई भी कारण मुख्य हो सकता है। -जं. ग. 26-2-70/IX/ रो. ला. मित्तल ज्ञान की कमी में कर्म भी कारण है शंका-ज्ञान में जो कमी हुई, जीव का स्वभाव तो केवलज्ञान है और वर्तमान में जो हमारी संसारी अवस्था में जितने भी जीव हैं उनके ज्ञान में जो कमी हुई वह क्या कर्म के उदय की वजह से हई या बिना कर्म के उदय की वजह से ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012009
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages918
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size20 MB
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