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________________ २६४ ] [ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार : समाधान-गोम्मटसार जीवकांड गाथा २४१ की टीका में जो योग का अन्तर्मुहूर्त काल बतलाया है वह त्रस जीवों की अपेक्षा से है। एकेन्द्रिय जीवोंमें प्रौदारिककाययोग का उत्कृष्टकाल कुछ कम २२ हजार वर्ष है और काययोग का उत्कृष्टकाल 'अनन्तकाल' है, क्योंकि एकेन्द्रिय जीव में काययोग के अतिरिक्त अन्य कोई योग नहीं होता है ? -जे. ग. 15-11-65/IX/र. ला. जैन, मेरठ औदारिक शरीर सम्बन्धी योग का चिरकाल तक रहना बन जाता है शंका-क्रियिककाययोगियों का उत्कृष्टकाल अन्तमुहर्त क्यों है? औदारिककाययोगियोंवत अपनी उत्कृष्टस्थितिप्रमाण ३३ सागर क्यों नहीं ? यदि योग परिवर्तन के कारण ऐसा नियम है तो यह नियम औदारिककाययोग में क्यों नहीं लागू होता ? समाधान-योग परिवर्तन के कारण वैक्रियिककाययोग, आहारककाययोग, मनोयोग व वचनयोग में से किसी एक योगका उत्कृष्टकाल एक अन्तर्मुहूर्त से अधिक नहीं होता, क्योंकि योग पलट जाता है। (धवला पु०७ प०१५२ सत्र ९८ व पृष्ठ १५३-१५४ सत्र १०५ व १०७) पर्याप्त एकेन्द्रियजीव के मात्र एक औदारिककाययोग होता है अतः वहाँ पर योग परिवर्तन नहीं हो सकता, क्योंकि अन्य दूसरा योग नहीं है । एकेन्द्रियजीव की उत्कृष्टआयु २२ हजार वर्ष है। अतः एक अन्तर्मुहूर्तप्रमाण औदारिकमिश्रकाल को बिताकर पर्याप्ति को प्राप्त हो एक अन्तर्मुहूर्त कम २२ हजार वर्ष तक औदारिककाययोग का काल होता है । द्वीन्द्रियआदि तियंच व मनुष्यों के औदारिककाययोग का उत्कृष्टकाल एक अन्तर्मुहूर्त होता है। -जं. ग. 31-7-58/V/ जि. कु. जैन, पानीपत औदारिक मिश्र० तथा औदारिक० योग के उत्कृष्ट अन्तर का खुलासा शंका-औदारिककाय-योगी और औदारिकमिश्रकाययोगी का उत्कृष्ट अन्तर बताने के लिये ३३ सागरोपम आयुस्थितिवाले देवोंमें उत्पन्न कराया तो इतनी ही आयुस्थिति वाले नारकियों में उत्पन्न कराने से भी यह उत्कृष्ट अन्तर प्राप्त हो सकता है या नहीं ? तथा उत्कृष्ट अन्तर ९ अन्तर्मुहूर्त अधिक ३३ सागर क्यों कहा? आहारकमिश्र और आहारककाययोग के दो अन्तमुहूर्त मिलाकर ११ अन्तर्मुहूर्त क्यों नहीं कहे ? औदारिकमिश्रकाययोग का अन्तर प्रारम्भ करने के लिये 'नरक से आकर मनुष्यों में उत्पन्न हुआ' ऐसा क्यों कहा? अन्यगति से आकर मनुष्यों में उत्पन्न हुआ, ऐसा क्यों नहीं कहा ? समाधान-जो जीव नारकियों से पाकर मनुष्य या तियंचों में उत्पन्न होता है उसका औदारिकमिश्रकाययोग-काल सर्वलघु होता है और देवों से पाकर जो उत्पन्न होता है उसका औदारिक-मिश्र-काय-योग-काल उत्कृष्ट होता है। ध० पु० ७ पृ० २०८ पर औदारिककाययोग के उत्कृष्ट-अन्तरकाल का प्रकरण है, और प्रौदारिकमिश्रकाययोग के उत्कृष्ट-काल के द्वारा यह उत्कृष्ट-अन्तर प्राप्त हो सकता है। अतः 'देवों से आकर मनुष्यों में उत्पन्न हुआ' ऐसा कहा है। जिसका आहारक-समुद्घात में मरण हो वह ३३ सागर की आयुवाले देवों में उत्पन्न नहीं हो सकता, अत: पाहारक और आहारकमिश्र इन दो काययोग के दो अन्तर्मुहूर्त मिलाकर ११ अन्तर्मुहूर्त अधिक ३३ सागर नहीं कहा जा सकता था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012009
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages918
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size20 MB
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