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________________ व्यक्तित्व और कृतित्व ] [ ११७ समाधान-चतुर्थ गुणस्थान का जघन्यकाल क्षुद्रभव से भी कम है।' क्षुद्रभव से अभिप्राय संकण्ड से है । क्षुद्रभव' का जघन्य काल अकालमरण से होता है । ३१ सैकण्ड प्रमाण काल उत्कृष्ट क्षुद्रभव का है; जघन्य क्षुद्रभव का नहीं। जघन्य श्वासोच्छवास [ का काल ] एकेन्द्रिय के होता है और उत्कृष्ट श्वासोच्छवास सर्वार्थसिद्धि के देवों के होता है, जो जघन्य से संख्यातगुणा है। ___ जघन्य क्षुद्रभव से उत्कृष्ट क्षुद्रभव भी संख्यातगुणा है, किन्तु यह संख्यात उपर्युक्त संख्यात से बहुत - पन 15 एवं 16 जून 79/I, J/ज. ला. जैन भीण्डर प्रथम या चतुर्थ गुणस्थान से तृतीय गुण० में गमन शंका-धवल पु०७ पृ० १८१ सूत्र १९८ 'मिथ्यात्व से या वेदक सम्यक्त्व से सम्यग्मिथ्यात्व में जाकर' -क्या अनादि मिथ्यादृष्टि भी सीधा सम्यग्मिथ्यात्व में जा सकता है ? या यह कथन सादि मिथ्यादृष्टि जिसके ७ प्रकृतियों की सत्ता है उसकी अपेक्षा से है ? वेदक सम्यक्त्व से सम्यग्मिथ्यात्व बताया तो ऐसा होने पर सम्यक प्रकृति का उदय बना रहता है या क्या होता है ? . समाधान-अनादि मिथ्यादृष्टि के सर्व प्रथम उपशम सम्यक्त्व होता है। उसके पश्चात् सादि मिथ्याष्टि के 'वेदक योग्य काल' में मिथ्यात्व से सम्यग्मिथ्यात्व में जा सकता है । वेदक व उपशम सम्यग्दृष्टि भी सम्यग्मिथ्या के उदय होने पर सम्यग्मिथ्यात्व में जा सकता है। वेदक सम्यक्त्व के काल में सम्यक प्रकृति का स्तिबुक संक्रमण होकर सम्यक्त्व प्रकृति रूप उदय में आती है और उपशम सम्यक्त्व के काल में सम्यक्त्व प्रकृति का उपशम होता है। -जं. ग. 29-8-66/VII/र. ला. जैन, मेरठ चतुर्थ से ५ वें ७ वें गुण० में गमन शंका-क्या चतुर्थ गुणस्थान से सातवें गुणस्थान में जा सकता है या चतुर्थ से पाँचवां और पांचवें से सातवाँ गुणस्थान होगा, ऐसा नियम है ? समाधान-चतुर्थ गुणस्थान से सातवाँ गुणस्थान भी हो सकता है अथवा चतुर्थ से पांचवां और पांचवें से सातवाँ गुणस्थान भी हो सकता है। इस विषय में कोई एकान्त नियम नहीं है। द्रव्य से पुरुष ऐसे मनुष्य के सातवाँ गुणस्थान हो सकता है। द्रव्य स्त्री या द्रव्य नपुसक मनुष्य के सातवाँ गुणस्थान नहीं हो सकता। मनुष्य गति के अतिरिक्त अन्य तीन गतियों में भी सातवाँ गुणस्थान नहीं हो सकता। अतः इस मनुष्य पर्याय की सफलता संयम धारण करने से ही है। -जें. ग. 21-11-63/IX/ब्र. पन्नालाल १ इसी तरह स्थूल गणना से प्रथमोपाम सम्यक्त्व का काल छह आवलि कम ५-६ मिनिट है। प्रथमोपशम सम्यक्त्व सम्बन्धी पंचविशतिपदीय अल्पबहत्व का कथन लब्धिसार गा0 2 से 8 तक है। मुठतार सा. का पत दि0 16-6-79 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012009
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages918
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size20 MB
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