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________________ व्यक्तित्व और कृतित्व ] है। शंका होती है कि सम्यग्मिथ्यात्व कर्म के उदय रहते हुए सम्यक्त्त्व की करिणका भी अवशिष्ट नहीं रहती है, अन्यथा सम्यग्मिथ्यात्व कर्म के सर्वघातीपन बन नहीं सकता है। इसलिये सम्यग्मिथ्यात्व भाव क्षायोपशमिक है, यह कहना घटित नहीं होता। इस शंका का परिहार-सम्यग्मिथ्यात्व कर्मोदय होने पर श्रद्धान-अश्रद्धानात्मक करंचित अर्थात शबलित या मिश्रित जीव परिणाम उत्पन्न होता है। उसमें जो श्रद्धानांश है वह सम्यक्त्व का अवयव है तथा सम्यग्मिथ्यात्व कर्म का उदय इस श्रद्धानांश को नष्ट नहीं करता है, इसलिये सम्यग्मिथ्यात्व भाव क्षायोपशमिक है। ---जें. ग. 26-11-70/VII/घा. रा. मिश्रगुणस्थान में कार्माण काय योग क्यों नहीं ? शंका-मिश्र गुणस्थान में कार्माण काय योग कैसे नहीं है ? समाधान-मिश्र गुणस्थान में नियम से पर्याप्तक होते हैं, क्योंकि तीसरे गुणस्थान के साथ मरण का अभाव है। तथा अपर्याप्त काल में भी सम्यग्मिथ्यात्व तीसरे मिश्र गुणस्थान की उत्पत्ति नहीं होती। धवल पु० १ पृ० ३३५ । कार्माण काय योग अपर्याप्त अवस्था में होता है धवल पु० १ पृ० ३३४ पर समाधान । अतः कार्माण काय योग में मिश्र गुणस्थान नहीं होता। -जें. ग. 4-7-63/IX/म. ला. सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव उपशम सम्यक्त्व नहीं पाता शंका-मिथ्यात्व से प्रथमोपशम सम्यक्त्व होकर, अंतर्मुहूर्त पश्चात् गिरकर मिश्रप्रकृति के उदय से तीसरे गुणस्थान में अंतर्मुहूर्त काल तक रहकर क्या पुनः प्रथमोपशम सम्यक्त्व प्राप्त हो सकता है। समाधान-प्रथमोपशम सम्यक्त्व के लिये यह नियम है कि उससे अनन्तर पूर्व मिथ्यात्त्व गुणस्थान होना चाहिये। श्री १०८ गुणधर आचार्य ने कषायपाड सुत्त में कहा भी है-- सम्मत्त पढमलंभस्साणंतरं पच्छदो य मिच्छत्तं । लंभस्स अपढमस्स दु भजियव्वो पच्छदो होदि ॥१०४॥ जयधवल टीका-जो खलु अपढमो सम्मत्तपडिलंभो तस्स पच्छदो मिच्छत्तोदयो भजियन्वो होइ। सिया मिच्छाइट्ठी होवूण वेदयसम्मत्तमुवसमसम्मत्त वा पडिवज्जइ, सिया सम्मामिच्छाइट्ठी होइण वेदयसम्मत्त पडितज्जइत्ति भावत्थो । जयधवला पु० १२/३१७ । यहाँ पर यह बतलाया गया है कि प्रथमोपशम सम्यक्त्व से अनन्तर पूर्व नियम से मिथ्यात्व होगा। गिरकर मिथ्यात्व में आ जाने के पश्चात यदि वेदक सम्यक्त्व योग्य काल में सम्यक्त्व होता है तो वेदक सम्यक्त्व होगा। उस काल के पश्चात् सम्यक्त्व होता है तो उपशम सम्यक्त्व होगा, किन्तु सम्यग्मिथ्यात्व के तीसरे गूणस्थान के पश्चात सम्यक्त्व होता है तो वेदक सम्यक्त्व ही होगा अतः तीसरे गुणस्थान के पश्चात् उपशम सम्यक्त्व नहीं हो सकता। --णे. ग. 2.5-5-78/VI/मु. श्रु. सा. मोरेना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012009
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages918
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size20 MB
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