SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 157
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ व्यक्तित्व और कृतित्व ] [ ११३ होदु णाम अभेदविवक्खाए जच्चतरतं । भेदे पुण विवविखदे सम्मद्द सण भागो अत्थि चेव; अष्णहा जच्चंत र तवि रोहा । ण च सम्मामिच्छत्तस्स सव्वघाइत्तमेवं संते विरुज्झद्द, पत्तजच्चतरे सम्मद्दसणंसाभावादी तस्स सव्वघाइत्ताविरोहा ।" धवल० पु० ५ पृ० २०८ । सम्यग्मिथ्यादृष्टि यह कौनसा भाव है ? क्षायोपशमिक भाव है, क्योंकि सम्यग्मिथ्यात्व कर्म के उदय होने पर भी सम्यग्दर्शन का एक देश पाया जाता है। यदि यह कहा जाय कि जात्यन्तरत्व को प्राप्त सम्यग्मिथ्यात्व भाव में अंशाशी भाव नहीं होने से उसमें सम्यग्दर्शन का एक देश नहीं है । यह कहना भले ही अभेद विवक्षा में ठीक हो अर्थात् प्रभेद विवक्षा में भले ही जात्यंतरत्व रहे आवे, किन्तु भेद-विवक्षा करने पर उसमें सम्यग्दर्शन का एक भाग ( अंश ) अवश्य है। यदि ऐसा न माना जाय तो उसके जात्यंतरत्व का विरोध आता है । ऐसा मानने पर सम्यग्मिथ्यात्व के सर्वघातिपना भी विरोध को प्राप्त नहीं होता, क्योंकि सम्यग्मिथ्यात्व के जात्यंतरत्व को प्राप्त होने पर सम्यग्दर्शन के एक देश का प्रभाव है, इसलिये उसके सर्वघाति मानने में कोई विरोध नहीं आता । " सम्मामिच्छत्तलद्धि त्ति खओवसमियं सम्मामिच्छत्तोदयजणित्तादो । सम्मामिच्छात्तकयाणि सव्वघादीणि चेव, कधं तदएण समुप्पण्णं सम्मामिच्छत उभयपच्चइयं होदि ? ण, सम्मामिच्छत कयाणमुदयस्स सथ्यघाविताभावादो । तं कुदो णव्वदे ? तत्थतणसम्मत्तस्सुपत्तीए अण्णहाणुववत्तीदो ।" धवल पु० १४ पृ० २१ । सम्यग्मिथ्यात्व लब्धि क्षायोपशमिक है, क्योंकि वह सम्यग्मिथ्यात्व कर्मोदय से उत्पन्न होती है । प्रश्नसम्यग्मिथ्यात्व के स्पर्धक सर्वघाति होते हैं, इसलिये इनके उदय से उत्पन्न हुआ सम्यग्मिथ्यात्व उभय प्रत्ययिक ( क्षायोपशमिक ) कैसे हो सकता है ? उत्तर — यह ठीक नहीं, सम्यग्मिथ्यात्व कर्म के स्पर्धकों का उदय सर्वघाति नहीं होता क्योंकि सम्यग्मिथ्यात्व में सम्यक्त्व रूप अंश की उत्पत्ति अन्यथा बन नहीं सकती । इससे जाना जाता है कि सम्यग्मिथ्यात्व कर्म के स्पर्धकों का उदय सर्वघाति नहीं होता । " सम्मत्त - मिच्छत्तमावाणं संजोगसमुब्भूदभावस्स उप्पाययं कम्म सम्मामिच्छत्तं णाम । कधं दोष्णं विरुद्धाणं भावाणमक्कमेण एयजीवदन्वहि वृत्ती ? ण दोष्णं संजोगस्स कधंचि जच्चतरस्स कम्मट्ठवणस्सेव वृत्तिविरोहाभावादो ।" धवल पु० १३ पृ० ३५९ । सम्यक्त्व और मिथ्यात्व रूप इन दो विरुद्ध भावों के संयोग से उत्पन्न हुए भाव का उत्पादक कर्म सम्यग्मिथ्यात्व है | यहाँ पर यह शंका नहीं करनी चाहिये कि इन दो विरुद्ध भावों की एक जीव द्रव्य में एक साथ वृत्ति कैसे हो सकती है, क्योंकि इन दोनों भावों के कथंचित् जात्यन्तर भूत संयोग के होने से कोई विरोध नहीं है । -जै. ग. 2-1-75 / VIII / के. ला. जी. रा. शाह मिश्र गुणस्थान में एक समय में दो भाव कैसे ? शंका - मिश्रगुणस्थान में एक ही समय में दो भाव कैसे सम्भव हैं ? दही और गुड़ के दृष्टान्त में तो मो. मा. प्र. ५२ ( वीर सेवा मन्दिर ) के उस कथन से बाधा आती है, जिसमें बताया गया है कि छद्मस्थों के एक साथ दो ज्ञानांश नहीं होते और उसमें दृष्टान्त भी ऐसा ही दिया है । समाधान -- तीसरे मिश्रगुणस्थान में दो भाव नहीं होते किन्तु एक मिश्रभाव होता है जो न केवल सम्यक् है और न केवल मिथ्या किन्तु सम्यक् और मिथ्यात्व का मिला हुआ विलक्षण भाव है । छद्मस्थ के एक साथ दो उपयोग नहीं हो सकते हैं । एक उपयोग भी एक समय में एक ही विषय को ग्रहण करता है । सम्यक् अथवा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012009
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages918
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy