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________________ [ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार : समाधान-अनिवृत्तिकरण में एक समयवर्ती नाना जीवों के एक ही परिणाम होते हैं, उनके परिणामों में विभिन्नता नहीं होती है। किन्तु एक जीव के परिणाम प्रत्येक समय में अनन्तगुणी विशुद्धता लिए हुए बढ़ते जाते हैं, अर्थात् अनिवृत्तिकरण में एक जीव के परिणाम नाना समयों में समान ( एक जैसे ) नहीं होते हैं, भिन्न भिन्न होते हैं। __“अणियट्टीकरणद्धा अंतोमुहुत्तमेत्ता होदि ति तिस्से, अद्धाए समया रचेदध्वा । एत्थ समयं पडि एक्केको चेव परिणामो होदि, एक्कम्हि समए जहण्गुक्कस्सपरिणामभेदाभावा । पढमसमयविसोही थोवा । विदियसमय विसोही अणंतगुणा । तत्तो तदियसमयविसोही अजहण्णुक्कस्सा अणंतगुणा । एवं पेयव्वं जाव अणियट्टीकरणद्धाए चरिमसमओ त्ति। एगसमए वर्ल्डताणं जीवाणं परिणामेहि ण विज्जदे णियट्टी णिवित्ती तत्य ते अणियट्टी परिणामा। एवमणियट्टीकरणस्स लक्खणं गदं।" धवल पु० ६ पृ० २२१-२२२ । अनिवृत्तिकरण का काल अन्तर्मुहूर्तमात्र होता है, इसलिये उसके काल के समयों की रचना करनी चाहिये। अनिवृत्तिकरण में एक-एक समय के प्रति एक-एक ही परिणाम होता है, क्योंकि यह जघन्य और उत्कृष्ट परिणामों के भेद का अभाव है। प्रथम समय संबन्धी विशुद्धि सबसे कम है। उससे द्वितीय समय को विशद्धि अनन्तगुणित है। उससे तृतीय समय की विशुद्धि अजघन्योत्कृष्ट अनन्तगुणित है। इस प्रकार यह क्रम अनिवृत्तिकरण काल के अन्तिम समय तक ले जाना चाहिये । एक समय में वर्तमान नाना जीवों के परिणामों की अपेक्षा निवृत्ति या विभिन्नता जहाँ पर नहीं होती है वे परिणाम अनिवृत्तिकरण कहलाते हैं। इस प्रकार अनिवृत्तिकरण का लक्षण कहा गया है। -जे. ग. 4-1-73/v/क. दे. सासादन का जघन्यकाल शंका-सासादन गुणस्थान का जघन्य काल क्या है। समाधान-सासादन गूणस्थान का जघन्य काल एक समय है। "सासण-सम्माविष्टी केचिरंकालादो होंति, जहण्रषण एगसमओ।" अर्थ--सासादन सम्यग्दृष्टि जीव कितने काल तक होते हैं ? जघन्य से एक समय तक होते हैं । धवल पु० ४ पृ० ३२९ व ३३१। -जं. ग. 5-12-66/VIII/र. ला. जैन, मेरठ शंका-सासादन सम्यक्त्व वाला जीव मिथ्यात्व को प्राप्त होने पर कम से कम कितने जघन्यकाल में किसी भी सम्यक्त्व को प्राप्त कर सकता है ? समाधान--सासादन दूसरे गुणस्थान वाला जीव नियम से मिथ्यात्व को प्राप्त होता है। ऐसा जीव जघन्य से अन्तर्मुहूर्त पश्चात् वेदक सम्यग्दर्शन को प्राप्त हो सकता है क्योंकि मिथ्यादर्शन का जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त है। उत्कृष्ट से अर्धपुद्गल परिवर्तन काल पश्चात् प्रथमोपशम सम्यग्दर्शन को प्राप्त हो जाता है । -जें.ग. 25-1-62/VII/ध. ला. सेठी, खरई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012009
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages918
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size20 MB
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