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________________ प्रथमानुयोग अनन्तवीर्य मुनि का केवलज्ञान के बाद ५०० धनुष ऊर्ध्वगमन शंका- पद्मपुराण सर्ग ७८ पृ० ८१ पर लिखा है कि कुसुमायुधनामक उद्यान में श्री अनन्तवीर्य मुनिराज को केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। उस समय वे ५०० धनुष ऊँचे क्यों नहीं गये, जबकि केवलज्ञान होने पर ५०० धनुष ऊपर जाने का नियम है ? समाधान - श्री अनन्तवीर्य मुनिराज केवलज्ञान उत्पन्न होने पर ५०० धनुष प्रमाण ऊपर गये अन्यथा वे देवनिर्मित सिंहासन पर प्रारूढ़ नहीं हो सकते थे । अथ मुनिवृषभं तथाऽनन्तसत्त्वं मृगेन्द्रासने सन्निविष्टं । - पद्मपुराण पर्व ७८ पृ० ८१ अर्थात् - अथानन्तर केवलज्ञान उत्पन्न होते ही वे मुनिराज वीर्यान्तराय कर्म का क्षय हो जाने से अनन्त बल के स्वामी हो गये तथा देवनिर्मित सिंहासन पर आरूढ़ हुए । 'देवनिर्मित सिंहासन पर आरूढ़ हुए' इससे जाना जाता है कि केवलज्ञान उत्पन्न होने पर श्री अनन्तवीर्य मुनिराज ५०० धनुष ऊपर गये थे । - जै. ग. 17-4-69 / VII / र. ला. जैन, मेरठ Jain Education International अनादि जैनधर्म के कथंचित् प्रवर्तक शंका - जैनधर्म का बानी कौन था ? अजैन व्यक्ति साधारणतया भगवान महावीर को ही जैनधर्म का बानी मानते हैं। डा० राधाकृष्णन ने Indian Philosophy पुस्तक में भगवान आदिनाथ को जैनधर्म का जन्मदाता बताया है; परन्तु जैनग्रन्थों में जैनधर्म को अनादिकालीन बताया है। फिर भी यह शंका उठती ही है, आखिर इस धर्म का चलाने वाला कौन था ? समाधान – इस शंका के निवारण के लिए सर्वप्रथम यह आवश्यक है कि धर्म के स्वरूप को समझा जाय अर्थात् धर्म किसको कहते हैं ? 'वत्थु सहावो धम्मो' अर्थात् जिस वस्तु का जो स्वभाव है वही उसका धर्म है । जैसे ज्ञान दर्शन आत्मा का स्वभाव है, उष्णता अग्नि का स्वभाव है, द्रवण करना जल का स्वभाव है; स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण पुद्गल का स्वभाव है, आदि । प्रत्येक द्रव्य अनादि अनन्त है श्रतएव उसका स्वभाव अर्थात् धर्म भी अनादि अनन्त है । कोई भी द्रव्य न कभी उत्पन्न हुआ है और न कभी उसका नाश ही हो सकता है । केवल उसकी पर्याय समय समय बदलती ( उत्पन्न व नष्ट होती ) रहती है । विज्ञान अर्थात् साइन्स ने भी यही सिद्ध किया है कि Nothing is created, nothing is destroyed, it only changes its phase. इससे यह सिद्ध हो जाता है। कि द्रव्य किसी का बनाया हुआ नहीं है क्योंकि जो वस्तु अनादि है वह किसी की बनाई हुई नहीं हो सकती है । यदि बनाई हुई हो तो उसका आदि हो जाएगा क्योंकि जब वह बनाई गई तभी से उसकी आदि हुई। जब द्रव्य अनादि है तो उसका धर्म (स्वभाव) भी अनादि ही है क्योंकि स्वभावरहित कोई भी वस्तु नहीं हो सकती । अतः धर्म भी अनादि है और किसी का बनाया हुआ नहीं है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012009
Book TitleRatanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
PublisherShivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
Publication Year1989
Total Pages918
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size20 MB
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