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________________ 90 D030 000016 400000000000000000000babaorms DOG 6900 0000000000000000sal 1६१० उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ अण्डा-उपभोग : स्वास्थ्य या रोग ! 600000 9856 -साध्वीरत्न पुष्पवतीजी म. “सण्डे हो या मण्डे-रोज खाओ अण्डे"-"अण्डे खाओ-बल प्रक्रिया का आधारभूत उपादान, प्राणी जन्म का साधन भला बुद्धि बढ़ाओ" "रोज सवेरे अण्डा खाए-वो ही अपनी सेहत निरापद सब्जी कैसे मानी जा सकती है। अब यह तथ्य विधिवत् बनाए"-ऐसे-ऐसे भ्रामक दुष्प्रचार के युग में जनसामान्य की प्रतिपादित हुआ है कि अण्डा सब्जी नहीं है, इस रूप में इसे मानसिकता का भ्रष्ट हो जाना स्वाभाविक ही है। आज न जाने विज्ञापित किया जाना और इसका विक्रय करना राष्ट्रीय और क्या-क्या मिथ्या तर्क जुटाकर अण्डाहार के पक्ष को समर्थित, पुष्ट | सामाजिक अपराध माना गया है। और सबल बनाया जा रहा है, अन्यथा यथार्थ तो यही है कि अण्डा घोर अनर्थकारी पदार्थ है। उपर्युक्त प्रचारोक्तियों के उत्तर में यही । दूर कीजिये पौष्टिकता का भ्रम कहा जाना चाहिए कि-"सण्डे हो या मण्डे-कभी न खाओ अण्डे"- दीर्घकाल तक तो यह भ्रांति पल्लवित होती रही कि अण्डा “अण्डे खाओ-बल-बुद्धि घटाओ"-रोज सवेरे अण्डा खाए-वो मृत्यु अत्यन्त पौष्टिक होता है, किन्तु वास्तविकता इसके विपरीत है। को पास बुलाए।" भ्रांतियों के घने अंधेरे से बाहर निकल कर सभी बच्चों के लिए तो बेजोड़ आहार माना जाता रहा, किन्तु अण्डा का यही आन्तरिक विश्वास सबल होगा कि-"जिसने लिया अण्डे बच्चों के लिए विशेषरूप से हानिकारक है। दूध की अपेक्षा अण्डा का स्वाद, उसका तन-मन-धन बरबाद" और "जिसने किया अधिक पौष्टिक माना गया, किन्तु अब आहार विशेषज्ञों का अण्डा-उभयोग-खोया स्वास्थ्य बुलाये रोग"। अण्डा-प्रशस्ति तो धन अभिमत यह बन गया है कि ऐसा मानना भारी भूल है। अण्डे में लोलुप व्यवसाइयों का एक ऐसा मोहक जाल है कि सामान्य जन बी-२ और बी-१२ तत्व और केलशियम की मात्रा नहीं के तुल्य है, को उसमें फंसाकर वे अपने अर्थोपार्जन का लक्ष्य तो आशा से भी जबकि ये पोषक तत्व दूध में पर्याप्ततः पाये जाते हैं। कार्बोहाइड्रेट्स अधिक प्राप्त कर लेते हैं, किन्तु विमूढ़ उपभोक्ता रोग और पीड़ाओं जैसा अत्यावश्यक तत्व तो अण्डे में होता ही नहीं है। मानव से घिर जाते हैं। शौष्ठव के लिए प्रोटीन को अत्यावश्यक तत्व हुआ करता है। अण्डा खाद्य रूप में अप्राकृतिक पदार्थ अन्य खाद्य पदार्थों की अपेक्षा अण्डे में प्रोटीन की मात्रा अल्पतम पायी जाती है। प्रोटीन अण्डे में मात्र १३.३ प्रतिशत होता है, अण्डा आहार निश्चित् रूप से हानिकारक है, रोगोत्पादक है, जबकि यह प्रतिशत दालों (विशेषतः मसूर की दाल) में २५, मैथी यह सत्य ही है, किन्तु विचारणीय यह प्रश्न है कि क्या अण्डा में २६.२ प्रतिशत, सोयाबीन में ४३.२ प्रतिशत होता है। मूंगफली उपयुक्त आहार है भी? क्या अण्डा मनुष्य की भोज्य सामग्री की 1 में प्रोटीन की मात्रा ३१.५ प्रतिशत मिलती है। ऐसी स्थिति में क्या सूची में सम्मिलित होने योग्य पदार्थ है? वास्तविकता यह है कि अण्डे को पौष्टिक मानना औचित्यपूर्ण है। ध्यातव्य है विगत अण्डे का अस्तित्व एक प्रजनन प्रक्रिया के प्रयोजन से बना है-यह खाने के लिए बना ही नहीं है। वैज्ञानिकों का अभिमत है कि अण्डे दीर्घकाल तक यह मान्यता रही कि प्रोटीन प्रथम और द्वितीय दो की आन्तरिक संरचना प्राणी-जन्म के लक्ष्य से हुई है। सन्तति-वृद्धि श्रेणियों का होता है और प्रथम श्रेणी का प्रोटीन अण्डों में, जबकि का उपादान अण्डा कभी खाद्य पदार्थ का रूप नहीं ले सकता।' इस वनस्पतियों व उसके उत्पादनों में द्वितीय श्रेणी का होता है। अब रूप में यह अप्राकृतिक पदार्थ है। इसे खाद्य मानना मनुष्य की आंकिक आधार पर अनुसंधानों ने सिद्ध कर दिया है कि अण्डा अगति और बर्बरता का द्योतक है। यह व्यवहार मानव सभ्यता को द्वितीय श्रेणी का प्रोटीन ही रखता है। स्वाभाविक एवं प्राकृतिक विलोम गति देता है, मनुष्य को वन्य अवस्था में लौटाने की प्रवृत्ति खाद्य-वानस्पतिक उत्पादों के प्रथम श्रेणी के प्रोटीन की तुलना में है। मुर्गी से अण्डा और अण्डे से मुर्गी का जो प्राकृतिक चक्र अण्डा कोई महत्व नहीं रखता। इसके अतिरिक्त प्रोटीन की अण्डे में गतिमान रहता है-मनुष्य अण्डे को भोज्य बनाकर उस व्यवस्था में असंतुलित उपस्थिति होती है। अण्डे का अतिरिक्त प्रोटीन मानव व्यवधान ही उपस्थित कर रहा है। वह स्वयं को भी अपने इस उदर के लिए दुश्पाच्य भी सिद्ध हुआ है और यह मांस पेशियों में अनैसर्गिक कृत्य के कुफल से रक्षित नहीं रह सकता। समय रहते । जमकर उन्हें जड़ बना देता है। ही मानव जाति को सावधान हो जाना चाहिए। इस अप्राकृतिक यह मान्यता भी अब मिथ्या सिद्ध हो गयी है कि अण्डा सेवन का परित्याग ही मनुष्य के लिए श्रेयस्कर है-विश्वमंगल भी मानव-शरीर को अपेक्षाकत अधिक ऊर्जा प्रदान करता है। इस इसी से, उसके द्वारा संभाव्य होगा। विश्लेषण से वास्तविकता उजागर हो जाती है कि जहाँ ५० ग्राम कैसी विडम्बना है कि भारत जैसे अहिंसा प्रधान देश में अण्डे | अण्डे से ८६.५ किलौरी ऊर्जा प्राप्त होती है-वहाँ इतनी ही मात्रा के को सब्जी मानने की भ्रांति इतनी बलवती हो गयी है। प्रजनन । अन्य खाद्य पदार्थ अधिक ऊर्जा देते हैं, यथा-आटा १७६.५, धनिया 9000
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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