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________________ UE Co... toरार: 00000000000200.0 OD 00:0902 500 90.00 20000) 2004 | जन-मंगल धर्म के चार चरण कत्लखानों को बंद कराने के लिए वैसे तो सारे भारत को तत्पर होना चाहिए। किन्तु भगवान महावीर का अपने को अनुयायी मानने के नाते जैन समाज को और गांधी का अपने को अनुयायी मानने वाले गांधीवादी समाज को आगे आना चाहिए। दो महायुद्ध हम देख चुके हैं। शीत युद्ध आज भी देख रहे हैं। आग की छोटी चिनगारी महान अग्निकाण्ड को जन्म दे देती है। इसी प्रकार कत्लखानों को छोटी हिंसा महायुद्ध की हिंसा की जननी बन जाती है। हम इस तथ्य को न भूलें और अपने मानवोचित दायित्व के प्रति तत्काल सजग हो जायें। देश और दुनियां को महावीर और गांधी के सिद्धान्त बचायेंगे, विज्ञान और तकनीक नहीं। लोक कल्याण की आधारशिला अहिंसा है, हिंसा नहीं। पता: ७/८ दरियागंज दिल्ली १९७० के बाद से पश्चिम-के-देशों ने 'वे क्या खा रहे हैं और जो कुछ वे खा रहे हैं उसका व्यक्ति और समाज के व्यक्तित्व-निर्माण पर क्या प्रभाव पड़ रहा है' विषय पर काफी गहराई से विचार किया है। आश्चर्य है कि हम जो चाहे वह खा रहे हैं और सामने आ रहे नतीजों को उन मामलों से जोड़ रहे हैं, जिनका उनसे दूर का भी कोई रिश्ता नहीं है। वस्तुतः हम असली घाव पर अपनी अंगुली नहीं रख पा रहे हैं। हम स्वादिष्ट और चटखारेदार चीजें खाना चाहते हैं; किन्तु स्वाद के पीछे बैठे जहर को पहिचानने की कोशिश नहीं कर रहे हैं। यह भी नहीं पहिचान पा रहे हैं कि हमारे इस अप्रत्याशित आचरण के फलस्वरूप आने वाली पीढ़ियों को कितनी बड़ी सजा भुगतनी पड़ेगी। स्वाद और शौक की असंख्य सनकों के बीच हम स्वयं को तो बर्बाद कर ही रहे हैं; किन्तु पशु-पक्षियों और पेड़-पौधों की जो नस्लें हमारी अदूरदर्शिता और तात्कालिक लाभ लेने की आदत के कारण नष्ट हो रही हैं, उन्हें हम फिर कभी जीवित नहीं कर पायेंगे। हमारा ध्यान मात्र स्वयं पर है, दुनिया के उन भावी वाशिन्दों पर नहीं है, जो अपना असली जीवन शुरू करने वाले हैं। आहार पर ध्यान न देकर हम इतनी बड़ी भूल कर रहे हैं कि जिसके कई सांस्कृतिक और सामाजिक दुष्परिणाम सामने आयेंगे। संसाधित (प्रोसेस्ड) कार्बोहाइड्रेट्स स्वाद में तो रुचिकर लगते हैं; किन्तु संसाधन (प्रोसेसिंग) के दौरान उनमें अवस्थित विटामिनों की जो दुर्दशा होती है, उसके बारे में बिल्कुल चिन्तित नहीं हैं। बावजूद चिकित्सकों और मनोवैज्ञानिकों की चेतावनी के हमने बर्ताव में कोई खास तब्दीली नहीं की है और संसाधित (प्रोसेस्ड) आहार को लगातार उत्साहित करते जा रहे हैं। जो मुल्क प्रोसेस्ड कार्बोहाइड्रेट्स अर्थात् ऐसे खाद्य-जिनमें-से रेशे खत्म हो जाते हैं, की टेक्नॉलॉजी को अविकसित, अर्द्धविकसित या भारत जैसे विकासशील देशों को बेच रहे हैं और जो ये बदनसीब देश सभ्य होने के मिथ्या भ्रम और आवेश में इन खारिज तकनीकों को अपना रहे हैं, वे स्वयं अपने ही पाँवों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं। उन्हें इस बात का अन्दाज नहीं है कि उनके इस आचरण से एक पूरा मुल्क हिंसा के बदहवास दौर से गुज़र सकता है। पश्चिम में कई प्रयोग हुए हैं और आहार-विशेषज्ञों ने कई शोधपत्र पढ़े हैं, जिनमें उन्होंने बहुत साफ शब्दों में कहा है कि यदि हमने अपने रोजमर्रा के आहार का ठीक-ठीक आकलन नहीं किया और उसमें उन तत्त्वों को शरीक नहीं किया जो हमारे व्यक्तित्व की संतुलित रचना के लिए जिम्मेदार हैं तो उसका दुष्परिणाम न सिर्फ व्यक्ति को बल्कि सारे मानव-समाज को भोगना पड़ेगा। -डॉ. नेमीचन्द जैन (शाकाहार मानव सभ्यता की सुबह : पेज ३० से) 400200.0000000206.0..04ROAD
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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