SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 729
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 00000033 । जन-मंगल धर्म के चार चरण ५९३ | आहार सेवन के क्रम में शुद्ध एवं सात्विक आहार के सेवन फल, फली, कन्द, मूल, पत्ते, गूदा आदि का उपयोग प्राकृतिक को विशेष महत्व दिया गया है। अतः सामान्यतः हमारा आहार स्थिति में या थोड़ा उबालकर आसानी से किया जा सकता है। शाक ERPAPOOR सात्विक होना चाहिए। सात्विक आहार शरीर को तो स्वस्थ रखता खरीदने में सस्ते और पकाने में आसान भी पड़ते हैं। उन्हें DSS ही है वह मस्तिष्क को अविकृत और मन को सन्तुलित रखता है। आंगनबाड़ी के रूप में घरों में भी उगाया जा सकता है। फलों के इस प्रकार सात्विक आहार शारीरिक स्वास्थ्य रक्षा में तो सहायक है बाद उन्हीं की संगति शरीर के साथ ठीक बैठती है। सामान्यतः ही, इससे मानसिक भावों और परिणामों में भी विशुद्धता आती है। विभिन्न ऋतुओं में होने वाले मौसमी फल भी इतने मंहगे नहीं होते सबसे बड़ी बात यह है कि सात्विक आहार के मूल में अहिंसा का कि उन्हें थोड़ी बहुत मात्रा में लेना कठिन प्रतीत हो। केला, पपीता, भाव निहित है जो प्राणिमात्र के प्रति कल्याण के व्यापक दृष्टिकोण । आम, अमरूद, बेर, खरबूजा जैसे ऋतुकालीन फल आसानी से मिल का परिचायक है। यह सम्पूर्ण प्राणिजगत् की समानता के आधार । जाते हैं और सस्ते भी पड़ते हैं। इन्हें भी अपने दैनिक भोजन का का निर्माण करता है। यह अनिवार्यता के सिद्धान्त को प्रतिपादित प्रमुख अंग बनाया जा सकता है। करता है जिसके अनुसार हमें वह भोजन लेना चाहिए जो जीवन आज आधुनिकता की होड़ में अपनी संस्कृति एवं आचारधारण के लिए अनिवार्य है। जिसकी अनिवार्यता न हो वह नहीं विचार सबको दकियानुसी कहने वाले इस झूठी धारणा के शिकार लेना चाहिए। मात्र स्वाद की दृष्टि से जिह्वा की लोलुपता के | हो रहे हैं कि शाकाहारी भोजन से उचित मात्रा में प्रोटीन अथवा वशीभूत होकर ऐसा आहार नहीं लेना चाहिए जो दूसरे प्राणियों को शक्तिवर्धक उचित आहार प्राप्त नहीं होता। वस्तुतः यह मात्र भ्रान्ति मारकर बनाया गया हो। है। आधुनिक शोधकर्ताओं व वैज्ञानिक की खोजों से यह स्पष्ट हो मनुष्य यदि अपनी इच्छाओं, वासनाओं एवं महत्वाकांक्षाओं के गया है कि शाकाहारी भोजन से न केवल उच्चकोटि के प्रोटीन अधीन नहीं होता है तो वह निश्चय ही सुखी रहता है, क्योंकि प्राप्त होते हैं, अपितु अन्य आवश्यक पोषक तत्व विटामिन, आत्म सन्तोष के कारण वह कभी विचलित नहीं होता। ऐसा व्यक्ति खनिज, कैलोरी आदि भी अधिक मात्रा में प्राप्त होते हैं। सोयाबीन मनोविकारों से ग्रस्त नहीं होता, क्रोधादि विकार भाव ऐसे व्यक्ति व मूंगफली में मांस व अण्डे से अधिक प्रोटीन होता है। सामान्य को ग्रसित नहीं कर पाते हैं, राजस और तामस भाव उसे अपने दालों में भी प्रोटीन की मात्रा कम नहीं होती। गेहूँ, चावल, ज्वार, य शव प्रभाव में लेने में समर्थ नहीं पाते और वह इन्द्रिय जनित इच्छाओं बाजरा, मक्का इत्यादि के साथ उचित मात्रा में दालें एवं हरी और वासनाओं का दास नहीं बन पाता। सब्जियों का सेवन किया जाए तो न केवल प्रोटीन की आवश्यकता दूषित, मलिन एवं तामसिक आहार स्वास्थ्य के लिए पूर्ण होती है, अपितु अधिक संतुलित आहार प्राप्त होता है जो 245 अहितकारी और मानसिक विकार उत्पन्न करने वाला होता है। कई शाकाहारी व्यक्ति को मांसाहारी की अपेक्षा अधिक स्वस्थ, सबल बार तो यहाँ तक देखा गया है कि आहार के कारण मनुष्य एवं कार्यक्षम बनाता है तथा उसे दीर्घायु प्रदान करता है। शारीरिक रूप से स्वस्थ होता हुआ भी मानसिक रूप से अस्वस्थ 1. वैज्ञानिक अनुसंधानों से यह तथ्य उद्घाटित हुआ है कि होता है और जब तक उसके आहार में समुचित परिवर्तन नहीं किया जाता तब तक उसके मानसिक विकार का उपशमन भी नहीं | मांसाहार हमारे जीवन के लिए कतई अनिवार्य नहीं है। मांसाहार 6000 कोलेस्ट्रोल को बढ़ाता है जो हृदय रोग का कारण है। वास्तव में होता। माँस का अपना तो कोई स्वाद होता नहीं है, उसमें मसाले, 886 उपयोगिता शाकाहार की { चिकनाई आदि अन्य अनेक क्षेपक द्रव्य मिलाए जाते हैं उनका ही मनुष्य का स्वाभाविक आहार शाकाहार है। शाकाहार से स्वाद होता है। इसके विपरीत शाकाहारी पदार्थों-फल, सब्जी, मेवे अभिप्राय उस आहार से है जो हमें विभिन्न वनस्पतियों या आदि में अपना अलग स्वाद होता है जो बिना किसी मसाले आदि वानस्पतिक द्रव्यों के माध्यम से मिलता है। विभिन्न प्रकार का } के बड़े स्वाद और चाव से खाए जाते हैं। अनाज, दालें, शाक-सब्जी और फल शाकाहार में समाहित है। शाकाहार के अन्तर्गत दूध, दही, छाछ भी हमारे दैनिक आहार 200PP इसके अतिरिक्त गाय, भैंस, बकरी से प्राप्त होने वाला घी, दूध 1 में सम्मिलित रह सकते हैं। मिठास के लिए सफेद चीनी के स्थान 0000 और उससे निर्मित विविध पदार्थ जैसे दही, छाछ, मक्खन, घी 1 पर गुड़, शक्कर, किसमिस, अंजीर, खजूर आदि को प्रयोग में लाया आदि भी इसी के अन्तर्गत आते हैं। जा सकता है। इससे बहुत कुछ अंशों में लोगों को मधुमेह व्याधि जंगलों की कमी और मनुष्यों की बढ़ती हुई आबादी से अब होने की सम्भावना समाप्त हो जाती है। हमारे दैनिक भोजन में अन्न फलों का उत्पादन कम होता जा रहा है और इनकी खपत बढ़ने से की मात्रा यदि शाक और दूध की तुलना में कम रखी जाती है तो 2000d वे मंहगे मिलने लगे हैं। इसलिए दूसरी श्रेणी का आहार जिसके । यह हमारे शरीर की दैनिक आवश्यकता को पूर्ण करने के लिए अन्दर विभिन्न प्रकार के शाक आते हैं, शाकाहार के रूप में पर्याप्त है, यह हमारे स्वास्थ्य संरक्षण में सहायक होता है। हमारे अपनाया जा सकता है। ऐसे कितने ही सुपाच्य शाक हैं, जिनके दैनिक आहार में यदि एक तिहाई या चौथाई अन्न रहता है तो ठीक - 100.0000000 00.00000.0.05
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy