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________________ 5390 NOK ADSDOG जन-मंगल धर्म के चार चरण पर्यावरण-प्रदूषण : बाह्य और आन्तरिक POO090-90 -श्री विनोद मुनिजी म. (अहमदनगर) भौतिक विज्ञान की करामात अंग अविकसित और दुर्बल हो तो कार्य करने की क्षमता शरीर में वर्तमान युग विज्ञान युग कहलाता है। यह विकास और प्रगति । नहीं आ सकती। मनुष्य के दोनों पैर बराबर और मजबूत हों, तभी का युग माना जाता है। धरती पर बैलगाड़ी और घोड़े की सवारी वह आराम से गति कर पाता है; अन्यथा उनसे चलने-फिरने में करने वाला मानव आज गगनगामी विमानों में पक्षियों की भाँति बहुत दिक्कत होती है। उड़ान भरने लगा है। जब हम सुदूर अतीत में झाँकते हैं, तो हमें वर्तमान युग का मानव अशान्त क्यों? ऐसा प्रतीत होता है कि वह युग कितना पिछड़ा हुआ और वर्तमान का मानव इसीलिये अशान्त, त्रस्त, तनावग्रस्त एवं अविकसित था। एक दृष्टि से सोचें तो वह आदिम युग जंगली युग भयाक्रान्त बना हुआ है कि भौतिक विज्ञान आध्यात्मिकता की था, जिसमें विकास और प्रगति का नामोनिशान नहीं था। आज उपेक्षा करके आगे बढ़ा है। इसीलिए मानवमन को कदम-कदम पर भौतिक विज्ञान ने प्रचुर अकल्प सुख-साधन-सामग्री का अम्बार शंका-कुशंकाएँ घेरे रहती हैं। वर्तमान युग का मानव शान्ति के लगा दिया है। मनुष्य स्वप्न में भी जिन चीजों की कल्पना नहीं कर बदले अशान्ति तथा चैन के बदले बेचैनी से जी रहा है। आज पाया था, उन वस्तुओं का आश्चर्यजनक रूप से निर्माण करके आदमी में स्वार्थ, ईर्ष्या, भय, अविश्वास एवं अहंकार की वृत्तियाँ विज्ञान ने मानव को चमत्कृत कर दिया है। साधारण जनता की फलती-फूलती जा रही हैं। एक समाज दूसरे समाज को और एक बुद्धि तो वहाँ तक पहुँच भी नहीं पाई है। उन्हें तो यह सब आश्चर्य राष्ट्र दूसरे राष्ट्र को गिराने में तत्पर है। एक-दूसरे के विकास को ही लग रहा है। यद्यपि जादूगर जादू के करिश्मे दिखाकर मानव-मन देखना भी असह्य हो रहा है। धर्म-परम्पराओं और सम्प्रदायों में भी को प्रभावित कर देते हैं, किन्तु वे करिश्मे सुदीर्घकाल स्थायी नहीं इसी तरह की संकीर्ण मनोवृत्ति का बोलबाला बढ़ता जा रहा है। होते। उनमें या तो हाथ की सफाई होती है, या हिप्नोटिज्म या मैस्मेरिज्म द्वारा दर्शकों की आँखों को या मन को मूर्च्छित कर दिया। आध्यात्मिकता के अभाव में समस्याएँ नहीं सुलझा पाता जाता है। ये सारे चामत्कारिक प्रयोग अल्पकाल के लिये ही मानवमन वर्तमान में, भौतिक विज्ञान की अन्धी दौड़ में मानव के पैर न को गुदगुदाते और प्रमुदित करते हैं। इसके विपरीत भौतिक विज्ञान तो धरती पर टिक पा रहे हैं और न ही आकाश पर। उसके सामने के एक से एक बढ़कर चमत्कार मानव मन पर चिरस्थायी प्रभाव आज जीवन की अनेक समस्याएँ मुँह बाये खड़ी हैं, जिन्हें सुलझाने डालते हैं, उसे स्वयं उनका प्रत्यक्ष अनुभव भी करा देते हैं। में उसका दिमाग कुण्ठित हो जाता है। वह जैसे-जैसे उन समस्याओं भौतिक विज्ञान का आध्यात्मिक क्षेत्र में पिछड़ापन को सुलझाने का प्रयास करता है, वैसे-वैसे वे उलझती जाती हैं। आध्यात्मिकता के अभाव में, या यों कहिये आत्मवत् सर्वभूतेषु मंत्र किन्तु हम देखते हैं कि यह विज्ञान भौतिक क्षेत्र में जितना दूत के अभाव में भौतिक विज्ञान के घोड़े पर चढ़ा हुआ मानव किसी गति से आगे बढ़ा और अहर्निश बढ़ता ही जा रहा है, उसकी भी समस्या को ठीक तरह से हल नहीं कर पाता है। उतनी द्रुतगामिता आध्यात्मिक क्षेत्र में नहीं आ पाई है। जो कुछ गति हुई है, वह भी बहुत ही नगण्य है, क्योंकि भौतिक विज्ञान का ____ बाह्य और आन्तरिक समस्या है-पर्यावरण प्रदूषण की। आज प्रमुख उद्देश्य और कार्यक्षेत्र भौतिक क्षेत्र ही रहा है। इसलिए सबसे बड़ी और अहम समस्या है पर्यावरण के प्रदूषण की। बाह्य आध्यात्मिक दौड़ में वह पिछड़ता रहा है। भौतिक विज्ञान के । पर्यावरण के प्रदूषण से भी बढ़कर आन्तरिक पर्यावरण का प्रदूषण आध्यात्मिक क्षेत्र में पिछड़ेपन का अनिष्ट फल वर्तमान प्राणिजगत् है, जिसे पाश्चात्य देशों के लोग तो कथमपि हल नहीं कर पाते। को ही भोगना पड़ रहा है। पाश्चात्य देश भारतवर्ष को अध्यात्म-सम्पन्न मानकर इससे इस समस्या को हल करने की अपेक्षा रखते थे, परन्तु अफसोस है कि विज्ञान और अध्यात्म दोनों पूरक व सहयोगी हैं भारतवर्ष आज स्वयं ही बाह्य और आन्तरिक दोनों प्रकार के यह तो दिन के उजाले की तरह स्पष्ट है कि विज्ञान और पर्यावरण-प्रदूषणों से ग्रस्त है। पर्यावरण-प्रदूषण का प्रश्न आज केवल पर्यावरण प्रदूषणा से ग्रस्त हा पयावरण प्रदूषण का प्रा अध्यात्म दोनों प्रतिस्पर्धी या विरोधी नहीं है, बल्कि ये दोनों एक राष्ट्र का नहीं रहा, आज वह सारे जगत् का प्रश्न बन गया है। एक-दूसरे के पूरक, सहयोगी और जीवन विकास के अंग हैं। जो भारतवासी लोग गंगा, यमुना, सरस्वती, गोमती, गोदावरी, जीवन-निर्माण में दोनों का अपना-अपना महत्वपूर्ण स्थान है। इन कृष्णा, कावेरी आदि नदियों को जलीय पर्यावरण प्रदूषण से रहित दोनों में से किसी एक को छोड़कर दूसरा अकेला चले तो पवित्र, मैया तीर्थरूप एवं लोकमाता मानते थे, उन्हान या भारत के मानवजगत पर जानबूझ कर आफत लाने जैसी बात होगी। जैसे नागरिकों ने इस तथ्य को नजरअंदाज करके धड़ल्ले से गंगा आदि SSDHC मानव शरीर में मस्तिष्क और हाथ दोनों का विकसित और सुदृढ़ पवित्र, लोकमाता रूप नदियों के किनारे बड़े-बड़े कल-कारखाने होना अनिवार्य है। एक अंग विकसित और पुष्ट हो और दूसरा लगाकर उसमें दृषित एवं गंदा, रोगवर्द्धक जल डालकर अमृत को 900 उन्न यन PORATE D :00:09 8002288000rpiecordarsodantasy6000 290090020402090salamas0000000000000000000000000000 863RD JioFASiddilebrating: 0.22830706652
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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