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________________ 0000000000000008 DIAS O2009 जन मंगल धर्म के चार चरण धर्म की व्याख्या करते हुए कहा गया है-जो जीव मात्र को धारण करे, उसे आश्रय व सहारा देवे, उसकी उन्नति/प्रगति में आधार भूत बने, और जीवन में जीवन (जल) की भाँति प्राणदायी बने-वह है धर्म। भगवान महावीर ने धर्म को उत्कृष्ट मंगल कहा है। कणाद ऋषि कहते हैं-जो अभ्युदय एवं निःश्रेयस में सहायक हो, वह है धर्म। धर्म जीवन का स्वभाव है। स्वभाव से विमुख होना अधर्म है। स्वभाव में रमते रहना-आनन्द व मंगलमय है। इसलिए धर्म जन-जीवन के लिए मंगलमय है। धर्म और कर्म दो शब्द हैं, परन्तु दोनों ही परस्पर सम्बन्धित हैं। कर्म जब धर्ममय होगा और धर्म जब कर्म को अपने साथ रखेगा-तभी संसार में मंगल होगा। धर्म रहित कर्म अमंगल है, उदंगल है। आज के जन-जीवन में धर्म की परिणति के चार अति प्रासंगिक विषय है• पर्यावरण शुद्धि आहार शुद्धि-शाकाहार • आचार शुद्धि-व्यसनमुक्ति • व्यवहार शुद्धि-शोषणमुक्त समाज। धर्म, शुद्धि करने वाला गंगा जल है। शुद्धि के बिना सिद्धि संभव नहीं है। गंगाजल की भाँति आज जन-जीवन भी प्रदूषित हो गया है। अनेक प्रकार की अशुद्धियां, विकार, विचार और व्यवहार का कूड़ा-कचरागंदगी जन-जीवन रूपी गंगा में मिल गया है। इसलिए मंगलमय धर्म भी प्रदूषण युक्त होकर अमंगल का निवारण नहीं कर पा रहा है। | अमंगल के निवारण हेतु शुद्धि आवश्यक है। पर्यावरण शुद्ध होने से हमारा सामाजिक, भावनात्मक वातावरण शुद्ध होगा। आहार शुद्धि से विचार शुद्धि का सम्बन्ध है। व्यसन और आर्थिक विषमता, मानव समाज को घुन की भाँति खोखला बना रहे हैं। धर्म के इन मंगल कारक सामयिक सन्दर्भो पर आज चिन्तन, मनन, और वर्तन परम आवश्यक हो गया है। प्रस्तुत खण्ड में इन्हीं बिन्दुओं पर विभिन्न विद्वानों और समाजशास्त्रियों ने अपने मननीय विचार और सुझाव प्रस्तुत किये हैं। लापहर C लण्डरल्यावएण्य पाएROG 00000000000000 2690.00.0000DDNDDED Sal900%A800000490403 4:00 2-06 000 000000 0000000000 00.00000.00PMCOME 0. 00 ONare
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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