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________________ 67007060030604 0000000 .000000000 202TROD GO 6000760 000000000 Ama 005 DDSDOGaee 6000 881 ५१८ Song99999 1990) उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । FP906नव चेतना को लेकर आए। जैन धर्म की सांस्कृतिक देन के सम्बन्ध धन-धान्य एवं वैभव का संघर्ष कम है, परन्तु विचारधाराओं की 20690994 में प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. राधाकमल मुखर्जी लिखते हैं-१३ । विपरीतता और दुराग्रहशीलता का संघर्ष सर्वाधिक है। रूस और "भारतीय सभ्यता को जैनधर्म की सर्वोच्च मूल्य की देनें हैं-प्रत्येक अमेरिका, इंगलेण्ड और दक्षिण अफ्रीका, ईरान और ईराक, जीवधारी के प्रति उदारता और तपस्या, वस्त्रत्याग तथा उपवासादि तमिल-लंका, हिन्दुस्तान-पाकिस्तान आदि देशों के संघर्ष में वैचारिक RSS के प्रति विश्वजनीन भावना; यह बात केवल साधुओं ने ही नहीं, अहंकार की मात्रा सर्वाधिक है। शारीरिक हिंसा की अप्रेक्षा श्राविकाओं ने ही नहीं, किन्तु जन-सामान्य ने भी स्वीकार की। वैचारिक हिंसा (दूसरों के विचारों का दमन) अधिक घातक है। सुप्रसिद्ध काव्यग्रन्थ 'तिरुक्कुरल' के ३३वें परिच्छेद में अहिंसा अतः अनेकान्त दर्शन में परमत सहिष्णुता और सद्भावना को बहुत 38 8 के विषय में ये मर्मस्पर्शी वचन कहे गये हैं-१४ महत्त्व दिया गया है। सब धर्मों में श्रेष्ठ है, परम अहिंसा धर्म। _ सैद्धान्तिक कट्टरता (Dogmatism) की दुराग्रहशीलता का हिंसा के पीछे लगे, पाप भरे सब कर्म॥१॥ जैन-विचार धारा ने सदा विरोध किया है। वैचारिक स्वातन्त्र्य होने पर ही वैचारिक पूर्णता आ सकती है। वैदिक एवं औपनिषदिक जिनकी निर्भर जीविका, हत्या पर ही एक। वैचारिकता में स्पष्ट टकराहट है। कर्मकाण्ड का गीता में भी विरोध मृत-भोजी उनको विबुध, माने हो सविवेक॥९॥ 200000 परिलक्षित होता है। पश्चिम में और विशेष रूप से ग्रीस में तो जैन परम्परा ने अहिंसा का वास्तव में सम्पूर्ण विश्व को सुकरात जैसे स्वतन्त्र और निर्भीक विचारकों की आज भी विश्व FODD.spard अनोखा वरदान ही दिया है। इतनी गहरी, बहुमुख, सूक्ष्म, पर छाप है। सुकरात के मृत्यु का वरण किया, किन्तु अपने विचार व्यावहारिक एवं निश्चयात्मक दृष्टि अन्यत्र दुर्लभ है। जैन-अहिंसा नहीं बदले। उसने कहा,१६ के आध्यात्मिक पक्ष के साथ उसके व्यावहारिक और आचारमूलक { "There are many ways of avoiding death in पक्ष के अन्तर्गत रात्रि भोजन परित्याग, मांसाहार त्याग एवं गालित । every danger if a man is not ashamed to say and जल-पान की विशेष चर्चा है। to do anything. But, my friends, I think it is a अहिंसा के व्यापकतम प्रभाव के विषय में आचारांग में अत्यन्त्र much harder thing to escape from wickedness than from death, for wickedness is swifter than प्रभावकारी विवेचन है-१५ death." "अस्थि सत्थं परेण परं नत्थि असत्थं परेण परं।" ____ अर्थात् मनुष्य यदि इतना बेशर्म हो जाए कि वह मृत्यु से बचने अर्थात् शस्त्र एक से बढ़कर एक हैं। अशस्त्र-अहिंसा से । के लिए कुछ भी बोलने और करने के लिए तैयार है, तो मृत्यु को बढ़कर कोई शस्त्र नहीं। इसका अचूक प्रभाव होता है। टाला जा सकता है। परन्तु, मित्रो, दुष्टता की अपेक्षा मृत्यु से बच अनेकान्त-अनेकान्त जैनदर्शन का एक प्रतिनिधि पारिभाषिक । निकलना सरल है, क्योंकि दुष्टता की चाल मृत्यु से अधिक तेज शब्द है। इसके साथ स्याद्वाद एवं सप्तभंगी शब्द भी जुड़े हैं। इन होती है। तीन शब्दों को सही सन्दर्भ में समझकर ही जैन दर्शन को समझा सुकरात ने अपने हत्यारों से मरने के पहले कहा,१७ जा सकता है। अनेकान्त शब्द के द्वारा प्रत्येक वस्तु में सापेक्षिक रूप से विद्यमान अनेक अवस्थाओं या सम्बन्धों को समझा जाता है। "It is much better, and much easier, not to अनेक (एक से अधिक), अन्त अर्थात् धर्म (अवस्थाएँ), यही इस silence reproaches, but to make yourselves as शब्द का अर्थ है। वस्तु में स्थित सापेक्षिक अवस्थाओं को एक साथ perfect as you can. This is my parting prophecy to those who have condemned me." समझकर ध्यान में तो रखा जा सकता है, परन्तु बोलते समय तो एक क्रम अपनाना ही होगा। यही क्रम (विवेचन क्रम) स्याद्वाद शब्द अर्थात् अपने विरोध को दमित न करना अधिक सरल और द्वारा स्पष्ट होता है। किसी वस्तु के एक पक्ष को ही एक बार में श्रेयस्कर होगा, बल्कि खुद को अधिकाधिक निर्दोष एवं पूर्ण बनाना कहा जाता है। वस्त-विवेचन के कुल सात भंग (प्रकार) सप्तभंगी चाहिए। यह मेरी मृत्यु के पूर्व की भविष्यवाणी उन लोगों के प्रति है शब्द द्वारा घोतित होते हैं। जिन्होंने मुझे दोषी ठहराया है। Po0 8 वस्तु को व्यवहार की दृष्टि से अनेक सापेक्ष रूपों में देखा सुकरात का समय आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व का है। जाता है जबकि निश्चयनय (तात्त्विक धरातल पर) अभेदात्मक एक उस समय कितनी वैचारिक असहिष्णुता थी। दमन से सत्य दबाया रूप में ही समझा जाता है। अनेकान्त दर्शन में अपनी वैचारिकता तो जा सकता है, समाप्त नहीं किया जा सकता। जैनदर्शन 100000 के साथ दूसरे व्यक्ति की वैचारिकता को भी सहृदयता और व्यक्तिमात्र की उचित वैचारिकता का स्वागत करता है। वह 1568 ईमानदारी से समझा जाता है। आज विश्व के अनेक राष्ट्रों में समन्यववादी है। 9806:00DDDDD 550 OM 360AUGGEShe AdgadraigaanaseDDDDDDDDA
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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