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________________ 1000002020505 2011 2099000 अध्यात्म साधना के शास्वत स्वर आत्मा के अमर अस्तित्व की आस्था लिए उसकी पवित्रता का प्रयत्न करते हुए अनन्त आनन्द की अनुभूति करना तथा उसमें छिपी अनन्त शक्तियों को जागृत कर तेजोमय, चिन्मय स्वरूप की अभिव्यक्ति करना यही है अध्यात्म की भूमिका। आत्मा को समझे बिना अध्यात्म को नहीं समझा जाता और अध्यात्म को समझने के लिए तप, जप, योग, कर्म से निष्कर्म की स्थिति, गुणस्थान आरोहण आदि को समझना अति आवश्यक है। अध्यात्म के तीन स्तम्भ है१. सम्यग् दर्शन-आत्मा के अस्तित्व का विश्वास और कर्म शास्त्र पर श्रद्धा। २. सम्यग् ज्ञान-आत्म स्वरूप की पहचान और उसकी शुद्धि के साधनों का ज्ञान। ३. सम्यग् चारित्र-आत्मा को कर्म मुक्त करने के लिए जप-तप-ध्यान आदि के प्रयोग और अनुकूल प्रतिकूल परिस्थितियों में समभाव। प्रस्तुत खंड में अध्यात्म साधना के इन्हीं शाश्वत स्वरों की अभिव्यंजना हुई है। अपने-अपने विषय के अधिकारी विद्वानों की लेखनी से, अनुभवी साधकों की अनुभव सिद्ध वाणी से। 9304 Jain Education Intemational 9090590ForPrivatee Rersonal use only 05. 000000000000 90690.003E E65www.jainelibrary.org.
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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