SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 602
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 1 ४७२ उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । साहित्य रूपों की बहुलता और रचना संसार की व्यापकता आपश्री हुई। श्रमण-श्रमणी, श्रावक-श्राविकाओं के चतुर्विध धर्म संघ द्वारा की सृजनशीलता की विशेषताएं रही हैं। इन्हीं विशेषताओं के । अपनी श्रद्धा, आस्था, निष्ठा का आचार्य श्री के श्रीचरणों में आधार पर आपश्री का साहित्य खोज और शोध प्रबन्ध का विषय | समर्पण का यह भव्य चादर समारोह वस्तुतः एक भाव-भीना हो गया है। आपश्री के साहित्य के गवेषणात्मक अध्ययन की प्रस्तुति आदर-समारोह हो गया था। उन लक्ष-लक्ष धर्मानुरागी जनों की इस पर डॉ. राजेन्द्र मुनि जी को आगरा विश्वविद्यालय द्वारा पी.एच.डी. आस्था एवं अपेक्षा को आज पूज्य आचार्य श्री अपने अद्भुत की उपाधि से विभूषित भी किया गया है। विभिन्न विश्वविद्यालयों कौशल और सामर्थ्य से फलीभूत करने जा रहे हैं। सूत का के पाठ्यक्रमों में भी आपश्री के ग्रंथों को स्थान प्राप्त हुआ है। एक-एक धागा जैसे संगठित होकर चादर बना, उसी भाँति एकत्व विद्वद्जनों द्वारा आपश्री की कृतियों को सराहना और आदर प्राप्त में बँधकर संघ भी संगठित रहे, उसकी समस्त शक्ति और क्षमता हुआ है। अपने मूल्यवान साहित्य के बल पर आपश्री अत्यन्त व्यापक जनहित की ओर उन्मुख हो जाय-संघ की इस महत्वाकांक्षा लोकप्रिय और अबाध श्रद्धा के पात्र भी हो गये हैं। की पूर्ति में आचार्य श्री दत्त-चित्तता के साथ संलग्न हैं। आचार्य श्री के सक्षम हाथों में नेतृत्व की बागडोर सौंपकर संघ आज अपनी प्रगति के सोपान गति-प्रगति, विकास और उन्नयन के लिए आश्वस्त है, निश्चिंत है। श्रमण संघ के द्वितीय पट्टधर आचार्य सम्राट श्री आनन्द ऋषि आपश्री का विमल एवं विवेकपूर्ण संरक्षण पाकर संघ धन्य हो उठा जी म. का ध्यान भी धर्म तत्व के द्रष्टा और रचनात्मक व्यक्तित्व है-कृतकृत्य हो गया है। के धनी आपश्री की ओर आकर्षित हुआ। आचार्य सम्राट के गहन एवं सूक्ष्म निरीक्षण परीक्षण में आपश्री की गतिविधियों, प्रवृत्तियों, आचार्य परम्परा और आपश्री का आचार्यत्व व्यक्तित्व, प्रभाव एवं उपलब्धियों को सर्वोपरि एवं उत्कृष्ट स्थान आचार्य पद श्रमण संघ का सर्वोच्च सत्ता सम्पन्न, शिखरस्थ पद प्राप्त हुआ। आचार्य सम्राट ने मन ही मन यह भावना निर्मित कर है। संघ-वस्तुतः अनेकता में एकता का प्रतीक है। स्थानकवासी जैन ली थी कि देवेन्द्र मुनि जी ही मेरे उत्तराधिकारी होने की यथार्थ समाज कभी अनेकानेक सम्प्रदायों में विभक्त था। कालान्तर में और समुचित पात्रता रखते हैं। पूना सन्त-सम्मेलन में आचार्य सम्राट एकीकरण की अन्तःप्रेरणा जागृत हुई और विभिन्न सम्प्रदायों का श्री आनन्द ऋषि जी म. ने श्रमण संघ के समस्त पदाधिकारी एक समन्वित रूप गठित हुआ और यह नया संगठन-“अखिल मुनियों तथा प्रमुख साध्वियों-श्रावक और श्राविका चतुर्विध संघ से भारतीय श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन श्रमण संघ" के रूप में परामर्श पर १२ मई १९८७ को घोषित किया कि श्री देवेन्द्र अस्तित्व में आया। एकीकरण की यह महान् घटना वि. सं. २००९ मुनि शास्त्री को श्रमण संघ का उपाचार्य मनोनीत किया जाता है। में घटित हुई। इस चतुर्विध संघ के चार अंग हैं-श्रमण, श्रमणी, स्वयं आचार्य सम्राट ने आपश्री को उपाचार्य पद की चादर भी श्रावक एवं श्राविका। ओढ़ाई। डॉ. शिवमुनि जी का मनोनयन युवाचार्य के रूप में हुआ। प्रस्तुत एकीकरण एवं संघ की स्थापना में स्थानकवासी जैन २८ मार्च १९९२ तदनुसार चैत्र कृष्णा दशमी, शनिवार को समाज के मूर्धन्य मुनियों की महत्वपूर्ण भूमिका रही। आगम संथारा-संलेखना पूर्वक आचार्य सम्राट आनन्द ऋषि जी म. का महोदधि श्रद्धेय श्री आत्माराम जी म. को संघ के आदि-आचार्यस्वर्गारोहण हुआ। प्रथम पट्टधर होने का गौरव भी प्राप्त हुआ। इनके उत्तराधिकारी- तदनन्तर अक्षय तृतीया का वह मंगल दिवस (१५ मई, द्वितीय पट्टधर राष्ट्र सन्त जैन धर्म दिवाकर आचार्य सम्राट श्री १९९२) भी आया जब श्रमण संघ को युगद्रष्टा, संघ पुरुष, आनन्द ऋषि जी महाराज मनोनीत हुए। आपको आचार्य पद की मतिमान एवं कुशल अनुशास्ता पूज्य श्री देवेन्द्र मुनि जी शास्त्री का चादर, अजमेर में वि. सं. २०१९ तदनुसार माघ कृष्णा ९ दिनांक प्रबुद्ध नेतृत्व आचार्य श्री के रूप में प्राप्त हुआ। श्रमण संघ और ३०-१-१९६३ को ओढ़ाई गई। आप ही के उत्तराधिकारी तृतीय अखिल भारतीय स्थानकवासी जैन काँफ्रेंस ने सर्व-सम्मति से पट्टधर के रूप में जनप्रिय सन्त-शिरोमणि आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि आपश्री को आचार्य पद की गरिमा से विभूषित कर दिया। यह जी मनोनीत हुए। सहस्रों श्रावक संघों, अनेक तपी-जपी, निश्चय भी कर लिया गया कि आचार्य पद के चादर समारोह का ज्ञानी-ध्यानी, यशस्वी-मनस्वी मुनिजनों, सैकड़ों साधिकाओं तथा भव्य आयोजन उदयपुर में, २८ मार्च १९९३ को रखा जाय। लक्ष-लक्ष श्रावक-श्राविकाओं का समन्वित प्रतीक हो गया हैसर्वथा आधिकारिक रूप में ही आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि जी म. “श्रमण संघ और संघ के ही सर्वोच्च प्रतिनिधि एवं पर्याय हो गये आचार्यत्व की अप्रतिम गरिमा एवं महिमा से विभूषित हुए हैं। हैं-अनन्त आस्था के प्रतीक, प्रज्ञा पुरुष, संघाधिप हमारे लोकप्रिय निश्चयानुसार चादर समारोह का आयोजन हुआ। उदयपुर आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि जी महाराज। नगरी को अपने एक और महान् सुपुत्र श्रमणाधिप, परमश्रद्धेय अनुशासनप्रियता के साथ ही आचार्यश्री अत्यन्त विनयशील, आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि जी म. का अभिनन्दन करने का सुअवसर । बड़ों का सम्मान करने वाले, छोटों को आदर देकर प्रेम अर्जित प्राप्त हुआ। चादर समारोह की अपूर्व गरिमा इस नगर को प्राप्त करने वाले एक गुणज्ञ और गुणानुरागी अजातशत्रु व्यक्तित्व है। Jain Education Intematon all For Private & Personal Use Only D DD D www.jainelibrary.org
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy