SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 575
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इतिहास की अमर बेल प्रतिक्रमण पूर्ण हुआ। रात्रि के दस बजे होंगे कि महाराजश्री ने सभी श्रमणों को और श्रावकों को कहा कि वस्त्र पात्र आदि जो भी तुम्हारे नेश्राय की सामग्री है वह सारी सामग्री लेकर इस स्थानक से बाहर चले जाओ। श्रावकों को भी जो १११ व्यक्ति पौषध किये हुए थे उन सभी को कहा कि बाहर निकलो। श्रावकों ने और श्रमणों ने निवेदन किया- गुरुदेव, रिमझिम वर्षा आ रही है। इस वर्षा के समय हम कहा जाए? और रात भी अँधियारी है। E महाराजश्री ने कहा- मैं कहता हूँ, सभी मकान खाली कर दें। चाहे वर्षा है, उसकी चिन्ता न करें। महाराजश्री के आदेश से सभी बाहर निकल गये। महाराजश्री उसी मकान में विराजे रहे। जब सभी बाहर चले गये तब महाराजश्री ने हाथ में रजोहरण लेकर सारे मकान को देखा कि कहीं कोई नींद में सोया हुआ तो नहीं है। सभी को देखने के पश्चात् महाराजश्री बाहर पधारे और ज्यों ही बाहर पधारे त्यों ही वह तीन मंजिल का भवन एकाएक हड़हड़ करता हुआ ढह गया। तब लोगों को ज्ञात हुआ कि महाराजश्री ने सबको मकान से बाहर क्यों निकाला। यह थी उनकी आध्यात्मिक शक्ति जिससे भविष्य में होने वाली घटना का उन्हें सहज परिज्ञान हो जाता था । पूज्य गुरुदेव ज्येष्ठमलजी महाराज एक बार समदड़ी विराज रहे थे। प्रातःकाल का समय था। एक श्रावक रोता हुआ धर्मस्थानक में आया - गुरुदेव, मैं आँखों की भयंकर व्याधि से अत्यधिक परेशान हो गया हूँ, अनेक उपचार किये किन्तु व्याधि मिट ही नहीं रही है अब तो आपकी ही शरण हैं। आपश्री उस समय शौच के लिए बाहर पधारने वाले थे। आपने कहा- भाई, सन्तों के पास क्या है, यहाँ तो केवल धूल है। उस व्यक्ति ने आपके चरणों की धूल लगाई त्यों ही व्याधि इस प्रकार नष्ट हो गई कि उसे पता ही नहीं चला कि पहले व्याधि कभी थी। रोता हुआ आया था और हँसता हुआ लौटा। अनेकों व्यक्ति भूत-प्रेत आदि की पीड़ाओं से ग्रसित थे। वे आपश्री से मांगलिक सुनकर पूर्ण रूप से स्वस्थ हो जाते थे। पण्डितप्रवर नारायणदासजी महाराज जिनको आपश्री ने दीक्षा प्रदान की थी और उन्हें पण्डितप्रवर रामकिशनजी महाराज का शिष्य घोषित किया था, उनके एक शिष्य थे मुलतानमलजी महाराज । जब ज्येष्ठमलजी महाराज का स्वर्गवास हो गया तब उन्हें एकाएक खून की उल्टी और दस्त होने लगे और भयंकर उपद्रव भी करने लगे। उस समय नागीर से मन्त्रवादी जुलाहा आया। उसने मन्त्र के द्वारा जिन्द को बुलवाया कि तू मुनिश्री को कब से लगा हुआ है? जिन्द ने कहा-मैं आज से पाँच वर्ष पूर्व लगा था इन्होंने मेरे स्थान पर पेशाब कर दिया था किन्तु इतने समय तक ज्येष्ठमलजी महाराज जीवित थे, उनका आध्यात्मिक तेज इतना था कि मैं प्रकट न हो सका। यदि मैं प्रगट हो जाता तो वे एक दिन भी मुझे नहीं रहने देते। उनके स्वर्गवास के बाद ही मेरा जोर चला। यह थी उनकी आध्यात्मिक शक्ति जिससे उनके सामने भूत भी भयभीत हो जाते थे। आपश्री के प्रमुख शिष्य थे नेणचन्दजी महाराज जो समदड़ी के ही निवासी थे और लुंकड परिवार के थे। आपका स्वभाव बहुत ही 2974 Jain Education International ४५१ मिलनसार तथा सेवापरायण था। आपके दूसरे शिष्य गढ़सिवाना के निवासी हिन्दूमल जी महाराज थे जो शंका परिवार के थे। हिन्दूमलजी महाराज ने आर्हती दीक्षा ग्रहण करते ही दूध, दही, घी तेल, मिष्ठान इन पाँच विगय का परित्याग का दिया था। साथ ही वे एक दिन उपवास और दूसरे दिन भोजन लेते थे साथ ही अनेक बार ये आठ-आठ दस-दस दिन के उपवास भी करते थे। किन्तु पारणे में सदा रूक्ष आहार ग्रहण करते थे। बहुत ही उग्र तपस्वी थे। श्रद्धेय श्री ताराचन्दजी महाराज ज्येष्ठमलजी महाराज के लघु गुरुभ्राता थे। किन्तु आचार्य पूनमचन्द जी महाराज का दीक्षा के तीन वर्ष पश्चात् स्वर्गवास हो जाने से आपश्री ज्येष्ठमलजी महाराज के पास ही रहे। उन्हीं के पास अध्ययन किया और गुरु की तरह उन्हें पूजनीय मानते रहे। आपकी उन्होंने बहुत ही सेवा की जिसके फलस्वरूप आपके हृदय से अन्तिम समय में यह आशीर्वाद निकला - ताराचन्द, तेरे आनन्द ही आनन्द होगा। आपके जीवन के अनेकों चमत्कारिक संस्मरण हैं। किन्तु • विस्तारभय से मैं यहाँ उन्हें उट्टकित नहीं कर रहा हूँ श्री ज्येष्ठमलजी महाराज को अनेक बार संघों ने आचार्य पद ग्रहण करने की प्रार्थना की। किन्तु आपश्री ने सदा यही कहा कि मुझे आचार्य पद नहीं चाहिए। मैं सामान्य साधु रहकर ही संघ की सेवा करना चाहता हूँ। आप में नाम की तनिक भी भूख नहीं थी राजस्थान के सैकड़ों ठाकुर आपके परमभक्त थे। आप उपाधि के नहीं समाधि के इच्छुक थे। संवत् १९७४ में आप समदड़ी पधारे और साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका चारों संघ को बुलाकर कहा- मेरा अब अन्तिम समय सन्निकट आ चुका है। आपने शान्त और स्थिर मन से निश्शल्य होकर आलोचना की, संलेखना व संथारा किया। श्रावकों ने निवेदन किया- गुरुदेव! आपश्री का शरीर पूर्ण स्वस्थ है। असमय में यह संधारा कैसे ? आपश्री ने कहा- मुझे तीन दिन का संधारा आयेगा । वैशाख शुक्ला चतुर्थी के दिन मध्याह्न में एक बजे जिस समय पाली से जो ट्रेन समदड़ी स्टेशन पर आती है, उसके यात्रीगण समदड़ी गाँव में आएँगे और मेरे दर्शन करेंगे, उसी समय मेरा स्वर्गवास हो जाएगा। जैसे महाराजश्री ने कहा था उसी दिन, उसी समय आप श्री का स्वर्गवास हुआ, स्वर्गवास के समय हजारों लोग बाहर से दर्शनार्थ उपस्थित हुए थे। अध्यात्मयोगी ज्येष्ठमलजी महाराज अपने युग के एक महान चमत्कारी वचनसिद्ध महापुरुष थे। आपका जीवन सादगीपूर्ण था। आप आडम्बर से सदा दूर रहते थे और गुप्त रूप से अन्तरंग साधना करते थे। आपकी साधना मन्दिर के शिखर की तरह नहीं किन्तु नींव की ईंट की तरह थी। आज भी जो श्रद्धालु आपके नाम का श्रद्धा से स्मरण करते हैं ये आधि-व्याधि-उपाधि से मुक्त होते हैं। आपके नाम में भी वह जादू है जो जन-जन के मन में आह्लाद उत्पन्न कर देता है। आपसे जैन शासन की अत्यधिक प्रभावना हुई। For Private & Personal Use Only 208000 /www.jainelibrary.org
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy