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________________ १४२६ उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । आवश्यकता नहीं, मैं ऐसी लड़कियों का मुँह देखना भी पाप (४) दूसरों के द्वारा शुक्र-पुद्गलों के योनि-देश में अनुप्रविष्ट समझता हूँ। अतः इसे नंगी तलवार के झटके से खतम कर दो किये जाने पर, ताकि अन्य को भी ज्ञात हो सके कि दुराचार का सेवन कितना (५) नदी, तालाब आदि में स्नान करती हुई स्त्री के योनि-देश भयावह है। भण्डारी खींवसी ने जब बादशाह की यह आज्ञा सुनी में शुक्र-पुद्गलों के अनुप्रविष्ट हो जाने पर। तो वे काँप उठे। उन्होंने बादशाह से निवेदन किया-हुजूर, पहले गहराई से जाँच कीजिए, फिर इन्साफ कीजिए। किन्तु आवेश के इन पाँच कारणों से स्त्री पुरुष का सहवास न करती हुई भी कारण बादशाह ने एक भी बात न सुनी। खींवसी जी गिड़गिड़ाते गर्भ को धारण कर सकती है। रहे कि मनुष्य मात्र भूल का पात्र है, उसे एक बार क्षमा कर आप सारांश यह है कि पुरुष के वीर्य पुद्गलों का स्त्री-योनि में विराट हृदय का परिचय दीजिए, किन्तु बादशाह किसी भी स्थिति में समाविष्ट होने से गर्भ धारण करने की बात कही गयी है। बिना अपने हुकुम को पुनः वापिस लेना नहीं चाहता था। खींवसी जी वीर्य पुद्गलों के गर्भ धारण नहीं हो सकता। आधुनिक युग में भण्डारी कन्या को मौत के घाट उतारने की कल्पना से सिहर उठे। कृत्रिम गर्भाधान की जो प्रणाली प्रचलित है उसके साथ इसकी मनःशान्ति के लिए वे आचार्यश्री के पास पहुँचे। आचार्यश्री ने तुलना की जा सकती है। सांड़ या पाड़े के वीर्य पुद्गलों को उनके उदास और खिन्न चेहरे को देखकर पूछा-भण्डारीजी! आज निकालकर रासायनिक विधि से सुरक्षित रखते हैं या गाय और आपका मुखकमल मुरझाया हुआ क्यों है? आप जब भी मेरे पास भैंस की योनि से उसके शरीर में वे पुद्गल प्रवेश कराये जाते हैं आते हैं उस समय आपका चेहरा गुलाब के फूल की तरह खिला और गर्भकाल पूर्ण होने पर उनके बच्चे उत्पन्न होते हैं। अमेरिका में रहता है। भण्डारीजी अति गोपनीय राजकीय बात को आचार्यश्री से 1 'टेस्ट-ट्यूब बेबीज' की शोध की गयी है। उसमें पुरुष के निवेदन करना नहीं चाहते थे। उन्होंने बात को टालने की दृष्टि से वीर्य-पुद्गलों को काँच की नली में उचित रसायनों के साथ रखा कहा-गुरुदेव! शासन की गोपनीय बातें हैं। आपसे कैसे निवेदन जाता है और उससे महिलाएँ कृत्रिम गर्भ धारण करती हैं। करूँ? कई समस्याएँ आती हैं, जब उनका समाधान नहीं होता है आगम साहित्य में जहाँ पर स्त्रियाँ बैठी हों उस स्थान पर मुनि तो मन जरा खिन्न हो जाता है। को और जहाँ पर पुरुष बैठे हों उस स्थान पर साध्वी को एक __आचार्यश्री ने एक क्षण चिन्तन किया और मुस्कराते हुए अन्तर्मुहूर्त तक नहीं बैठना चाहिए, जो उल्लेख है वह प्रस्तुत सूत्र के कहा-भण्डारीजी, आप भले ही मेरे से बात छिपायें, किन्तु मैं प्रथम कारण को लेकर ही है। इन पाँच कारणों में कृत्रिम गर्भाधान आपके अन्तर्मन की व्यथा समझ गया हूँ। बादशाह की क्वारी पुत्री का उल्लेख किया गया है। किसी विशिष्ट प्रणाली द्वारा शुक्र को जो गर्भ रहा है और उसे मरवाने के लिए बादशाह ने आज्ञा पुद्गलों का योनि में प्रवेश होने पर गर्भ की स्थिति बनती है जिसे प्रदान की है, उसी के कारण आपका मन म्लान है। क्या मेरा कथन आधुनिक वैज्ञानिकों ने भी सिद्ध कर दिया है। सत्य है न? सुश्रुत संहिता में लिखा है१९ कि जिस समय अत्यन्त कामातुर मेरे मन की बात आचार्यश्री कैसे जान गये यह बात भण्डारी हुई दो महिलाएँ परस्पर संयोग करती हैं, उस समय परस्पर जी के मन में आश्चर्य पैदा कर रही थी। उन्होंने निवेदन किया- एक-दूसरे की योनि में रज प्रवेश करता है तब अस्थिरहित गर्भ भगवन्, आपको मेरे मन की बात का परिज्ञान कैसे हुआ? आप समुत्पन्न होता है। जब ऋतुस्नान की हुई महिला स्वप्न में मथुन तो अन्तर्यामी हैं। कृपा कर यह बताइये कि उस बालिका के प्राण क्रिया करती है तब वायु आर्तव को लेकर गर्भाशय में गर्भ उत्पन्न किस प्रकार बच सकते हैं? होता है और वह गर्भ प्रति मास बढ़ता रहता है तथा पैतृक गुण (हड्डी, मज्जा, केश, नख आदि) रहित मांस पिण्ड उत्पन्न होता है। आचार्यप्रवर ने कहा-भण्डारी जी, स्थानाङ्गसूत्र में१८ स्त्री पुरुष का सहवास न करती हुई भी वह पाँच कारणों से गर्भ धारण तन्दुल वैचारिक प्रकरण में गर्भ के सम्बन्ध में विस्तार से करती है, ऐसा उल्लेख है। वे कारण हैं निरूपण किया गया है और कहा कहा है जब स्त्री के ओज का संयोग होता है तब केवल आकाररहित मांसपिण्ड उत्पन्न होता है। (१) अनावृत तथा दुनिषण्ण-पुरुष वीर्य से संसृष्ट स्थान को स्थानांगरे के चौथे ठाणे में भी यह बात आयी है। गुह्य प्रदेश से आक्रान्त कर बैठी हुई स्त्री के योनि-देश में । शुक्र-पुद्गलों का आकर्षण होने पर, आचार्यश्री ने प्रमाण देकर यह सिद्ध किया कि बिना पुरुष के सहवास के भी रजोवती नारी कुछ कारणों से गर्भ धारण कर (२) शुक्र-पुद्गलों से संसृष्ट वस्त्र के योनि-देश में अनुप्रविष्ट सकती है। बादशाह की पुत्री ने जो गर्भ धारण किया है, वह बिना हो जाने पर, पुरुष के संयोग के किया है-ऐसा मेरा आत्मविश्वास कहता है। तुम (३) पुत्रार्थिनी होकर स्वयं अपने ही हाथों से शुक्र-पुद्गलों को बादशाह से कहकर उसके प्राण बचाने का प्रयास करो। यह सुनकर योनि-देश में अनुप्रविष्ट कर देने पर, दीवान जी को अत्यधिक आश्चर्य हुआ। उनका मन-मयूर नाच उठा - REPOROP 30000000000w.jainelibrary.org dan Education Internationale C E0 2 9 F6223050000DCFor Private a Personal use ongsRK0
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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