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________________ 159086230 16 १४१८ उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । ब्रह्मचर्य का सीधा संबंध शील से है। इसके लिए सर्वप्रथम बुद्ध "सूक्ति में सामाजिक सूत्र और आध्यात्मिक बुझबोध का अक्षय के पाँच व्रत 'पंचशील' कहलाए : कोष होता है। उसमें मानव प्रकृति का समीकरण होता है जब और -सदाचार के गर्भ में अहिंसा ज्यों ही उसके मनमानस के समक्ष किसी सम्बन्ध का एक विशेष लक्ष्य अथवा उपलक्ष्य सामने आता है तो उसे वह बहुत कुछ -सत्य निष्कर्षित रूप में उपन्यस्त कर देता है।" -अस्तेय श्री पुष्कर मुनि जी महाराज के प्रवचनों पर आधारित यह -ब्रह्मचर्य सूक्तियों का भंडार आज के संदर्भ में बहुत उपयोगी है, -अपरिग्रह वृत्ति चरित्र-निर्माण के लिए इसका महत्त्व सर्वाधिक है। आचार्य श्री के इन्द्रियों और मन की सुन्दर आदतों को भी शील कहा जाता } प्रवचन, काव्य, कथा लखन आदि क आधार पर विद्वान् शिष्य है; तथा सद्व्यवहार भी शील शब्द का लक्षण माना जाता है। आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि जी ने अदभुत कलापूर्ण संपादन कर माँ-सरस्वती के भंडार को अक्षय कीर्ति दी है। इसके साहित्यिक महत्त्व की ओर तो डॉ. प्रचंडिया ने संकेत किया ही है पर सामाजिक महत्त्व सर्वाधिक है : DOODHD सोच कर बोलना तुम सोच समझ कर मुख खोलो। फिर स्वल्प वचन मीठे बोलो।।टेर।। है मिश्र मिथ्या सावध भाषा। मत बोलन की रखो अभिलाषा॥ और सत्य व्यवहार से अघ धोलो॥१॥ मत बोलना अणगमती वाणी। कर्कश कठोर है दुःख दानी॥ अवसर को देख कर चुप हो लो॥२॥ बिना तोल के बोलने वाला है। जूते खाता मतवाला है। वचनों में विष को मत घोलो॥३॥ क्रोध लोभ भय हास्य में। मत बोल झूठ उपहास्य में॥ मत अपना जीवन झकझोलो।।४।। वाणी पे संयम रखना है। जिन वाणी का स्वाद चखना है। "पुष्कर मुनि" संयम बहुमोलो॥५॥ -उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि (पुष्कर-पीयूष से) Jan Education foternationaleI D 0000 For Private & Personal use only D १ o SOIDRO s ० .jainelibrary.org
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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