SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 508
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Padgoato 000000 AGO90000000000 ३३९० 903930 उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ धर्म का कल्पवृक्ष : जीवन के आंगन में -विदुषी रल महासती पुष्पवती जी म. 2000 (धर्म सचमुच ही कल्पवृक्ष है, परन्तु उनके लिए जो सच्चे मन से धर्म का आचरण करते हैं। जीवन के आंगन में निष्ठा और निष्कामता 350104 के जल से उसका सिंचन करते हैं। उनके जीवन प्रांगण में जब धर्म का कल्पवृक्ष लहराता है तो शील, सत्य, सुख, शान्ति, संतोष और 300.00 भौतिक विभूतियाँ के मधुर फलों का अम्बार लग जाता है। पूज्य गुरुदेव ने इसी दृष्टि से धर्मरूपी कल्पवृक्ष के मधुर फलों का हृदयस्पर्शी रोचक वर्णन प्रस्तुत किया है। विभिन्न अवसरों पर विभिन्न दृष्टियों से। विद्वान् मनीषी आचार्यश्री देवेन्द्र मुनिजी द्वारा संपादित प्रस्तुत प्रवचन पुस्तक पर समीक्षात्मक चिन्तन प्रस्तुत किया है विदुषीरल महासती पुष्पवती जी ने)। -सम्पादक 209080500ROR कल्पवृक्ष दस प्रकार के बताये गए हैं। कहा जाता है कि प्रस्तुत ग्रंथ दो खण्डों में विभक्त है। प्रथम खण्ड में धर्म और प्राचीन काल में इन कल्पवृक्षों से मनुष्य अपनी सभी प्रकार की जीवन पर गहराई से चिन्तन किया गया है। धर्म और जीवन के आवश्यकताओं की पूर्ति कर लिया करता था। वर्तमान काल में तो विभिन्न पक्षों व विभिन्न समस्याओं पर जो अनुचिन्तन किया गया है अब कल्प वृक्ष कहीं दिखाई नहीं देते। इनके नाम और विशेषतायें | वह सद्गुरुदेव श्री की बहुश्रुतता व अनुभूति की गहनता का स्पष्ट शास्त्रों की वस्तु बनकर रह गई हैं। वर्तमान में तो हम धर्म को 1 परिचायक है। द्वितीय खण्ड में अध्यात्म और दर्शन पर महत्वपूर्ण कल्पवृक्ष कह सकते हैं। कारण कि धर्म की आराधना से सभी विश्लेषण है। सम्यग् दर्शन, सम्यग् ज्ञान और सम्यग् चारित्र जैसे प्रकार के सुख, सुविधा और शांति को प्राप्त किया जा सकता है। नीरस विषय को ऐसे सरस रूप में प्रस्तुत किया है जिसे पाठक इसलिए धर्म को जीवन के आंगन का कल्पवृक्ष कहा गया है। राष्ट्र सहज रूप से आत्मसात कर सकता है। उगती उभरती पीढ़ियों की संत, राजस्थान केसरी, पूज्य गुरुदेव उपाध्याय (स्व.) श्री पुष्कर मानसिक पूर्णता के लिए ये प्रवचन अनमोल रसायन के समान हैं, मुनि जी म. सा. के प्रवचनों का एक संग्रह भगवान श्री महावीर की । जीवन की निधि हैं। वाल्टहिटमेन ने अपनी एक पुस्तक के विषय में २५वीं निर्वाण शताब्दी के उपलक्ष्य में उनके विद्वान सुशिष्य श्रमण कहा था, "जो इस पुस्तक को छूता है वह एक मनुष्य का स्पर्श संघ के वर्तमान आचार्य सम्राट श्री देवेन्द्र मुनिजी म. सा. ने करता है।" यह उक्ति प्रस्तुत ग्रन्थ के संबंध में भी पूर्ण चरितार्थ संपादित कर प्रकाशित करवाया। इस प्रवचन संग्रह को नाम दिया । होगी।" (पृष्ठ ८)। गया-“धर्म का कल्पवृक्ष : जीवन के आंगन में"। प्रवचन संग्रह का अपने प्राक्कथन में सुविख्यात साहित्यकार श्री श्रीचंद जी यह नाम सार्थक प्रतीत होता है। इस प्रवचन की महत्ता पर प्रकाश सुराना “सरस' ने लिखा है-“इन प्रवचनों में सिर्फ साधना क्षेत्र के डालते हुए अपने संपादकीय में उन्होंने लिखा है-"धर्म का कल्पवृक्ष ही अनुभव नहीं, किन्तु जीवन के बहुव्यापी, बहुआयामी अनुभव जीवन के आंगन में" एक जीवनदर्शी सफल अभिभाषक सन्त के ललक रहे हैं। नीति, व्यवहार, धर्म-साधना हर क्षेत्र के अनुभव, हर अभिभाषणों का सुन्दर सरस संग्रह है, जो आधुनिक समाज को अनुभव का निचोड़ इनमें मिलता है।" (पृष्ठ १२)। उबुद्ध करने वाले हैं। युगधर्म की व्याख्या को सही माने में चरितार्थ करने वाले हैं और समाज के सर्वांगीण हित में योगदान प्रस्तुत प्रवचन संग्रह के समस्त प्रवचनों का वर्गीकरण करके देने वाले हैं। इन प्रवचनों में व्यर्थ के काल्पनिक आदर्शों की । दो खण्डों में प्रकाशित किया गया है। प्रथम खण्ड का नाम दिया गगन-विहारी उड़ान नहीं है, न बौद्धिक विलास ही है और न धर्म, गया है धर्म और जीवन। इस खण्ड में कुल उन्चालीस प्रवचन दिए सम्प्रदाय, राष्ट्र के प्रति व्यक्तिगत या समूहगत आक्षेप ही है।। गए हैं। दूसरा खण्ड है अध्यात्म और दर्शन का। इस खण्ड में अभिप्राय यह है कि प्रस्तुत पुस्तक के सभी भाषण जीवन-स्पर्शी हैं, इक्कीस प्रवचन दिए गए हैं। प्रवचन के पूर्व खण्ड के शीर्षक के जीवन को उन्नत बनाने वाले हैं। जिन्दगी की सही मुस्कान को संबंध में जो टिप्पणी दी गई है, वह दृष्टव्य है, “जैसे फूल की खिलाने वाले हैं, दिल और दिमाग को तरोताजा बनाने वाले हैं। शोभा सौरभ से, नदी की शोभा जलधारा से और शरीर की शोभा समाज की विषमता और अभद्रता को मिटाने वाले हैं, प्राचीनता में प्राणों से है, उसी प्रकार जीवन की शोभा धर्म से है। धर्ममय जीवन नवीनता का रंग भरने वाले हैं। संघ और राष्ट्र की अंध-स्थिति को ही जीवन है।" ज्योतिर्मय बनाने वाले हैं क्योंकि इन भाषणों में त्याग और वैराग्य । धर्म को परखो, मानव ! इस प्रवचन संग्रह का प्रथम प्रवचन का अखण्ड तेज चमक रहा है। अनुभव का प्रकाश जगमगा रहा है। है। प्रारम्भ में इस प्रवचन में धर्म के महत्व को समझाया गया है। आत्म-साधना का गंभीर स्वर गूंज रहा है और मानवीय मूल्यों के फिर पौर्वात्य एवं पाश्चात्य दृष्टिकोण से धर्म की परिभाषायें दी गई प्रतिष्ठान की मोहक सौरभ महक रही है।" हैं। उसके पश्चात् धर्म पर, उसके रहस्य पर और अपने जीवन में 203400 980600300501030 R PAS 18290रकारन्ट रात99DS 1 dalin Education Interihlational pa r a For Private & Personal use only o DASAID Educanopane D 005DD.006200000.00PEEDEEP www.dainelibrary.org
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy