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________________ 00000000000000 456180oolapto तुत ३८६ उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । अस्तेय की मर्यादा को निरूपित किया गया है सातवें प्रवचन मनुष्य अपना सारा जीवन इसी में लगा देता है। एक दिन जीवन कह में। श्रावक के जीवन में अस्तेय की मर्यादा पर सांगोपांग निर्वचन समाप्त हो जाता है किन्तु मनुष्य की इच्छाएँ समाप्त नहीं होती। 6 है। इसके संबंध में कहा गया है कि परिवार, समाज और राष्ट्र में इन्हीं इच्छाओं पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए इनको नियंत्रित - इस प्रकार सावधान रहकर अस्तेय व्रत का पालन किया जाए तो करने के उपाय बताए गए हैं। जब इच्छायें अनन्त होंगी तो परिग्रह GAD सर्वत्र सुख शांति, सुव्यवस्था और आत्मविकास हो सकता है। बढ़ेगा। जैसे-जैसे परिग्रह बढ़ेगा, वैसे-वैसे ही इच्छाओं की मिलावट करना, कम तौलना, कम नापना, घटिया दवाइयाँ, नकली असीमितता का चक्र और बढ़ेगा। फिर इसका कहीं अंत होता - वस्तु बेचना आदि सभी अनाचार है। श्रावक को चाहिए कि । दिखाई नहीं देगा। किन्तु जब अपनी इच्छाओं की पूर्ति में मनुष्य - अतिलोभ में पड़कर इस अप्रामाणिकता से बचने का प्रयास करे। बाधाओं का अनुभव करता है तो वह बेचैन हो उठता है तथा इच्छा क्योंकि इससे श्रावक का सत्य और अस्तेय दोनों व्रत भंग होते हैं। पूर्ति के लिए उचित अनुचित का ध्यान न रखते हुए उलटे सीधे ब्रह्मचर्य की सार्वभौम उपयोगिता पर प्रकाश डाला गया है, कार्य करने लग जाता है। इसलिए बढ़ती हुई इच्छाओं पर नियंत्रण आठवें प्रवचन में। वैसे यहाँ यह उल्लेख करना प्रासंगिक ही होगा आवश्यक ही नहीं अनिवार्य है। इच्छाओं पर नियंत्रण लगाने का कि गुरुदेव ने ब्रह्मचर्य पर विस्तार से प्रकाश डाला है और ब्रह्मचर्य सरल और सहज उपाय है इच्छा परिमाणं व्रत। इच्छा परिमाण व्रत EPH विषयक उनके प्रवचनों का संग्रह उनकी पुस्तक "ब्रह्मचर्य विज्ञान" स्वीकार कर लेने पर किसी प्रकार की कोई बेचैनी/अशांति नहीं S T में संग्रहीत है। यहाँ ब्रह्मचर्य को एक व्रत के रूप में समझाया गया होती है और इस व्रतधारी का कोई भी कार्य रुकता भी नहीं है। काला है। इस प्रवचन में सभी दृष्टि से ब्रह्मचर्य की उपयोगिता पर प्रकाश कारण कि जो सीमा निर्धारित कर ली है, उससे अधिक ग्रहण डाला है और वर्तमान संदर्भ में उसकी उपयोगिता निरूपित करते करने की लालसा स्वाभाविक रूप से नहीं होगी। जब कोई लालसा हुए समसामयिकता भी स्पष्ट कर दी है। ब्रह्मचर्य का अद्भुत प्रभाव होगी ही नहीं तो अशांति और बेचैनी होने का भी कोई कारण नहीं होगा। बताते हुए कहा गया है कि ब्रह्मचारी के मुख से जो कुछ भी निकल 4 जाता है, वह यथार्थ होकर रहता है। इस प्रकार ब्रह्मचर्य के एक से इच्छा परिमाण व्रत ग्रहण करने वाले श्रावक को मृत्यु के समय 10 एक बढ़कर अद्भुत चमत्कार देखकर क्या इसकी उपयोगिता में किसी प्रकार का दुःख नहीं होता। इसका कारण स्पष्ट है कि उसकी DO संदेह हो सकता है? क्या लौकिक, क्या लोकोत्तर सभी क्षेत्रों में कोई इच्छा नहीं होती. वह संतुष्ट रहता है। इसके विपरीत इच्छा ब्रह्मचर्य की उपयोगिता, महत्ता और आवश्यकता से इन्कार नहीं परिमाण व्रत से विमुख महापरिग्रही को मृत्यु के समय में घोर कष्ट जल किया जा सकता (पृष्ठ ३१०)। अपने इस प्रवचन में उन्होंने ऐसे होता है, उसे खासकर अपने धन और साधनों के वियोग होने का तुम कुछ अद्भुत चमत्कारों का उल्लेख भी किया है। । दुःख होता है, जिसमें उसके प्राण अटके रहते हैं। 22 अगले प्रवचन में श्रावक जीवन में ब्रह्मचर्य की मर्यादा पर यहाँ संक्षेप में इच्छा परिमाण व्रत का अर्थ स्पष्ट करना 34 विस्तृत रूप से प्रकाश डाला है। इस प्रवचन में यह बताया गया है। प्रासंगिक होगा। इच्छा परिमाण व्रत का अर्थ-“सांसारिक पदार्थों से तक कि मानव जीवन की सार्थकता उच्छृखल रूप से विषयोप भोग में । संबंधित अशुभ (निकृष्ट, अति और अनुचित) इच्छाओं को छोड़कर नहीं है। गृहस्थ जीवन में ब्रह्मचर्य व्रत आवश्यक क्यों ? विषय को शुभ (उत्कृष्ट और उचित दूसरों के हितों को हानि न पहुँचाने 985 बहुत सुन्दर ढंग से समझाया गया है। इसके पश्चात् विवाह किसके वाली) इच्छाओं को सीमित करना।" यह संकल्प करना कि मैं 2000 लिए आवश्यक और किसके लिए अनावश्यक बताया गया है।। अमूक, इतने पदार्थों से अधिक की इच्छा नहीं करूँगा, इच्छा DOP पर-स्त्री-सेवन से हानियों का विवरण देकर स्वदार से लाभ बताए परिमाण व्रत है। सम्पूर्ण अपरिग्रह व्रत को स्वीकार करने वाले को SDHS5D गए हैं। स्वदार-संतोष की भी मर्यादायें हैं और उन पर भी तो संसार के समस्त पदार्थों पर से इच्छा और मूर्छा का त्याग तु सुव्यवस्थित ढंग से प्रकाश डाला गया है। इसमें स्पष्ट किया गया है करना होता है लेकिन इच्छापरिमाणव्रत धारक को संसार के कि नीतिकारों ने स्पष्ट कहा है कि मैथुन का विधान केवल समस्त पदार्थों से इच्छा मूर्छा का त्याग नहीं करना पड़ता, जो जो - सन्तानोत्पत्ति के लिए है। स्वदार-संतोष व्रती के लिए लगभग बारह } पदार्थ महापरिग्रह में माने जाते हैं या जिन पदार्थों की इच्छा निकष्ट 0 मर्यादाओं का पालन करना आवश्यक बताया गया है। अंत में है. दसरों के लिए घातक है. अनचित है. बलबते से बाहर है। 3 ब्रह्मचर्य रक्षा के उपाय बताए गए हैं। (पृष्ठ ३५७) इच्छा का सरोवर : परिणाम की पाल-यह प्रवचन अपरिग्रह इच्छा परिमाण व्रत का उद्देश्य दुनिया भर के समस्त पदार्थों की व्रत से संबंधित है। इस प्रवचन में मानव-जीवन में अपरिग्रह की विस्तृत इच्छाओं से अपने मन को खींचकर एक सीमित दायरे में F उपयोगिता और आवश्यकता को विस्तार से समझाया गया है। कर लेना है। इच्छा परिमाण व्रत और उसके उद्देश्य को बहुत ही मनुष्य की तृष्णा कभी समाप्त नहीं होती; वरन् तृष्णाएँ सुन्दर रीति से समझाया गया है। इससे अपनी आवश्यकता को 628 उत्तरोत्तर बढ़ती ही रहती हैं। अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए नियंत्रित करने/घटाते जाने का मार्ग प्रशस्त होता है। इधर इच्छा 20000000000303588886 R OS जमलाएरमान 0 00000 6000902ohtPA00. Patoo000000000 200900500CDFRPrivate a Personal use onD0 00000p
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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