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________________ | २७० 360sal AGOO उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । लिए जब कुछ विशिष्ट शोधपूर्ण लिखने का आग्रहपूर्ण निदेश सामान्यतः सन्तों का संयोग प्राप्त होना सौभाग्य की बात मनीषी श्री देवेन्द्र मुनि शास्त्री का प्राप्त हुआ तब लेख तो लिखा | समझना चाहिए। भरी भीड़ में उपाध्यायश्री का सान्निध्य प्राप्त करना गया और वह आदरपूर्वक प्रकाशित भी हुआ। मेरे पास डाक द्वारा वस्तुतः सरल नहीं था, ऐसी स्थिति में जब-जब मुझे अवसर मिला विशाल अभिनन्दन ग्रंथ प्रेषित किया गया था। तत्काल में वह ग्रंथ । उनका सान्निध्य पाने का मैंने उसे खिसकने नहीं दिया। इस प्रकार अपनी विशालता एवं सुधी सामग्री-सम्पदा के लिए पहल करता था। अनेक बार मुझे उनके मंगल दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ उसमें भारतीय विद्या और संस्कृति के अनेक अंगों का सुधी और । था। सधे लेखकों द्वारा मूल्यांकन किया गया है। इतना विपुल, इतना } दिल्ली वर्षावास में जब मुझे उपाध्यायश्री के दूसरी बार मंगल सुन्दर ग्रंथ राज का नयनाभिराम प्रकाशन निश्चित ही जिसके दर्शन करने का सुयोग मिला। विशाल भवन के उत्तरी ऊर्ध्व प्रकोष्ठ सम्मान में रचा गया है वह व्यक्ति विशेष/साधक सुधी वस्तुतः में विराजमान महामनीषी सुधी साधक उपाध्यायश्री के पवित्र दर्शन अद्भुत और वरेण्य ही होगा। हुए। स्मरण पड़ता है उन्होंने तब किसी मंत्र का दीर्घ उच्चार कर उसे देखकर मेरे मन में तब उपाध्यायश्री के दर्शन करने की । मेरे मन में विद्यमान संक्लेशकात्वरन्त निदान किया और निराकरण लालसा और अभिलाषा जाग्रत हुई थी और मेरा मनोरथ तब पूर्ण हेतु उन्होंने जपने के लिए मुझे एक मंत्र दिया, एक जाप दी, और हुआ जब मुनिमणि श्री देवेन्द्र मुनि शास्त्री के सुशिष्य मुनिवर दिए अनेक उपकरण। तब से निरन्तर मेरी नैत्यिक साधना और राजेन्द्र मुनि का आगरा विश्वविद्यालय की एम. ए. की उपाधि सामायिकी में वह प्रदत्त अंश भी सम्मिलित है, फलस्वरूप अनेक प्राप्त्यर्थ एक परीक्षार्थी की भूमिका के निर्वाह में मेरा सहयोग। मेरा विधि अपयश, आन्तराय और अनर्थ से मेरा निरन्तर बचाव होता तब सारस्वत सहयोग कार्यकारी प्रमाणित हुआ जब परीक्षाफल रहा है। घोषित हुआ कि मुनिश्री राजेन्द्र जी अच्छे अंकों के साथ उत्तीर्ण __ मैं मानता हूँ कि वचन जब प्रवचन बन जाते हैं तब बौद्धिक घोषित किए गए हैं। प्रदूषण प्रायः समाप्त हो जाता है। उपाध्यायश्री के साथ वाणी अपने अधीनस्थ मुनियों को आर्यविद्या में तो पारंगत करा ही व्यवहार में यह सूक्ति-सार वस्तुतः चरितार्थ होता था। देते थे उपाध्याय श्री, उनके मन में अत्यधिक आधुनिक पद्धति के पाली की ओर उनका मंगल विहार हुआ था। बात तब की है अनुसार प्रशिक्षित करने का शुभ भाव विद्यमान रहता था। उन्हीं के और मेरा आचार्यप्रवर श्री जीतमल जी म. सा. (अब दिवंगत) की आशीर्वाद से प्रेरित होकर मुनि राजेन्द्रजी पी. एच. डी. उपाधि के हीरक जयन्ती महोत्सव में भाग लेकर नागौर जिलान्तर्गत कुचेरा से लिए मेरे निर्देशन में प्रवृत्त होने के लिए सन्नद्ध हुए और मुझे लौटना हो रहा था। सीकर होता हुआ मुझे एक साधारण से गाँव दिल्ली आमंत्रित किया गया। उपाध्यायश्री के सिगाड़े में राजेन्द्र मुनि के अतिसाधारण से कक्ष में असाधारण साधना में तल्लीन साधक स्वाध्यायी तरुण मुनि थे। दिल्ली पहुँचने पर श्री देवेन्द्र मुनि शास्त्री उपाध्यायश्री के मंगल दर्शन हुए थे। विद्युत विहीन अंधकार में ने मेरा उपाध्यायश्री से परिचय कराया था। उनकी तेजस्वी दृष्टि में साधना से निवृत्त हो जब वे विश्राम में जाने वाले ही थे कि मैं सम्यक्दृष्टि, महामनीषी ज्ञानी भेद-विज्ञानी, चारित्र में चारुता पूर्ण उपस्थित हो गया। मुक्तहास में हार्दिक आशीर्वाद उन्होंने इस प्रकार चैतन्य सम्पन्न राष्ट्रसन्त के दर्शन कर मेरा मन-मोद से भर गया। विकीर्ण किया कि शरद की ज्योत्स्ना भी निस्तेज हो गई और उसे कितने जन्मों की घनीभूत आत्मीयता इस प्रकार घिरी, उघरी कि पाकर सफल हो गयी मेरी यात्रा। कुछ नहीं माँगा और मुझे लगा बतरस पाने को मन मचल उठा। शब्द और उसका अर्थ विज्ञान कि सब कुछ मिल गया। ऐसी मौन दातार-प्रियता अन्यत्र प्रायः वैदुष्यपूर्ण विश्लेषण जब महाराज श्री ने किया तब मैं ज्ञान-गौमती दुर्लभ ही है। में अवगाहन करने लगा। उनकी प्रज्ञा-प्रतिभा से मैं अतिरिक्त प्रभावित हुआ। पाली पहुँच कर मुझे विश्रुत विद्वान् श्री देवेन्द्र मुनि शास्त्री (अब आचार्यश्री) के साथ एक अभिनन्दन ग्रंथ के लिए विचार सुधी साधक के वचनामृत सुनकर सारा सन्ताप शान्त हो जाता विमर्श करने का सुअवसर मिला था। इस कार्य से मुक्त होकर जब है। उपाध्यायश्री वचनविशारद थे। उनके सारस्वत सान्निध्य में हुई मैंने उपाध्यायश्री के शुभदर्शन किए तो बड़ी तसल्ली हुई। बातों ही अनेक संदर्भो में चर्चा ने मुझे अनेक अछूते प्रसंगों का प्रबोध बातों में एक अद्भुत चर्चा छिड़ गयी। अशरीरी आत्माओं के विषय कराया था। में जो सन्दर्भ मुझे सुनाए गए वे सचमुच थर्राने वाले लगे। वर्तमान अन्त में उन्होंने मेरे जैसे सामान्य जन-जीवन की खैर-खबर की जैन स्थानक का पूर्वरूप वस्तुतः मस्जिद रहा होगा। इस संदर्भ में सूक्ष्म पड़ताल जिस ढंग से प्राप्त की उससे उनकी सूक्ष्म उपाध्यायश्री को ऐसी अनेक विरोधिनी अशरीरी आत्माओं से परिगणन-पटुता सहज में प्रमाणित हो जाती है। उनके एक संकेत से डटकर जूझना हुआ। भयंकर से भयंकर यातनाएँ, पीड़ादायक मेरी तत्काल व्यवस्था कर दी गई जिसे देखकर मेरे मन-मानस में आघातों का उन्होंने दृढ़तापूर्वक सामना किया और धन्य है उनके उनके प्रति अपार आस्था उत्पन्न हुई। दृढ़ संकल्प को जिसके बलबूते पर वे एकाकी ही अनेक आक्रामिक DOD DDROINE Nanduranandnternational तत092DDDDDDDDDE 28586 O r Private spersonal use only 909.00000. 8swww.dainelibrary.org/ co GODDOO
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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