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________________ तल से शिखर तक २६७। संस्मरण केसर की वर्षा : एक संस्मरण 500067 -श्री नाथूराम जैन, दिल्ली बैशाख शुक्ला ११ संवत् २०५० दिनांक ३ मई, १९९३ का के छींटे थे और दीवारों पर भी केसर लगी हुई थी, जहाँ पर समय था। हम लोग दिल्ली से आचार्य सम्राट श्री देवेन्द्र मुनिजी म.. श्रद्धेय उपाध्यायश्री जीवन के अंतिम समय में संथारा में पोढ़े हुए के दर्शनार्थ उदयपुर पहुंचे। हमारे साथ मेरा पुत्र देवेन्द्र जैन, थे वहाँ पर भी केसर की वर्षा हुई थी, हमें विश्वास हो गया यह पुत्रवधू रेणु जैन और पौत्र मणि जैन आदि थे। आचार्यश्री के दर्शन सारा चमत्कार उसी महागुरु के प्रभाव से हुआ है। कर हमारा हृदय आनन्द विभोर हो उठा, आचार्यश्री के सद्गुरुवर्य आचार्यश्री से पता लगा कि आज से ठीक एक महीने पूर्व ४८ उपाध्यायश्री पुष्कर मुनिजी म. के दर्शनों का सौभाग्य सन् घण्टे के चौवीहार संथारे के पश्चात् गुरुदेवश्री का स्वर्गवास हुआ १९८४-८५ में दिल्ली में हुआ था, जब हम लोग उदयपुर पहुंचे, है। अन्य कई लोगों ने भी केसर की वर्षा के वर्णन को सुनाया। उसके एक माह पूर्व ही गुरुदेवश्री का स्वर्गवास हो गया। धन्य है ऐसे शासन प्रभावक पूज्य गुरुदेवश्री को जिन्होंने जीवन भर रात्रि का समय था। हम श्री तारक गुरु जैन ग्रंथालय के ऊपर तो अपने पवित्र चरित्र की सौरभ से जनमानस को महकाया और की मंजिल में सोए हुए थे, रात्रि में हमारे शरीर पर बूंदें गिरने स्वर्गवास के पश्चात् भी उनके उस पावन स्थल पर केसर की वर्षा लगीं। हमने देखा आकाश की ओर किन्तु कहीं पर भी बादल देखकर हमारा हृदय आनन्द विभोर हो उठा, हमने उन केसर के दिखाई नहीं दिए। सोचा कि संभव है अनन्त आकाश में कोई पक्षी रंगे हुए वस्त्रों को गुरुदेवश्री की असीम कृपा को समझकर अपने जा रहा होगा और उसने कहीं बीट कर दी होगी और हम पुनः घर पर सुरक्षित रखे हैं और जब भी उन वस्त्रों को निहारते हैं तो गहरी नींद में सो गए। हमारी स्मृति तरोताजा हो जाती है, गुरुदेव उपाध्यायश्री के चरणों प्रभात के पुण्य पलों में जब उषा सुन्दरी मुस्कुरा रही थी, सूर्य में अनन्त आस्था के साथ नमस्कार कर यही प्रार्थना करता हूँ कि की आभा जब हमारे पर गिरी, हमने देखा हमारे बिस्तर पर केसर हमारे परिवार पर आपकी सदा-सदा कृपा दृष्टि बनी रहे और हम की वर्षा हुई है, शरीर पर धारण किए हुए वस्त्र भी केसर की बूंदों सदा धर्म के मार्ग में आगे बढ़ते रहें। से प्रभावित हैं, हमें लगा कि संभव है किसी ने रात्रि में हमारे पर केसर की वर्षा की होगी। एक अनूठा संस्मरणवस्त्र परिवर्तन करने की दृष्टि से हमने कमरे में रखे हुए सूटकेस को लेने के लिए कमरे का ज्यों ही ताला खोला, मेरे पुत्र उपाध्यायश्री पुष्करमुनिजी मः की बनियान जो अन्दर पड़ी हुई थी, उसमें खूब केसर लगी हुई कितने मिलनसार, कितने भले! थी, एक क्षण तक मैं चिन्तन करने लगा, बंद कमरे में इस कपड़े पर केसर कैसे? ज्यों ही नये कपड़े निकालने के लिए सूटकेस -तपस्वीरत्नश्री मगनमुनिजी महाराज, अहमदनगर खोला तो और भी आश्चर्य का पार नहीं रहा। सूटकेस में रखे हुए कपड़ों में से केसर की मधुर महक आ रही थी और उन पर भी स्थानांगसूत्र के चतुर्थ-स्थानक में एक चतुभंगी सूत्र आता है, केसर की वर्षा हुई। इस अद्भुत आश्चर्य को देखकर मैं दौड़ा-दौड़ा जिसका भावार्थ है-चार प्रकार के पुरुष कहे गए हैं-(१) कोई आचार्यश्री के पास गया और कहा कि आश्चर्य ही नहीं, महान् । पुरुष आपात भद्रक होता (प्रारम्भ में मिलने पर भला दिखता) है; आश्चर्य है, बंद कमरे में रखी हुई बनियान भी केसर से भर गई संवास-भद्रक (साथ में रहने पर भला) नहीं होता, (२) कोई पुरुष और सूटकेस में रखे हुए वस्त्र भी केसर से सने हुए हैं, बड़ी मधुर । संवास-भद्रक होता है; आपात भद्र नहीं; (३) कोई पुरुष महक आ रही है, बाहर जहाँ हम सोए हुए थे, वहाँ तो हमने सोचा । आपात-भद्रक भी होता है और संवास-भद्रक भी होता है और (४) कि किसी श्रद्धालु ने रात्रि में हमारे पर केसर डाल दी होगी पर । कोई पुरुष न तो आपात-भद्रक होता है, और न ही संवास-भद्रक। बन्द कमरे में और बन्द सूटकेस में रखे हुए कपड़े भी केसर से १. चत्तारि पूरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा19) आवातभहए णाममेगे णो संवास युक्त हैं, यह तो गजब का चमत्कार है। भद्दए; (२) संवासभद्दए णाममेगे णो आवातभद्दए (३) एगे आवातभद्दए हमने देखा आचार्यश्री जिस कमरे में विराजे हुए थे, उन वि, संवासभद्दए वि; (४) एगे णो आवातभद्दए, णो संवासभहए। दीवारों पर भी केसर थी और आचार्यश्री के वस्त्रों पर भी केसर -स्थानांग सूत्र स्था. ४, उ.१, सूत्र १०७ - EDOSDasp9003 09005 2006 2600 DN00.00 266690 1056002906 50EDGE0% Bosबताकरताकर Jan Education Internationalis For rate & Personal use only DAREADGE000000002
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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