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________________ D.C । तल से शिखर तक २६५ / सारे शहर में एक नई हलचल प्रारंभ हो गयी जिसने भी सुना । मुनिमण्डल ने वेश परिवर्तन किया। मैं भी गुरुदेव के शरीर के वह दौड़कर ग्रंथालय में पहुँचा। सभी साधु-साध्वियों, श्रावक और सामने खड़ा था, तथा वही चिर-परिचित मुख मुद्रा को निहार रहा श्राविकाओं का अपार जमघट वहाँ पर हो गया। मधुर स्वर से । था। नेत्रों को वहाँ से हटाने की इच्छा ही नहीं हो रही थी। आत्मा नवकार महामंत्र का जाप भी प्रारंभ हुआ। कुछ विविध प्रकार ध्वनि चला गया था। केवल पिंजरा रह गया था। शरीर से संबंध विच्छिन्न भी प्रस्फुटित होने लगी तथा लोगस्स का पाठ भी होने लगा और करने का प्रसंग उपस्थित हुआ। हमने मन ही मन महामंत्र नवकार सभी को सुनते हुए भी गुरुदेवश्री आत्मभाव में तल्लीन थे। का स्मरण किया और गुरुदेवश्री का पार्थिव शरीर श्रावकों को गुरुदेवश्री की मुखाकृति से यह स्पष्ट परिज्ञात हो रहा था कि वे समर्पित कर दिया। ५३ वर्ष का लम्बा समय उनके चरणों में पूर्ण परम समाधि में लीन हैं। वर्षों की साधना के परीक्षण का क्षण था । हुआ था। और उस कसौटी पर गुरुदेवश्री पूर्ण रूप से खरे उतर रहे थे। श्रीचुन्नीलाल धर्मावत्, रोशनलाल जी. मेहता, शांतिलाल जी भारत के विविध अंचलों से जो लोग चद्दर समारोह में आए थे । तलेसरा, कन्हैयालाल जी धोखा, मूलचंद जी बूरड़, चांदमल सर्राफ, वे दो दिन पूर्व ही अपने स्थल पर पहुँचे, उन्हें टेलीफोन आदि के जालमचंद जी कोटीफोड़ा, बंकटकोठारी जी अध्यक्ष कांफ्रेंस अध्यक्ष द्वारा सूचनाएँ मिलीं, गुरुदेवश्री ने जावजीव का चौविहार संथारा युवा कांफ्रेंस बाबूसेठ बोरा, उपाध्यक्ष कफ्रिंस, नेमनाथ जी जैन, ग्रहण कर लिया है, वे पुनः उदयपुर की ओर पहुँच रहे थे। हजारों शिक्षक नेता भंतर सेठ, खुमानमल जी मागरेचा आदि सुश्रावकों को की संख्या में दर्शनार्थी बन्धुओं का आगमन हो रहा था सभी के पार्थिव शरीर सौंप दिया गया। उन्होंने धीरे-धीरे सीढ़ियों से नीचे चेहरे माए हुए थे। भक्तजन दर से गरुदेव के दर्शन कर आगे बढ उतारा अंतिम संस्कार की विधि के अनुसार गुरुदेवश्री को पद्मासन रहे थे, किन्तु गुरुदेव आत्मस्थ थे। समय-समय पर मैं गुरुदेवश्री को मुद्रा में बिठाए जो प्रबुद्ध श्रावक शासन प्रभावक भक्तगण थे। स्वाध्याय, आलोचना पाठ, स्तोत्र पाठ सुना रहा था। संगीतज्ञ थे वे सभी गुरुदेवश्री के पार्थिव शरीर के चरणों में चैत्र शुक्ला एकादशी दिनांक ३ अप्रैल, ९३ को संध्या का बैठकर गीत गाने लगे। हम लोग ऊपर के कमरे में थे। गुरुदेव का प्रतिक्रमण पूरा हुआ, गुरुदेवश्री को दीर्घ श्वांस चलने लगा। मैं पार्थिव शरीर प्रवचन हाल में रखा गया था। नीचे अत्यधिक गुरुदेव के चरणों में बैठा हुआ उन्हें स्वाध्याय सुना रहा था। रात्रि चहल-पहल थी पर ऊपर केवल हम साधुगण थे, सभी कुछ था पर के नौ बजे और अठारह मिनट पर वह ज्योतिशिखा निस्पंद हो गई। गुरुदेवश्री का सान्निध्य नहीं था और उनके अभाव में सूना-सूना चारों ओर नीरव और निस्तब्ध वातावरण छा गया। सभी संत मौन । लग रहा था। हो गये। सभी संत गुरु चरणों में उपस्थित थे पर ऐसा अनुभव हो श्रावकगण पूरी रात्रि व्यवस्था में संलग्न रहे। गुरुदेवश्री ने जब रहा था कि वह ज्योतिपुंज यहाँ से चल पड़ा है। सभी उस ज्योति से संथारा पचखा तभी से देवविमान तैयार कर दिया गया था। पुरुष के पार्थिव तन को देख रहे थे। तन वही था किन्तु प्राण भारत के विविध अंचलों से हजारों की संख्या में श्रद्धा सुमन पखेरु उड़ गए थे। जो सभी के आँखों के तारे नयनों के सितारे थे, समर्पित करने हेतु लगभग ५० हजार से भी अधिक व्यक्ति बाहर E सभी के प्रिय जीवन के आधार थे, जो हमारे जीवन सर्वस्व थे। । से उपस्थित हुए और स्थानीय लोगों का तो कहना ही क्या? पूज्य गुरुदेव हमें छोड़कर किसी अन्य लोकयात्रा पर पधार गए थे। उदयपुर के इतिहास में पहली बार स्वर्गवास के समय इतनी गुरुदेवश्री का कालजयी व्यक्तित्व था पर क्रूरकाल ने एक ऐसा उपस्थिति देखकर सभी विस्मित हो गये। शोभा यात्रा में हाथी, घोड़े आघात उपस्थित किया था, जिसकी कोई कल्पना नहीं थी, हम पर श्रद्धालु बैठे हुए सिक्कों की बरसात कर रहे थे, उसके पीछे कई सभी गुरु चरणों में ही उपस्थित थे पर उस आघात को रोकने का बैण्ड भी थे। दिनांक ५ अप्रैल को चैत्र शुक्ला तेरस के दिन सामर्थ्य किसी में नहीं था। श्रावकगण भी दौड़कर पहुँच रहे थे। पर उदयपुर श्री तारक गुरू ग्रंथालय से ११.00 बजे शव यात्रा प्रारंभ सभी दिग्मूढ़ थे। वे अगली व्यवस्था करने में लग गए। हुई। उदयपुर के मुख्य स्थलों पर होती हुई शोभा यात्रा आगे बढ़ जैन परम्परा का यह अभिमत है कि आत्मा देह से जब निकल रही थी। इस शोभा यात्रा में लाखों लोगों ने भाग लिया जब तक जाता है, तब भी कुछ समय तक आत्मप्रदेशों के बंधन प्रभावशाली सूरज चाँद रहेगा : पुष्कर गुरु तेरा नाम रहेगा और शोभा यात्रा रहते हैं, उस समय शरीर का स्पर्श भी कष्ट देने वाला होता है सभी क्षेत्रों में घूमती हुई तीन बजे पुनः ग्रंथालय पहुंची, उस देह के इस दृष्टि से लगभग पौन घण्टे तक सभी शान्त और स्थिर होकर दाह के अवसर पर दो सौ से अधिक सन्त- सतीजन, दो लाख से बैठे रहे। ४८ मिनट के बाद श्रमणसंघीय मर्यादा के अनुसार अधिक नागरिक स्तब्ध, आकुल-व्याकुल भाव से चंदन-चिता से गुरुदेवश्री के शरीर को बिठाया गया, नये वस्त्र उन्हें पहनाए गये, उठती उन अग्नि की लपटों को देख रहे थे, जिन्होंने गुरुदेवश्री की नया चोलपट्टा, नई पछेवड़ी और नई मखवस्त्रिका। इस कार्य में काया को तो भस्मीभूत कर दिया था, किन्तु जिनके अमर सुयश तपस्वी श्री मोहनमुनि जी म., महामंत्री श्री सौभाग्यमुनि जी म., को दिदिगन्तों में फैलाने के लिए वे उल्लसित होकर लपकी चली प्रवर्तक श्री रमेश मुनि जी म., प्रवर्तक श्री रूपमुनि जी म. प्रभृति जा रही थीं। n POPo902 Poto Aace Paaharlocation Triterialionloa d 10000002050 s 8080PODO photes Barsha Sea0 D DDODowjangidragore DSC025 al RAMERainin-0000000000000000000000000
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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