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________________ २०० उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । (२३) चमकते इक सितारे थे जनेषु कारुण्यदृशं वहन्तः, ये लोककल्याणकरा अभूवन्। पूज्यानुपाध्यायवरान् स्वभक्त्या, नमामि तान् पुष्कर-संयमीन्द्रान्॥ (कव्वाली) प्राणियों के प्रति करुणा-दृष्टि रखते हुए जो जन-जन के -श्रीमती विमला देवी बोथरा कल्याणकारी होते थे, उन पूज्य उपाध्याय-प्रवर स्व. पुष्कर मुनिवर मंडी गीदड़वाहा (पंजाब) को मैं भक्तिपूर्वक नमस्कार-वन्दना करता हूँ। किये जिन काम न्यारे थे, किये जिन काम प्यारे थे, (२४) 'श्री पुष्कर मुनीश्वर जी', चमकते इक सितारे थे।। ज्ञानस्य गाम्भीर्यमुदारदृष्टिम्, तपःप्रियत्वं च यदीयमासीत्। 'उपाध्याय' का पद पाकर, पढ़ाकर संत सतियों को, पूज्यानुपाध्यायवरान् स्वभक्त्या, नमामि तान् पुष्कर-संयमीन्द्रान्॥ बनाये बहुत से पण्डित, तथा वक्ता करारे थे।२। जो ज्ञान की गम्भीरता व उदार दृष्टि के साथ-साथ, तपस्या के प्रति नहीं था द्रोह दिल में कुछ, नहीं था मोह दिल में कुछ, रुचि रखते थे, उन पूज्य उपाध्याय-प्रवर स्व. पुष्कर मुनिवर को मैं भक्तिपूर्वक नमस्कार-वन्दना करता हूँ। कपट की झपट से खुद को, किये बैठे किनारे थे।३। (२५) धनी निर्धन कोई जन था, दुखी या दीन दुर्मन था, किसी काया रुग्ण तन था, सबल सबके सहारे थे।४। सदेव-शास्त्रेष्वनुराग-भावः, येषां प्रसादाद् हृदि मादृशानाम्। पूज्यानुपाध्यायवरान् स्वभक्त्या, नमामि तान् पुष्कर-संयमीन्द्रान्॥ । दया की दिव्य मूरत थे, क्षमा की साफ सूरत थे, जगत की हर जरूरत थे, अहं अघ सब विसारे थे।५। जिनके कृपा-प्रसाद से मेरे जैसे लोगों को सद्देव व सत्-शास्त्रों के प्रति हार्दिक अनुराग जागृत हुआ था, उन पूज्य उपाध्याय-प्रवर स्व. कठिन जो और खारे थे, शब्द सारे विसारे थे, पुष्कर मुनिवर को मैं भक्तिपूर्वक नमस्कार वन्दना करता हूँ। वचन जब भी उचारे थे, सुधा से ही उचारे थे।६। न देखा वृद्ध या बच्चा, न देखा कम अधिक अच्छा, न देखा सरल या सच्चा, सभी सम-सम निहारे थे।७। निर्झर बना महासागर कि इकसौतीस बढ़-चढ़कर, किताबें हैं लिखीं सुन्दर, -दिलीप धींग, बम्बोरा रहे तर बहुत नर पढ़कर, बहुत पहले भी तारे थे।८। मेवाड़ी पहाड़ी चट्टानों से फूटा निर्झर, जिन्होंके नैन तारे थे, जिन्हों को परम प्यारे थे, उपाध्याय पुष्कर मुनिजी प्यारा नाम है। मा ‘बाली' के दुलारे थे, पिता 'सूरजमल' तुम्हारे थे।९। सहज सजग बन बहता रहा सतत, वह 'गुरु पुष्कर नगर' प्यारा, जहाँ पर जन्म था धारा, बाधाएँ घुमाव बन गये तीर्थ धाम है। कि उगनी सौ उन्हत्तर में, मुदित जन बहुत सारे थे।१०। रत्नत्रय की महक, णमोकार की चहक, इक्यासी में ली दीक्षा जब, बड़े थे लोग गद्गद् तब, प्रवचनों की कूहूक, लेगे अभिराम है, सुगुरु 'तारा' तुम्हारे थे, गुणी ज्ञानी जो भारे थे।११। प्यासे आये जब कभी, पूर्ण तृप्त हुए सभी, 'मुनि देवेन्द्र जी' प्यारे, तुम्हारे शिष्य हैं भारे, हमेशा आपने अपने, इन्हीं पर प्राण वारे थे।१२। "दिलीप" कालजयी महासागर को प्रणाम है। व्याख्यानी न आपसा देखा, न ध्यानी आपसा देखा, न ज्ञानी आपसा देखा, कवीश्वर आप न्यारे थे।१३। धूल सुरभित हुई हुआ सुरभित पवन, लग रहा पत्थरों में खिला था सुमन। जिन्होंने आप के सारे, सदा बिगड़े संवारे थे, परम ही आपको प्यारे श्री त्रिशला-दुलारे थे।१४। चलते-फिरते तीर्थ थे गुरु पुष्कर मुनिअध्यात्म योगी को कोटि-कोटि नमन। कि 'विमला बोथरा' चरणन, झुकाकर सिर करे वंदन, बिताकर संयमी जीवन, सुरों के पुण्य धारे थे।१५। 30000000 Jan Education International D 33000200 a .coCForeirala PersonalilDse palyaDos 20 www.lainelibrary.org 7000
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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