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________________ श्रद्धा का लहराता समन्दर (११) कृता अजैना अपि बोधियुक्ताः, अणुव्रतानुष्ठिति तत्परा यैः । पूज्यानुपाध्यायवरान् स्वभक्त्या, नमामि तान् पुष्कर- संयमीन्द्रान् ॥ जिन्होंने अनेक अजैनों को भी सम्यक्त्वयुक्त बनाकर, अगुव्रतों के पालन में तत्पर बना दिया था, उन पूज्य उपाध्याय प्रवर स्व. पुष्कर मुनिवर को मैं भक्तिपूर्वक नमस्कार-वन्दना करता हूँ। (१२) सञ्ज्ञान गंगा परिपूत-चित्ताः, चारित्र - सद्भूषणभूषिता ये । पूज्यानुपाध्यायवरान् स्वभक्त्या, नमामि तान् पुष्कर-संयमीन्द्रान् ॥ प्रशस्त ज्ञान-विज्ञान की गंगा से जिनका मन निर्मल पवित्र था, और जो सच्चारित्र रूपी भूषण से विभूषित थे, उन पूज्य उपाध्याय- प्रवर स्व. पुष्कर मुनिवर को मैं भक्तिपूर्वक नमस्कार-वन्दना करता हूँ। (१३) नाम। गीतार्थ- सर्वश्रमणेषु येषाम् तपस्विनामाद्रियते स्म पूज्यानुपाध्यायवरान् स्वभक्त्या, नमामि तान् पुष्कर-संयमीन्द्रान् ॥ समस्त 'गीतार्थ' श्रमण मुनियों में जिन तपस्वीराज का नाम आदर से लिया जाता था, उन पूज्य उपाध्यायप्रवर स्व. पुष्कर मुनिवर को मैं भक्तिपूर्वक नमस्कार-वन्दना करता हूँ। । (98) निर्मानलोभाः करुणा-समुद्राः, अकिञ्चना मार्दवमूर्तयो ये पूज्यानुपाध्यायवरान् स्वभक्त्या, नमामि तान् पुष्कर- संयमीन्द्रान् ॥ जो मान व लोभ से दूर थे, करुणा के सागर थे, अकिञ्चन (ममत्व-परिग्रह से रहित) थे, तथा मृदुता की तो साक्षात् मूर्ति थे, उन पूज्य उपाध्यायप्रवर स्व. पुष्कर मुनिवर को मैं भक्तिपूर्वक नमस्कार-वन्दना करता हूँ। (१५) विद्यानुरागो गुणि-पक्षपातः खले समत्वं प्रथितं च येषाम् । पूज्यानुपाध्यायवरानू स्वभक्त्या, नमामि तान् पुष्कर-संयमीन्द्रान् ॥ जिनका अनुराग विद्या के प्रति रहा करता था, गुणियों के प्रति जिनका प्रेमानुराग रहता था, और दुष्ट जनों के प्रति तो जिनका समता भाव प्रसिद्ध था ही, उन पूज्य उपाध्यायप्रवर स्व. पुष्कर मुनिवर को मैं भक्तिपूर्वक नमस्कार-वन्दना करता हूँ। (१६) धीराग्रगण्याः सुधियां वरिष्ठाः, मनस्विनश्चात्म- गवेषिणो ये । पूज्यानुपाध्यायवरान् स्वभवत्या, नमामि तान् पुष्कर-संयमीन्द्रान् ॥ जो 'धीर' (अविचल साधकों) में अग्रगण्य थे, बुद्धिमानों में वरिष्ठ ज्येष्ठ थे, मनस्वी थे, और आत्म-गवेषी (शुद्धात्म-स्वरूप की प्राप्ति हेतु उद्यत ) थे, उन पूज्य उपाध्यायप्रवर स्व. पुष्कर मुनिवर को मैं भक्तिपूर्वक नमस्कार-वन्दना करता हूँ। Jain Education International (१७) श्वेताम्बर स्थानकवासि-साधु, संघे समेषां परमादृता ये। पूज्यानुपाध्यायवरान् स्वभक्त्या, नमामि तान् पुष्कर- संयमीन्द्रान् ॥ (जैन) श्वेताम्बर स्थानकवासी साधु-संघ में जो सबके लिए परमादरणीय थे, उन पूज्य उपाध्याय प्रवर स्व. पुष्कर मुनिवर को मैं भक्तिपूर्वक नमस्कार -वन्दना करता हूँ। (१८) यदीय- माङगल्यवचः श्रुतिर्हि शुभं जनानां व्यदधात्समेषाम् । । पूज्यानुपाध्यायवरान् स्वभक्त्या, नमामि तान् पुष्कर-संयमीन्द्रान् ॥ जिनकी 'मंगलीक' वाणी को सुनने से सभी लोगों का शुभ-कल्याण होता था, उन पूज्य उपाध्याय प्रवर स्व. पुष्कर मुनिवर को मैं भक्तिपूर्वक नमस्कार वन्दना करता हूँ। (१९) (२०) संकीर्तितोदयपुरे स्वमनुष्यदेहं संलेखनामनुसरन्त उपात्तधैर्याः । त्यक्त्वा प्रशस्त-शुभकर्मफलं स्वकीयं, प्राप्तुं गता यतिवरा अमरालयं ये॥ प्रादुः सुभक्तिभरपूर्णजना असंख्याः, १९९ येभ्योऽश्रुपूर्णविनयाञ्जलिमेत्य तर्हि । पूज्यान् तपः सुचरितोर्जितकीर्तिसारान् तानानतोऽस्म्यनघ- पुष्कर- संयमीन्द्रान् ॥ प्रसिद्ध (राजस्थान में झीलों की नगरी) 'उदयपुर में धैर्यपूर्वक संलेखना (संधारा) विधि का अनुसरण करते हुए मनुष्य देह का त्याग कर, अपने प्रशस्त शुभ कर्मों के फलस्वरूप जिन्होंने स्वर्ग (देव) गति प्राप्त की थी, और उस समय भक्ति-भावों से भरे असंख्य लोगों ने आकर जिन्हें अधुपूर्ण विनयाञ्जलि समर्पित की थी, तपस्या से उत्कृष्ट कीर्ति अर्जित करने वाले उन पूज्य उपाध्याय- प्रवर स्व. पुष्कर मुनिवर को मैं भक्ति-पूर्वक नमस्कार-वन्दना करता हूँ। (२१) सिद्धान्तनिष्ठाऽनुपमा यदीया, विनम्रता चार्जवता विशिष्टा । पूज्यानुपाध्यायवरान् स्वभक्त्या, नमामि तान् पुष्कर- संयमीन्द्रान् ॥ जिनकी सिद्धान्त-निष्ठा अनुपम थी, विनम्रता व ऋजुता विशिष्ट थी, उन पूज्य उपाध्याय प्रवर स्व. पुष्कर मुनिवर को मैं भक्तिपूर्वक नमस्कार - वन्दना करता हूँ। For Private & Personal Use Only 3000 (२२) शुद्धोपयोगे निरता अभूवन् किं बोद्यता ये हि शुभोपयोगे । पूज्यानुपाध्यायवरान् स्वभक्त्या, नमामि तान् पुष्कर- संयमीन्द्रान् ॥ जो या तो 'शुद्धोपयोग' (ध्यान-साधना) में संलग्न रहा करते थे, या फिर शुभोपयोग (प्रशस्त प्रवचन आदि कार्यों) में तत्पर रहा करते थे, उन पूज्य उपाध्याय प्रवर स्व. पुष्कर मुनिवर को मैं भक्तिपूर्वक नमस्कार - वन्दना करता हूँ। www.jainellprary.org
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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