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________________ श्रद्धा का लहराता समन्दर महाविद्वान महागुणी उपाध्याय पुष्कर मुनि (१) अत्यन्त ही गुणवान थे, उपाध्याय पुष्कर मुनि, अत्यन्त ही विद्वान थे, उपाध्याय पुष्कर मुनि । (२) सन्त न उन-सा निहारा, प्यारा सारा देख जग, इक प्रकृति का वरदान थे, उपाध्याय पुष्कर मुनि । (3) जिनधर्म का सन्देश दे, निज देश दे पर देश दे, नित कर रहे कल्याण थे, उपाध्याय पुष्कर मुनि । (४) छल राग से भी द्वेष से भी, क्रोध से भी क्लेश से, मद मान से अनजान थे, उपाध्याय पुष्कर मुनि । (५) थे सितारे जैन के थे, थे सहारे जैन के, हर भक्त के भगवान थे, उपाध्याय पुष्कर मुनि । (६) न लकीरों के बने थे, भूल करके भी फकीर, धी, ध्यान, सम्यग्ज्ञान थे, उपाध्याय पुष्कर मुनि । (७) अरिहंत की आराधना है, सिद्धपद की साधना, नित कर रहे व्याख्यान थे, उपाध्याय पुष्कर मुनि । (e) अरिहन्त के अनुयायी थे, हर एक को सुखदायी थे, इक देवता इनसान थे, उपाध्याय पुष्कर मुनि । (९) दूर व्यसनों से हटो, सब सत्य के पथ पर डटो, डट, कर रहे ऐलान थे, उपाध्याय पुष्कर मुनि । (१०) लड़कियाँ लड़के बनी हैं, और लड़के लड़कियाँ, लख हो रहे हैरान थे, उपाध्याय पुष्कर मुनि । (११) है जहाँ फैशन परस्ती, मन की मस्ती रात-दिन, न फ्रान्स इंग्लिस्तान ये, उपाध्याय पुष्कर मुनि । Jary Education International FRE -उपप्रवर्तक श्री चन्दन मुनि (पंजाबी) (१२) झलकती थी आपमें इक सभ्यता इक भव्यता, साक्षात् हिन्दोस्तान थे, उपाध्याय पुष्कर मुनि । (१३) तीन एके भाग जिसके 'जैन कथाएँ' लिख गये, विद्वान आलीशान थे, उपाध्याय पुष्कर मुनि । (१४) थे दमन के देवता तो, ये शमन के देवता, गुण-गण-गगन के भान थे, उपाध्याय पुष्कर मुनि। (१५) श्री श्रमण नामक संघ का, कुछ नये निराले ढंग का, नित कर रहे निर्माण थे, उपाध्याय पुष्कर मुनि । (१६) सत्य-समता - सरलता की, सादगी की, सम्प की, जप त्याग तप की तान थे, उपाध्याय पुष्कर मुनि । (१७) दुख-कष्ट हरने के लिये, संसार तरने के लिये, नित दे रहे वरदान थे, उपाध्याय पुष्कर मुनि । (१८) पूज्यवर देवेन्द्र मुनि-सा, दे गये हमको गुणी, क्या पारखी पहचान थे, उपाध्याय पुष्कर मुनि । (१९) गुरुदेव ताराचन्द्र को, सानन्द रोशन कर दिया, युग चरण पर कुर्बान थे, उपाध्याय पुष्कर मुनि । (20) लाल 'सूरजमल के थे, 'बाली' मां के नौ निहाल, द्विज वंश की इकशान थे, उपाध्याय पुष्कर मुनि । (२१) कर संथारा तन विसारा, स्वर्ग प्यारा पा लिया, सब सद्गुणों की खान थे, उपाध्याय पुष्कर मुनि । (२२) कर रहा वन्दन उन्हें, पंजाब का 'चन्दन मुनि' हर श्रमण के श्रद्धान् थे, उपाध्याय पुष्कर मुनि । १७७ For Frigate & Personal Use Only .. Fwww.jaidelibrary.ooo
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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