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________________ 379 १६८ मुक्तक भाव- सुमन मेरे रोम-रोम के ऊपर जिसने नित उपकार किया, अमृत देकर जिसने जग का हँस-हँस कर विषपान किया। मुनि गणेश पर गुरुवर पुष्कर आशीर्वाद बनाये रखना, ज्ञान की घूंटी पिला आपने नित मेरा उत्थान किया। O काली निशा में आपने ज्ञान का दीपक जलाया, रूठी थी जग की बहारें आपने सुमन खिलाया। गीत बिना मौसम आँसुओं की उमड़ती मन में घटाएँ, चल रहे हम श्रद्धा के भाव को मन में उठाए । सुनसान अब लगने लगा है आपके बिन यह जहाँ, भावना के उदधि में लो श्रद्धा का फिर ज्वार आया। O -श्री गणेशमुनि शास्त्री स्मृति आते ही आँसू नयन में आते हैं मेरे, भरी दुपहरी घेर लेते मुझको अनचाहे अंधेरे । Jain Education International मुनि गणेश के अंतर् में हर पल आपकी सूरत समाई, बस उसी तस्वीर को हम रहते हैं हर पल सटाए ॥ O शब्द जो तुमने दिये आकार देकर धर रहा हूँ, आपका ले नाम निशदिन खाली घट को भर रहा हूँ। संकृत होते रहे हैं तार अन्तर वीणा के नित, अवशाद की चादर यहाँ रहती है हर ओर घेरे ॥ O मुक्ति पथ के पथिक बन आप गुरुवर चल दिये, भाव- श्रद्धा के यहाँ मैं आज अर्पित कर रहा हूँ । गुरु तुमने उपकार किया है! मेरे प्यारे गुरुवर पुष्कर ! भूल तुम्हें मैं कैसे जाऊँ । मेरे जीवन के हर क्षण पर गुरु तुमने उपकार किया है। मैं तो इक अनगढ़ पत्थर था, तुमने देखा और उठाया। ज्ञान छेनी से मुझे तराशा, मुझको मूर्ति रूप बनाया। - श्री गणेशमुनि शास्त्री D DOD उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति ग्रन्थ अपने हाथ बिछा अवनी पर गुरु तुमने आधार दिया है। मेरे जीवन के हर क्षण पर गुरु तुमने उपकार किया है। मैं बालक अंजान अकेला, कुछ पाने को भटक रहा था । महामोह के बन्धन में गिर, मन मेरा भी अटक रहा था। मुझे पिलाकर के ज्ञानामृत गुरु तुमने उद्धार किया है। मेरे जीवन के हर क्षण पर गुरु तुमने उपकार किया है। अगर न मिलते आप मुझे तो, मृग मरीचि सा जीवन होता । अभिशापों के जंगल में फिर, मैं कैसे वरदान संजोता । मैं तो मिट्टी का ढेला था गुरु तुमने आकार दिया है। मेरे जीवन के हर क्षण पर गुरु तुमने उपकार किया है। स्मृति की लहरें उठ उठ कर, मन का आंगन गीला करतीं। शब्द सुमन अर्पित करते भी, दोनों आँखें हर पल झरतीं। मुनि गणेश को सदा सत्य का गुरु तुमने संसार दिया है। मेरे जीवन के हर क्षण पर गुरु तुमने उपकार किया है। श्रद्धा-सुमन -प्रिय सुशिष्य जैन सिद्धान्ताचार्य प. श्री उदय मुनिजी thes पिता सूरज के दिवाकर सम आप लाल थे, पाकर माता-पिता समाज आपको निहाल थे। ले संयम उपाध्याय पद शोभित किया 'उदय' पूज्य पुष्कर आप लेखक - साधक कमाल थे ॥ १ ॥ बाल्यावस्था में संयम लेकर आत्म उद्धार किया, दे धर्मोपदेश लोगों पर बहुत उपकार किया। बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे उपाध्याय पुष्कर आप, करनी कर महान् कूल श्री संघ रोशन किया ॥२॥ साध्वी श्री धूलकुंवर से ली प्रेरणा संयम की, पूज्य गुरुवर ताराचंद्र से पावन दीक्षा ग्रहण की। श्री अमर सूरी की रचना की संस्कृत मांय 'उदय' रच बहु रचनाएँ सेवा की पुष्कर ने जैन साहित्य की ॥ ३ ॥ समझ जीवन की क्षणभंगुरता संयम अंगीकार किया। सत्य प्रेम अहिंसा का जग को पावन संदेश दिया। उपाध्याय पुष्कर का नाम सदियों तक अमर रहेगा 'उदय' बन पारस सम श्री संघ को आचार्य देवेन्द्र सा शिष्य दिया ॥४ ॥ good For Private & Personal Use Only 34 080000 Kaa www.jalelibrary.org
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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