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________________ Sanagacarobag at 106669000000000000000000 - 200000 Toàn b ộ và श्रद्धा का लहराता समन्दर मार तमा सो धम्मपुक्खरं तं, पप्प पुक्खरो मुणी वियसिय मुहो। श्री आनन्दऋषिजी महाराज ने पूना नगर में जन समूह के उत्साह जायइ महीयले खलु, खाई लब्भइ तयभिहाणे ॥२१॥ के बीच होती हुई जयध्वनि में उपाचार्य पद पर उपस्थापित किया। वे (अम्बालाल) उस धर्मरूपी पुष्कर को प्राप्त करके, विकसित दठूण ताओ णिय-पुत्तगं तु, मुखवाले श्री पुष्करमुनि हो जाते हैं और इस नाम में पृथ्वीतल में अप्पाउ अग्गम्मि पयम्मि हिट्ठो। प्रसिद्धि पाते हैं। एमेव सीसे नियगाउ उच्चं, पढइ लिहइ गुणइ गुणी, छत्तयले रमइ थेरमुणिणो सो। ठाणं वरन्ते हरिसेइ सामी॥२९॥ सेवेइ कप्पतरु तं, गमइ संजमे सुहो कालं ॥२२॥ पिता अपने पुत्र को अपने से आगे के पद पर स्थित देखकर हर्षित होता है। वैसे ही स्वामी अर्थात् श्री देवेन्द्रमुनि जी महाराज के (वे) पढ़ते-लिखते हैं और (वे) गुणी (पढ़े हुए ज्ञान का) मनन गुरुदेव उपाध्याय श्री पुष्करमुनिजी महाराज अपने शिष्य को अपने करते हैं तथा (उन) स्थविर मुनि की छत्रच्छाया में रमण करते हैं। से उच्च स्थान (आचार्य पद) पर आरूढ़ होने पर हर्षित हुए। वे उस (धर्मरूपी) कल्पवृक्ष का सेवन करते हैं और शुभ (भाव वाले) बनकर संयम में समय को व्यतीत करते हैं। = २०५० ०५० २ नह-सर-सुन्न-भुयदे, चित्तस्स सुपंचमीइ तइओ य। जाओ मुणी तरू विव, परियालो तस्स हियअ-आणंद आयरिओ सब्भूओ, देविंदो समण-संघस्स ॥३०॥ वड्ढेइ-पासिय फलं, जाओ थेरो अमियतित्तो॥२३॥ जाओ आयरिओ एव, आनंदायरिये गए। वयइ वर-आसिवायं, सिस्स-पसिस्साण सो महाथेरो। हंसो व तणुं चिच्चा, धम्मपयं गिण्हिय गओ तं ॥२४॥ पच्छा चादरदाणस्स, विही खलु इमा कया॥३१॥ विक्रम सं. २०५० की चैत्र की सुपंचमी = सुदी पंचम के दिन (फिर श्री पुष्कर-) मुनिजी (गहरे) वृक्ष के समान हो गये। श्री देवेन्द्र मुनिजी महाराज श्रमणसंघ के भली-भाँति तृतीय आचार्य (उनका शिष्य) परिवार उन (के गुरु) के हृदय का आनन्द बढ़ाता हो गये। है। (इस) फल को देखकर (वे) स्थविर बड़े तृप्त होते हैं। (यों तो) आचार्यप्रवर श्री आनन्दऋषिजी महाराज के (देह वे महास्थविर (श्री ताराचन्द्रजी म.) शिष्य-प्रशिष्यों को उत्तम त्याग कर परलोक) जाते ही (श्री देवेन्द्रमुनिजी म.) आचार्य ही हो आशीर्वाद देते हैं और हंस के समान शरीर को छोड़कर-धर्मरूपी गये थे। किन्तु बाद में यह चादर-दान की विधि की गयी। उस पथ को ग्रहण कर उड़ जाते हैं। पक्खम्मि तम्मि दिवसे-एगारसहे समाहिपत्तो सो। पुक्खरमुणीति संघ-समणे भूओ सुओ उवज्झाओ। चइऊण जज्जर-तणं, गओ परभवे उवज्झाओ॥३२॥ विहरिय विसाल-खेत्ते, भारहवासे वयणवासं ॥२५॥ मेहो व वरिसिऊणं, भत्ताण उरं सुसिंचइ मुणी सो। उसी पक्ष में ग्यारहवें दिन अर्थात् चैत्र शुक्ला एकादशी के दिन समाधि को प्राप्त वे (श्री पुष्करमुनिजी म.) उपाध्याय जर्जर जाणामि णेव साहू, केत्तिआण वल्लहो जाओ? ॥२६॥ 1 औदारिक शरीर को त्यागकर परभव पधार गये। श्री पुष्करमुनिजी म. श्रमणसंघ में उपाध्याय हुए-सुने गये। वे मुनि भारतवर्ष के विशाल क्षेत्र में विचरण करके और बादल के पावइ ण जाव मुक्खं, ताव होउ जिण-कमबुअ-भसलो। समान वचनामृत (रूपी जल) की वर्षा करके, भक्तों के हृदय को सुद्धिं लहेज्ज जीवो, तस्स य संतिं परं-भावेमि ॥३३॥ भली-भाँति सिञ्चित करते हैं। मैं नहीं जानता कि वे साधु कितने उनका जीव जहाँ तक मोक्ष को प्राप्त नहीं करता है, वहाँ तक (जनों) के (हृदय-) वल्लभ हुए। (वे) श्री जिनेश्वरदेव के चरण-कमल के भ्रमर बनें और (अन्त में) परम शुद्धि और शान्ति को प्राप्त करें-ऐसी भावना करता हूँ। सुलेहगो कई वत्ता, इइ लोया वयन्ति णं। साहू मण्णेइ साहुत्ता, राढामणीव ते पया ॥२७॥ तस्सेव सीसो तइओ य सूरी, लोक उन्हें 'सुलेखक, वक्ता और कवि थे' ऐसा कहते हैं किन्तु देविंदसाहु सुजसोयरो जो। लद्धासिवाओ गुरुणा लहिता, (भगवान् जिनश्वर देव का अनुयायी) साधु साधुत्त्व (रूप असली मणि) की अपेक्षा इन सभी पदों को राढामणि (= काँच की नकली साहुत्तसिद्धिं अणुसासएज्जा ॥३४॥ मणि) के समान मानता है। उन्हीं (श्री पुष्करमुनिजी म.) के शिष्य और (श्रमणसंघ के) देविंदो तस्सीसो, आणंदेण उव-आयरिय-ठाणे तृतीय आचार्य हैं, श्री देवेन्द्रमुनिजी महाराज, जो (अपने गुरु और अपने) उत्तम यश के करने वाले हैं, जिन्होंने (अपने) गुरु से जण-समुच्छाहे पूणे, समुवठाविओ जय-झुणीए॥२८॥ आशीर्वाद पाया है, वे साधुत्व की सिद्धि को प्राप्त करके, (श्री व्य श्री दवन्द्र मुनिजी महाराज का आचायप्रवर पूज्य श्रमणसंघ का) अनुशासन करें। 360 200८ Jag Edugali lite national G 8.03t090020.50.06.3 o For Fivate Personal use only 00000000000 135 600 Dowwwjalnejafarya
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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