SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 178
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२६ पीपाड़ का वर्षावास हमारे परिवार के लिए बहुत ही वरदान रूप रहा। उस वर्षावास के लिए हमें अथक प्रयास करना पड़ा। वर्षों तक प्रयास करने के बावजूद वह वर्षावास हमें मिला। वह गुरुदेवश्री का हमारे गाँव में अन्तिम वर्षावास था और पीपाड़ में जो धर्म की प्रभावना हुई, उसे देखकर हम सब विस्मृत थे, यह गुरुदेवश्री का ही पुण्य प्रभाव था कि इतना धर्म-ध्यान वहां हुआ। हजारों दर्शनार्थी बन्धु भी वहाँ पर उपस्थित हुए। आज भले ही हमारे सामने गुरुदेवश्री की भौतिक देह नहीं है। किन्तु उनका यशः शरीर आज भी विद्यमान है और भविष्य में भी विद्यमान रहेगा। हे गुरुदेव ! आप जीवन शिल्पी रहे हैं, हमारे जीवन के निर्माता रहे हैं, हमारे जीवन में धार्मिक संस्कार के बीज वपन करने वाले रहे हैं, आपका अनंत उपकार हमारे परिवार पर है। है गुरुदेव ! मेरी ओर से, मेरे पू. पिताश्री नेमीचंदजी सा. की ओर से तथा परिवार के सदस्यों की ओर से भावभीनी श्रद्धांजलि! कोटि-कोटि वंदन -मूलचंद कोठारी सन् १९४७ का यशस्वी वर्षावास नासिक का संपन्न कर गुरुदेवश्री बम्बई पधारे। जब मेरे पिताश्री को ज्ञात हुआ, हम दोनों कार लेकर गुरुदेवश्री के दर्शनार्थ ठाणे पहुँचे। गुरुदेव श्री के दर्शन कर हृदय आनंद-विभोर हो उठा, उस समय बड़े गुरुदेव महास्थविर श्री ताराचंद्रजी म. पं. रत्न श्री पुष्कर मुनिजी म., हीरामुनि जी म., देवेन्द्र मुनिजी म., और गणेश मुनिजी म., ठाणा पांच विराज रहे थे। उस वर्ष गुरुदेव श्री का वर्षावास बम्बई घोटकोपर में हुआ, उस वर्षावास में गुरुदेवश्री की असीम कृपा से संघ सेवा का सौभाग्य मिला, सांवत्सरिक पारणे आदि का लाभ हमें मिला और बारह महीने तक गुरुदेवश्री बम्बई विराजे, प्रति रविवार को मैं पूज्य पिताश्री और मेरे बड़े भाई मांगीलालजी, चम्पालालजी आदि समय-समय पर सेवा में पहुँचते रहे ! यह पहला संपर्क मेरे लिए वरदान रहा। उसके बाद गुरुदेवश्री के पीपाड़, बम्बई और अहमदाबाद में चातुर्मास हुए, उन चातुर्मासों में हमें सेवा का अवसर मिला। अहमदाबाद के चातुर्मास में मुझे अधिक सेवा करने का लाभ मिला, उसके बाद मेरा विचार था कि एक चातुर्मास पुनः हमारी जन्मभूमि के गाँव में हो, वर्षों तक मैं और मेरे ज्येष्ठ भ्राता चम्पालाल जी प्रयत्न करते रहे। चम्पालालजी की इच्छा पूर्ण नहीं हो सकी और वे असमय में ही इस संसार से विदा हो गए। भाई सा. के विदा होने से मेरे मन को भारी आघात लगा और मैंने दृढ़ निश्चय किया कि गुरुदेवश्री का वर्षावास पीपाड़ कराना ही है और उस वर्षावास में सारे व्यवसाय को छोड़कर पीपाड़ ही चार महीने तक रहना है। मेरी धर्मपत्नी खमादेवी ने कई नियम भी ग्रहण कर Jain Education International उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति ग्रन्थ लिए थे कि जब तक गुरुदेवश्री का चातुर्मास नहीं होगा मैं अमुकअमुक वस्तुओं का त्याग रखूँगी। अंत में हमारी विजय हुई और १९९१ का वर्षावास हमें प्राप्त हुआ। इस वर्षावास में यद्यपि गुरुदेवश्री जितने स्वस्थ होने चाहिए, नहीं थे तथापि उनका दृढ़ आत्मबल और मनोबल को देखकर हम सभी विस्मृत थे। गुरुदेव ने हमारे सभी घरों पर पगले भी किए और उस वर्षावास में समयसमय पर गुरुदेवश्री ने अपने मंगलमय उद्बोधन से हम सभी को धर्म में प्रेरित भी किया। उदयपुर चद्दर समारोह के अवसर पर हमारे परिवार का चीका भी लगा और उस चीके में मुझे रहने का सौभाग्य मिला। सभी संत भगवन्तों के पगले हमारे यहाँ पर हुए गुरुदेवश्री की तो अपार कृपा थी ही, जिसके फलस्वरूप ही यह सुनहरा अवसर हमें मिला था। सभी के अन्तर्मानस में यही विचार थे कि गुरुदेवश्री की विमल छत्रछाया पांच छः वर्ष तक अवश्य रहेगी पर क्रूरकाल ने अपना प्रभाव दिखाया और गुरुदेवश्री ने ४२ घण्टे का चौवीहार संथारा कर एक उज्ज्वल और समुज्ज्वल आदर्श उपस्थित किया। उनके जीवन की विदाई के अवसर पर भी हमने देखा, उनमें अद्भुत साहस था, उनके ओजस्विनी चेहरे पर आध्यात्मिक दिव्य आलोक जगमगा रहा था। स्वर्गवास के पश्चात् भी उनके चेहरे से नहीं लगता था कि गुरुदेवश्री का स्वर्गवास हो गया है। ऐसे अद्भुत योगी गुरुदेव के चरणों में मेरा कोटि-कोटि वंदन ! तेजस्विता का ज्वलन्त उदाहरण -कांतिलाल कोठारी परमादरणीय उपाध्यायश्री पुष्कर मुनिजी म. हमारे परम आराध्य देव रहे हैं, हमारे कोठारी परिवार पर उनकी अपार कृपा रही है और कोठारी परिवार भी उनके प्रति सर्वात्मना समर्पित रहा है। मेरे दादाजी सेठ हरकचंद जी कोठारी और मेरे पूज्य पिताश्री सेठ चम्पालालजी कोठारी दोनों ही गुरुदेवश्री के परम भक्तों में से रहे हैं, इसलिए हमारे अन्तर्मानस में भी गुरुदेव श्री के प्रति अनन्य आस्था रही मेरे पूज्य दादाजी और पूज्य पिताश्री का यह दृढ़ विश्वास था कि हमने जो कुछ भी विकास किया उस विकास के मूल में गुरुदेवश्री का हार्दिक आशीर्वाद मुख्य रूप से रहा है। गुरुजनों के आशीर्वाद में अपूर्व चमत्कार है जिसके फलस्वरूप ही हम प्रगति के पथ पर बढ़ सके। उपाध्याय पूज्य गुरुदेवश्री पुष्कर मुनिजी म. का व्यक्तित्व बड़ा ही दिलचस्प और विलक्षण रहा है, उनमें कार्यक्षमता अद्भुत थी। श्रमणसंघ के संगठन प्रसंगों पर मैंने देखा उनमें जो कृतित्व शक्ति है। यह अद्भुत है, उनकी विलक्षण संगठन शक्ति और स्फूर्तिमान साहस को देखकर मैं सदा ही विस्मय से विमुग्ध होता रहा हूँ। For Private & Personal Use 34 800 www.jainelibrary.org
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy