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________________ कडला CATEGanoRAR PIC 0 उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । उनकी सरलता, चित्त की निर्मलता व किसी भी व्यक्ति को परिवार पर महती कृपा थी। आप श्री की सबसे बड़ी विशेषता जो कष्ट में देखकर द्रवित हो जाने की सहजता इस बात की द्योतक है । मुझे देखने में आई वह थी आप श्री की गहरी सूक्ष्म दृष्टि; व्यक्ति कि वे कैसे पारदर्शी एवं दयालु व्यक्तित्व के धनी थे। उनकी वाणी की पात्रता की पकड़ और उसकी योग्यता व सामर्थ्य के अनुसार में श्रोताओं को प्रभावित करने की अजस्र शक्ति विद्यमान थी। अपने कार्य करने की प्रबल प्रेरणा। मैंने आपको किसी बात के प्रति शिष्यों के साथ उनका व्यवहार पितृवत् व स्नेह से सरोबार था। आग्रही नहीं पाया। सदैव, सहज सरल प्रज्ञाशील और सर्व ग्राही जब वे व्याख्यान फरमाते थे तो ऐसा लगता था कि ज्ञान गंगा सम्पन्न पाया। आप श्री ध्यान के विशिष्ट साधक, चिन्तक एवं उनकी वाणी से सहज निसृत हो रही है। उनकी वाणी का प्रभाव संस्कृति के रक्षक असीम आत्म शक्ति के धारी आत्मानन्द में रमण इतना चुम्बकीय था कि व्याख्यान शुरू होने के बाद उनके करने वाले अद्भुत योगी थे। आप श्री का चुम्बकीय व्यक्तित्व सभी सभामण्डप को छोड़ना संभव नहीं था। को मोह लेता था। भीतर से कोमल होने पर भी सिद्धान्तों के प्रति उनकी आस्था उपाध्याय श्री वक्ता थे तो ऐसे कि अपनी प्रवचन शैली एवं बहुत अडिग थी और समाज पर यदि कोई संकट वे देख लेते थे। सार गर्भित विचारों द्वारा किसी भी अपरिचित को सदा के लिये तो मेरू की तरह अडिग होकर खड़े हो जाते थे। चुनौतियों का { परिचित ही नहीं, अपितु अपना आत्मीय बनाने में भी सक्षम थे। सामना करने की उनकी शक्ति बेजोड़ थी। उनके हृदय में छोटे-बड़े आप श्री के प्रवचन केवल धर्म-कर्म का ही पाठ नहीं पढ़ाते अपितु का कोई फर्क नहीं था। सभी उनके चरणों में समान रूप से स्नेह । वे समाज का कल्याण करने वाले, मानवता की शिक्षा देने वाले प्राप्त करते थे। उनकी उपस्थिति ही हर श्रद्धालू को सहज ही इस और निकट का भाई चारा स्थापित करने वाले थे। उसका कारण बात के लिये आश्वस्त कर लेती थी कि उसकी समकित पूज्य उनका अपना सरल स्वभाव एवं मृदुता पूर्ण सम्भाषण था। आप श्री उपाध्याय के हाथों में पूरी तरह सुरक्षित है। के भक्त निरक्षर, विद्वान, दीन दुःखी, धनी सुखी दुःखी सभी प्रकार के लोग होते थे। मुझे इस बात का अति सुखद आश्चर्य होता था अनेक भाषाओं के वे जानकार थे और विचारों में कभी कि आप श्री सभी प्रकार के श्रद्धालुओं को अपना सुयोग्य एवं आग्रह का भाव नहीं रखते थे। दूसरों की बात पूरे ध्यान से सुनते समुचित परामर्श द्वारा प्रसन्न ही नहीं, आनन्द ही आनन्द कह कर थे मगर सिद्धान्तों के मामले में वे किसी तरह का समझौता करने विदा करते थे। मुझे यह कहने में तनिक भी संकोच नहीं है कि को तैयार नहीं थे। उपाध्याय श्री कई लब्धियों से प्रतिष्ठित थे। ऐसा आप श्री के तथ्य पूर्ण भाषणों, स्नेह-स्निग्ध वार्तालापों और सम कई बार अनुभव हुआ है कि वे भविष्य का सहज ही साक्षात्कार सामयिक विचारों से प्रभावित होकर श्रोताओं के दल के दल उमड़ कर लेते थे और अपनी प्रज्ञा और साधुचयों को सुरक्षित रखते हुए पड़ते थे और उन दलों में आबाल वृद्ध सभी होते थे। भक्तजनों के कष्ट निवारण में अपना समुचित योगदान बिना किसी आप श्री को शास्त्रों का गहन अध्ययन था। आप जैनागम जैन भेदभाव के कर लिया करते थे। ऐसा विरल व्यक्तित्व छिन जाने से दर्शन के सूक्ष्म पर्यवेक्षक के अतिरिक्त विविध शास्त्रों के भी मर्मज्ञ समाज को बहुत बड़ी क्षति हुई है जिसकी पूर्ति सहजतया संभव एवं गहन अध्येता रहे हैं। आपकी महत्वपूर्ण कृतियां ब्रह्मचर्य नहीं है। विज्ञान, श्रावक धर्म दर्शन, जैन धर्म में दान, धर्म का कल्प वृक्ष, महाभारत के प्रेरणा प्रदीप, विमल विभूतियां, वैराग्य मूति जम्बू । महान अध्यात्म योगी उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि ] कुमार, ओंकर एक अनुचिन्तन आदि है। आपका साहित्य इतना उपदेशक एवं आकर्षक रचना युक्त है कि इनको पढ़कर मन मंदिर -न्यायाधिपति श्रीकृष्ण मल लोढ़ा (से. नि.) पवित्र हो जाता है। (पूर्व न्यायाधीश राजस्थान उच्च न्यायालय एवं पूर्व अध्यक्ष, राज्य आयोग, उपभोक्ता संरक्षण, राजस्थान आप श्री ७० वर्ष तक कठोरता से संयम साधना में लीन रहे। अध्यक्ष श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ जोधपुर) वि. सं. २०५० चैत्र शुक्ला ११ को आप श्री ने समाधिमरण का संकल्प लेकर संथारा ग्रहण किया और ४८ घंटा पश्चात् शान्त हो भारत भूमि रलमयी है। इस बसुन्धरा ने अनेक रत्न उगले हैं। गये। उपाध्याय श्री पार्थिव रूप से हमारे बीच नहीं है पर समाज में उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि ऐसे ही रत्नों में एक दीप्ति मय रल थे। अहिंसा, सेवा, ज्ञान और क्रिया की जो ज्योति प्रज्वलित की है सर्व प्रथम तीन दशक के पहिले तपोनिष्ठ जीवन के धनी उसमें आप श्री की प्रेरणा, आप श्री का प्रकाश और आशीर्वाद बहुमुखी प्रतिभाशाली अथक अध्येता जैन धर्म के प्रति पूर्ण रूपेण | अक्षुण बना रहेगा। ऐसी महान् आत्मा को शत शत वन्दन। समर्पित व मानवता के संजीवक उपाध्याय पुष्कर मुनि के दर्शन का इस बात का गर्व है कि उपाध्याय श्री के सुशिष्य श्री देवेन्द्र लाभ मिला था। इसके पश्चात समय समय पर जोधपुर पाली, मुनि जी म. सा. श्रमण संघ के तृतीय पट्टधर है जो भविष्य में दिनों किशनगढ़, अजमेर, पीपाड़, उदयपुर आदि शहरों में दर्शन करने दिन श्रमण संघ की व्यवस्था का संचालन अद्वितीय ढंग से कर का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। उपाध्याय श्री की मुझ पर एवं मेरे } ज्ञान, दर्शन और चारित्र की अभिवृद्धि करते रहेंगे। Horror-POORNODIA alatca:00: 0t00:09OARDAN 6020050000000000006 1800 20605000090020680000000000000000000000000000 SDgin education JategnetonatopDada P 6905 00.00Diopriate Parbodarose onlyD6 300696580000000000 50000000000000000 000005065soorijanejaory.org, 2048:00
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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