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________________ एकाकर 06003000 POS08 2000 000 ८२ उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । महकता पुष्प 0 000000000 00000000 -साध्वी सुमिता एक दिन संध्या के समय सिद्धाचलम् की बाल्कनी में किताब पढ़ रही थी। सहज ही सामने ध्यान गया। पुष्पवाटिका में विविध रंग-बिरंगी पुष्प खिले हुए थे। जो मानव मन को मोह लेते थे। गुलाब के एक पौधे पर कुछ फूल खिले हुए थे पर उनमें एक पुष्प मुझाया हुआ नजर आया। मन में विचार चक्र शुरू हुआ कि फूल अपनी सुन्दरता से सबको आकृष्ट कर लेते हैं और अपनी भीनी-भीनी सुरभि फैलाकर मुझ जाते हैं। क्षणिक (अल्प-सा) जीवन भी सार्थक कर जाते हैं। शास्त्र में चार प्रकार के फूलों का वर्णन आता हैकई फूल ऐसे होते हैं जिनमें सौंदर्य भी होता है और सुवास भी। कई फूलों में सुन्दरता तो होती है, पर सुवास नहीं होती। कई फूलों में सुवास होती है, पर सुन्दरता नहीं। कई फूल ऐसे भी होते हैं जिनमें न तो सुवास, न सौंदर्य ही होता है। इसी तरह चार प्रकार के मानव होते हैंकई मानवों में आचार की सुन्दरता एवं ज्ञान की सुवास होती है। कई मानवों में सद्गुणों की सुवास होती है, पर आचरण नहीं। कई मानव ऐसे जिनमें आचरण होता है, पर सद्गुण नहीं। कई मानव ऐसे जिनमें न आचरण, न सद्गुण। उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि महाराज का जीवन खिले हुए गुलाब की तरह ज्ञान की सुवास से महकता था और आचरण की सुन्दरता से दर्शनीय था। सबका मन मोहकर दिग्दिगंत में अपनी गुण एवं यश सौरभ फैलाकर चला गया। 20 जीवन की मस्ती पर ये पंक्तियाँ सहज उद्गीत हो जाती हैं "जिंदगी की वो इक आला हस्ती थे जिंदगी में वो फकीराना मस्ती थे। जिनकी शान में है कौम का सिजदा जिंदगी में चमकती रोशनी की बस्ती थे।" नांदेशमा के बाद हमने गुरुदेव के दर्शन 'चादर महोत्सव' के अवसर पर किये। शरीर में काफी शिथिलता आ गई थी। फिर भी वंदना करने वाले को हाथ उठाकर शुभाशीष प्रदान करना आपका सहज स्वभाव नहीं गया। जंगम तीर्थ पुष्कर-गुरु के श्री-चरणों में जो भी पहुँच जाता, शुभाशीषों से उसकी झोली भर जाती थी। जन्म-जन्म के पाप धुल जाते थे। आपने कई पापात्माओं को पुण्यात्मा बनाकर महात्मा के उच्च स्थान पर आसीन किया है। आपकी कृपा अपार है। आप साक्षात् कृपासिन्धु व करुणावतार थे। आप अक्सर कहा करते थे "रोता आया मानव जग में, अच्छा हो अब हँसता जाय। और दूसरे रोतों को भी, जैसे बने हँसाता जाय॥" आप जीवन की अंतिम-बेला तक मुस्कुराते रहे। संथारावस्था में हमने देखा, तपोलीन साधक परमानंद प्राप्ति की लगन में ऊपरऊपर उठता चला जा रहा है। कबीरदास के शब्दों में आपकी मृत्यु महोत्सव बन गई जिस मरने से जग डरे, मेरे मन आनन्द। मरने से ही पाईये, पूरण परमानंद॥ गुरुदेव का पार्थिव-शरीर हमारे मध्य नहीं रहा, किन्तु भावात्मक रूप से वे अब भी अपने भक्तों के हृदय में विराजमान हैं। आपकी वाणी हम नहीं सुन पा रहे हैं, किन्तु अब ऐसा लगता है, अपने शिष्य-शिष्याओं के मुखारविंद से आप ही बोल रहे हैं। आप बेशक चुप हैं, किन्तु सदियों तक आपकी आवाज आपश्री के सद्साहित्य के माध्यम से गूंजती रहेगी। व्यक्ति, परिवार व देश को 'जैन कथाएँ' सम्यक् मार्गदर्शन करती रहेंगी। अंधकार में भटकती, ठोकरें खाती हुई भव्यात्माएँ आपके द्वारा प्रदत्त ज्ञान-रश्मियों में मार्ग टटोलती रहेंगी। ऐसा पूर्ण विश्वास है। 'तू चुप है लेकिन सदियों तक गूंजेगी ये साज तेरी। दुनियाँ को अंधेरी रातों में, ढांढस देगी आवाज तेरी॥" गुरुदेव हम सदैव कृतज्ञतापूर्वक आपके बताये मार्ग पर अग्रसर होते रहें-इसी मंगल मनीषा के साथ भावपूर्ण शत-शत वंदन! अभिवंदन। अभिवंदन! अभिवंदन!! अभिवंदन!!! .. 00000000.69%ALELOPAL 200Pa600RDHAd0606 अमूल्य हीरा खो दिया DOOD -साध्वी कमलप्रभा शास्त्री . उपाध्यायश्री पुष्कर मुनिजी म. की वाणी में गजब का ओज, माधुर्य और प्रवचन करने की ऐसी सुन्दर कला थी कि सारी जनता भाव-विभोर हो जाती थी। आपकी वाणी से वीरवाणी का सुन्दर निर्झर प्रवाहित होता था। आपश्री के मंगलचरण जहाँ भी पड़े, आपश्री की मधुरवाणी ने और दिव्य साधना ने वह चमत्कार दिखाया कि नास्तिक भी आस्तिक हो गये। आप में किसी भी प्रकार का दुराव-छिपाव नहीं था। आप विराट् हृदय के धनी, जप और ध्यान योगी थे। आप जिधर गये वहाँ जन-जन को आकर्षित किया। 0.9. 2GERGOOD MEDGatich internationalVID5602 PIRC009 Foreruare personal use only D wwwginelibrary.org D ECI
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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