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________________ श्रद्धा का लहराता समन्दर का . एक बार जब दादीजी म. सा. के स्थान पर मस्ती में ये साथ रहने की अनुमति मिल जाय तो जीवन-भर आपके साथ पंक्तियाँ गा रही थीं तब वात्सल्यमूर्ति दादीमाँ ने मेरे समीप आकर रहकर साधना कर सकूँ। वात्सल्य से सिर पर हाथ फिराते हुये कहा-"तुझे साध्वी बनना इस बाल चेष्टा के समक्ष सभी चकित थे। गुरुदेव ने अपना पसंद है?" मैंने कहा-"हाँ, मुझे साध्वी बनना अच्छा लगता है।" पाँव पीछे किया, और एक भाई ने हाथ पकड़ कर मुझे दूर हटाया। दादी म. सा. ने तब बड़े वात्सल्य के साथ सिर पर हाथ फिराते हुये कहा-'तब तो कल तुझे गुरुदेव के पास ले चलूँगी, चलेगी न?' 1 भाई ने समझाया- 'तू लड़की है न, साथ में जाना तो दूर तू मैंने कहा-'जरूर चलूंगी।' गुरुदेव को छू भी नहीं सकती है।' दूसरे दिन दादीजी म. सा. व भुआजी म. सा. मुझे मदनपोल ___उस समय के बाल-मन को बड़ी ठेस पहुंची। स्थानक में गुरुदेव के पास लेकर गये। शांत-एकांत नीरव स्थान पर । मैं घर की ओर लौट गई, गुरुदेव विहार कर गये। इस घटना गुरुदेव का सामीप्य पाकर हृदय धन्यता का अनुभव कर रहा था। का हृदय पर गहरा प्रभाव अंकित हो गया। धर्म की ओर रुचि मुझे आगे करके दादीजी म. सा. ने कहा-'गुरुदेव! यह बढ़ती गई, और स्कूल की पढ़ाई के साथ-साथ धार्मिक अभ्यास भी आनंदीलाल की छठवीं लड़की है। इसे धर्म में बड़ी रुचि है। आपका । चलता रहा। भजन-'जय हो जय हो साधु जीवन की' हरदम गुनगुनाती रहती इधर मेरे बड़े बहन महाराज श्री विजयश्री जी म. सा. ने है। इसे आत्मबोध देने की कृपा कीजिये। पंजाब सिंहनी परम पूज्या महासती श्री केसरदेवी जी म. सा. व गुरुदेव ने मेरे ऊपर वात्सल्य-रस की वर्षा करते हुये। अध्यात्मयोगिनी महासती श्री कौशल्यादेवी जी म. सा. के पावन फरमाया-'बेटी ! तुम्हारा नाम क्या है?' सान्निध्य में १२ वर्षों से दीक्षा अंगीकार की हुई थी, उस समय "गुरुदेव ! प्रियदर्शना' उनका विचरण क्षेत्र दक्षिण भारत हैदराबाद था। गर्मी की छुट्टियों में पिताजी के साथ मैं भी हैदराबाद पहुँची। गई तो केवल दर्शनों के अच्छा, भगवान महावीर की बेटी। वही प्रियदर्शना है क्या? लिये थी किन्तु हमेशा-हमेशा के लिये वहाँ की हो गई। अब ध्यान लगाकर सुनना'अरिहंतो महदेवो'-अरिहंत भगवान मेरे देव हैं। वैराग्य रंग ऐसा चढ़ा कि धार्मिक पढ़ाई ही रुचने लगी। दो । वर्ष तक वैराग्यकाल में अध्ययन किया। 'जावज्जीवं सुसाहुणो गुरुणो'-जीवन पर्यन्त के लिये सच्चे साधु मेरे आराध्य गुरुदेव हैं। सन् १९७९ की अक्षय तृतीया को दीक्षा निश्चित हुई। संयोग से आचार्य भगवंत आनंद ऋषिजी म. सा. का व उपाध्याय प्रवर 'जिणपण्णत्तं तत्तं'-जिनेश्वर भगवान द्वारा बताया हुआ तत्त्व | गुरुदेव श्री पुष्कर मुनिजी म. सा. एवं साहित्य वाचस्पति वर्तमान में सिद्धान्त ही मेरा धर्म है। जो आचार्य पद पर सुशोभित हैं श्री देवेन्द्रमुनि जी म. सा. भी वहाँ 'इअ सम्मत्तं मए गहियं'-इस समकित-रल को मैं ग्रहण समुपस्थित हो गये। करती हूँ। उन घड़ियों में मेरे गुरुणीजी म. सा. को व मुझे अपार करुणासिंधु गुरुदेव ने मुझे समकित का स्वरूप समझाया। प्रसन्नता हो रही थी। जीवन के उषाकाल में जिस सद्बोधि का जीवन भर जमीकंद त्याग की व नवकार महामंत्र की एक माला बीज अन्तर्हृदय में वपन किया; पुनः उसका अभिसिंचन करने व फेरने की प्रेरणा दी। दीक्षाकाल में आशीर्वाद प्रदान करने आप हैदराबाद पधार गये। मेरे जीवन में ये स्वर्णिम क्षण अपूर्व थे। जीवन में पहली बार दीक्षा के समय के मंगलमय उद्बोधन व आशीर्वचन मेरे मुझे सच्चे आनंद की अनुभूति हुई। जीवन की अनमोल निधि हैं। विस्तार-भय से सभी घटनाओं का गुरुदेव से इतना आंतरिक लगाव जुड़ गया कि स्कूल का समय उल्लेख कर पाना कठिन प्रतीत हो रहा है। १९७९ का हमारा छोड़कर लगभग सारा समय वहीं बीतने लगा। जब यह सुना कि- चातुर्मास आचार्य श्री व उपाध्याय श्री के साथ में हुआ। चार मास गुरुदेव! विहार करने वाले हैं तो सुनते ही आँखें बरसने लगीं, फिर तक हम भरपूर लाभ लेते रहे। सोचा रोने से क्या होगा? गुरुदेव से विनती करूँगी, मुझे भी साथ ले चलो, फिर क्या था? मन में दृढ़ निश्चय कर लिया और । __ अब मैं अपने पाठकों का ध्यान सन् १९९३ वर्ष की ओर व्याख्यान समाप्ति के बाद जब सभी लोग जा चुके थे मात्र तीन आकर्षित करना चाहती हूँ। | चार भाइयों के साथ पिताजी से गुरुदेव बात कर रहे थे. मैं मौके चौदह वर्षों के बाद पुनः हमने जनवरी १९९३ में नांदेशमा की टोह में वहीं खड़ी थी-जैसे ही बात पूरी हुई कि गुरुदेव के ग्राम में गुरुदेव के दर्शन किये। शरीर शिथिल हो गया था फिर भी चरण पकड़ लिये। गुरुदेव मेरे पिताजी को समझा दीजिये, आपके आवाज में वही ओज और वही मस्त जीवन। dainu cation International SHASDDED deceae
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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