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________________ 55696090098 ३ श्रद्धा का लहराता समन्दर : हुए फूलों की तरह मोहक थी। जन सागर श्रद्धा और प्रेम की इतने वर्षों के आशीर्वादमय निकट (सान्निध्य) साए का सर से उत्ताल तरंगों की भाँति उमड़ता था और उसी प्रकार हमारे आचार्य उठ जाना कितना वेदनामय होता है। इस बात का पूरा अनुभव ले भगवन् भी जन-जन के लिये विराट् विकास का नया द्वार खोलेंगे चुके हैं और ले भी रहे हैं। एक तरफ जिम्मेवारियों का आमंत्रण ऐसी पूर्ण आशा हर एक मानस में प्रज्ज्वलित है। उनका प्रबल तथा दूसरी तरफ गुरु भगवन्त का महाभिनिष्क्रमण !!! .. पुरुषार्थ आज सभी के सामने प्रकाश स्तम्भ की तरह मौजूद है। हम सभी के लिये एक सुदृढ़ कवच है जो किसी संकट के समय हमारी फूल चला गया, सुगंध रह गई ) पूर्ण रूप से रक्षा करेंगे ऐसी पूर्ण आस्था है। -महासती सरस्वती जी ___पूज्यवर! आपका साया हमारे ऊपर बना रहे ऐसे गुरु अनन्तअनन्त पुण्यवानी से ही मिलते हैं। लेकिन मुझे एक आश्चर्यकारी उपाध्याय श्री पुष्करमुनिजी का जीवन पुष्प ही था। पुष्प (यानी बात तो यह देखने को मिली कि उपाध्यायश्री के सान्निध्य में शिष्यों फूल), फूल चला जाता है, और सुगन्ध छोड़ जाता है। उपाध्यायजी की अनोखी जोड़ी देखने को मिली, जैसे सूर्य के समान तेजस्वी के जीवन का क्या वर्णन करूँ। जीवन एक पुष्प है जहाँ पुष्प है तो हमारे आचार्य भगवन् देवेन्द्र मुनिजी म. सा. एवं चन्द्र के समान प्रेम अवश्य है। सत्य है प्रेम में से ही मधु निकलता है वही तो शीतल और प्रकाण्ड विद्वान् पूज्य श्रीगणेशमुनि जी शास्त्री दोनों जीवन का आनन्द है। गुरुभ्राता की अनुपम जोड़ी जो अनेक सद्गुणों से अलंकृत है तथा दोनों भ्राता राम लक्ष्मण जैसे दीप रहे हैं। वैसे तो सभी शिष्य गुणों उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी म. सा. ने अनेकों देशों में के निधान हैं। किन्तु आचार्य भगवन की सेवा पूज्य दिनेश मुनिजी विचरण करके अपनी मधुरवाणी को वर्षाते हुये प्रेम की धारा और पूज्यनीय श्री गणेशमुनिजी शास्त्री की सेवा में श्री जिनेन्द्र मुनि बहाते हुये क्रूर हृदय को सरल हृदय बनाया। उन्होंने प्रेम की शक्ति की जो सेवा देखी वह अवर्णनीय है। ऐसी महान् विभूतियों के को पहचाना था। वे विश्वास करते थे कि क्रूरता को प्रेम से बदला पावन पुनीत चरणाम्बुजों में यथाविधि कोटि-कोटि वन्दना। जा सकता है। क्रूरता कैसी भी आई सामने पर देवत्व शक्ति भी प्रचंड थी। पर प्रेम की शक्ति महान् है। इस सिद्धान्त पर विश्वास हे श्रमण कुल के भानू आपकी छत्रछाया व वरदहस्त हम रखकर ही वे चल पड़े और इसीलिये अपने दुश्मनों के बीच भी श्रमण-श्रमणियों के ऊपर युग-युग तक बना रहे यही प्रभू से बेखौफ घूम सके। क्योंकि वे जानते थे कि क्रोध कितना भी दानवी सविनय प्रार्थना करती हूँ। हथियार से सज्जित क्यों न हो पर जिसके पास क्षमा का अस्त्र है तो उसे वह पराजित कर देगा। दानव को हमेशा देवत्व के सामने गुरुदेव का महाभिनिष्क्रमण झुकना पड़ा है। क्रोध सदैव क्षमा के सामने पराजित हुआ है। इसी विश्वास के बल पर वे क्रूरता को कोमलता में बदल देते थे। कारण 5 -साध्वी प्रीतिसुधा कि जीवन में वही साधना, वही त्याग, वही ध्यान, वही मौन, वही महान् तेजस्वी, ज्ञानस्थविर, जपस्थविर, दीक्षास्थविर परमपूज्य । तप, इन्हीं के प्रभाव से देवता तो चरणों में आकर वन्दन-नमस्कार उपाध्यायश्री जी की वार्ता सुन ऐसे स्तब्ध हो गए कि न बोल पाए, करते ही थे पर दानवों ने भी आकर नमस्कार किया और अपनी न हिल पाए। अस्वस्थता के समाचारों से अवगत थे किन्तु प्रतीक्षा । स्वयं की क्रूर बुद्धि का त्याग किया। यह शक्ति उपाध्याय श्री पुष्कर इस बात की कर रहे थे कि होश में आने के समाचार आयेंगे मुनिजी म. सा. की है। पुष्प कहै, पुष्कर कहै, मुष्कर कहै। किन्तु हुआ अलग ही, संथारे के समाचार सुने ही थे कि आखिरी क्या-क्या गुण गायें॥ पैगाम की सूचना १५ मिनट बाद ही मिली मराठी में कहते हैं "गड आला पण सिंह गेला' दुर्ग जीता पर शेर जैसा आदमी चला गया। जिन्होंने देव इन्द्र की प्रतिमा को । दीप स्तंभ उपाध्याय श्री पुष्करमुनिजी तराशा था। विविध प्रतिभाओं के पैलुओं से पारदर्शक बनाया था। साध्वी रोशनकंवर जी म. (न्यायतीर्थ) कम से कम एक बार भी झांक लेते अपने आइने में तो सार्थक हो (स्व. श्री विरदीकंवर जी म. की सुशिष्या) जाता सारा प्रयास। किन्तु विधि के विधान तो कुछ विचित्र होते हैं। कैसी आंटी चूंटी घुट जाती है कर्मों के उदय की कि मनुष्य के सारे पुष्प स्वयं सुंदर है, उसे सुंदरता का बाना पहनाने की पुरुषार्थ बौने हो जाते हैं। आवश्यकता नहीं होती। देव इन्द्र का साया था वह, काया थी फौलादी। पुष्प के सौन्दर्य का वर्णन नहीं करना पड़ता, न ही उसकी याद आशीर्वाद दिए थे अनगिन, माया सारी भुला दी। या में स्मृति धाम बनाने पड़ते हैं। फूल से प्रसरित सुवास ही उसका K0000000208030RPAalues 20RREODADDY.POID390600 PRO Join olication Tratamnational C e KPOOR PO3D Fan Pavales persones 100696602 IDADATE www.alibaby
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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