SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 121
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 262906 000000000000RGERad 106 श्रद्धा का लहराता समन्दर माग ६९ । रहता है। परम श्रद्धेय सद्गुरुवर्य उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी म. के विसर्जित हो जाने पर भी उपाध्यायश्री जी की कीर्तिगाथा अमर ऐसे ही विशिष्ट महापुरुष थे, वे जब तक रहे तब तक उनका | है, अमर रहेगी। इसी विश्वास के साथ आस्था पूर्ण हृदय से जीवन पुष्प महकता रहा पर आज वे नहीं हैं किन्तु उनकी उपाध्यायश्री जी के प्रति श्रद्धा सुमन समर्पित करती हूँ। यश-गाथा आज भी सर्वत्र मुखरित है, एक क्षण भी जीओ, प्रकाश "हर दिल में तेरी याद है, दिल याद से आबाद है, करते हुए जीओ यदि हजारों वर्षों तक भी जीया गया, विकार और आबाद है दिल साद है, सब गा रहे गुणवाद है। वासनाओं के धुएँ को छोड़ते हुए तो वह जीवन किस काम का? श्रद्धा के दो फूल हैं, कर लीजिए स्वीकारगुरुदेवश्री का जीवन दिव्य था, भव्य था तो मृत्यु भी उससे भी आशीर्वाद दें हमें, थामें नाव की पतवार॥" अधिक यशस्वी रही, जिस व्यक्ति की मृत्यु यशस्वी होती है, उसका जीवन भी पूर्ण यशस्वी होता है, मैंने स्वयं ने अपनी आँखों से देखा है गुरुदेवश्री के जीवन के अन्तिम क्षणों को, सूर्य जब अस्ताचल की आध्यात्मिक साधक : उपाध्याय श्री ओर पहुँचता है तो उसका प्रकाश धीमा हो जाता है। उसमें मध्याह्न की तरह तेजस्विता नहीं होती पर गुरुदेवश्री का जीवन सूर्य सांध्य -महासती श्री रमेश कुमारी जी म. बेला में भी मध्याह्न के सूर्य की तरह चमक रहा था, प्रदीप्त था, परिवर्तिनि संसारे, मृतः को वा न जायते। यही उनके सफल जीवन की निशानी थी, ऐसे परम आराध्य स जातो येन जातेन, याति वंशः समुन्नतिम्॥ गुरुदेवश्री के चरणों में भावभीनी श्रद्धांजलि समर्पित करती हूँ। इस नश्वर संसार में अनन्त प्राणी प्रतिदिन जन्म लेते हैं और अनन्त ही प्रतिदिन काल के गाल में विलीन हो जाते हैं। संसार के एक आदर्श जीवन अन्य व्यक्तियों का पता भी नहीं पाता कि कब कौन, कहाँ जन्मा और कब इस संसार से विदा हो गया? प्रिय से प्रिय व्यक्ति को भी -साध्वी डॉ. सुशीला हम कुछ ही दिनों में भूल जाते हैं। हमें न उनकी जन्म की तिथि एम.ए., पी-एच.डी. स्मरण रहती है, और न मृत्यु की। सामान्य मनुष्य जन्म लेता है, परम श्रद्धेय, पूज्य गुरुदेव, शांत आत्मा उपाध्याय श्री पुष्कर जीवन भर की जीविकोपार्जन में लगा रहता है और अन्त में मर मुनिजी म.! आपका गरिमा पूर्ण व्यक्तित्व आलोक स्तम्भ की तरह जाता है। ऐसे व्यक्ति का जीवन निरुद्देश्य ही रहता है और सर्वत्र प्रकाश फैलाता हुआ बड़ा ही अद्भुत था। मुझे आपके प्रत्यक्ष मानव-जाति को उनके संसार में आने का कोई लाभ नहीं मिलता। दर्शनों का सौभाग्य प्रथम बार उदयपुर में आचार्य चादर महोत्सव परन्तु संसार में कुछ ऐसी महान् विभूतियाँ भी जन्म लेती हैं, जो के पावन प्रसंग पर मिला। मैंने देखा अस्वस्थता के क्षणों में भी कि भौतिक दृष्टि से तो मृत्यु को अवश्य प्राप्त होती हैं, अपने अप्रमत्त बनकर उपाध्यायश्री जी स्वाध्याय किया करते थे। जीवन महान कार्यों से ऐसी अमर ज्योति संसार में प्रज्ज्वलित कर जाती के अंतिम समय में आपके चेहरे पर अपूर्व शांति विद्यमान थी। हैं, जिसके अलौकिक प्रकाश में मानव-जाति के उत्थान का मार्ग हम अपने आपको गौरवशाली मानते हैं कि उपाध्यायश्री जी ने । अनन्तकाल तक आलोकित होता रहता है और वे जन-जन के हृदय अपने शिष्य रत्न हमारे श्रद्धा केन्द्र आचार्यश्री देवेन्द्रमुनिजी म. जैसे में अमर हो जाते हैं। ऐसी महान् आत्माओं के जीवन की सुगन्ध महान् विभूति संत रत्न से श्रमणसंघ की गरिमा में चार चांद लगाये कोटि-कोटि युगों तक महकती रहती है और जन-जीवन को हैं। उपाध्यायश्री जी की प्रतिमूर्ति आचार्यश्री जी का हर आदर्श सुवासित करती रहती है। हमारे लिए अनुकरणीय है। ऐसे ही थे उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी म. जिन्होंने अपने उपाध्यायश्री पुष्कर मुनिजी म. सादगी, सरलता, त्याग एवं शाश्वत विचारों से जैन जगत को ही नहीं, अपितु प्राणी मात्र को तपस्या की एक सजीव मूर्ति थे। आपकी जीवन-साधना का प्रत्येक । एक नई चेतना दी तथा सोए हुए समाज को जागृत करके उसे क्षण भगवान् महावीर की उद्घोषणाओं के साथ गतिशील था। जीवन का वास्तविक उद्देश्य बताया और सद्मार्ग पर दृढ़ता से आपकी आध्यात्मिक साधना इतनी महान् थी कि गरीब हो या चलने की प्रेरणा दी। पूज्य गुरुदेव उस दीपक की भाँति थे, जो अमीर, रोगी हो या स्वस्थ, नेता हो या व्यापारी तथा श्रेष्ठी हो या स्वयं जलता है और दूसरों की राह आलोकित करता है। सामान्य व्यक्ति, सभी के लिए आकर्षण का केन्द्र थी। आपकी अध्यात्म विजेता ओजपूर्ण वाणी के प्रभाव से अनेक कुपथगामी प्राणियों की दिनचर्याएँ बदल गईं। “यथा नाम तथा गुण" की उक्ति के अनुसार हे सच्चे साधक! आपश्री जी के जीवन से त्याग, वैराग्य, उपाध्यायश्री पुष्करमुनि जी म. ने अपने नाम को “पवित्र पुष्कर इन्द्रिय-निग्रह, संयम-साधना, धैर्य, शौर्य, वीर्य, साहस, प्रोत्साहन के तीर्थ" की तरह सार्थक किया। जो प्रतिपल वंदनीय है। भौतिक देह । साथ बाह्य और आभ्यन्तर तप के झर-झर झरते हुए झरनों में नयन उपाण्या 206.00000 .0. EDOHDDOO3900000000000000000006868893592 PARAPAIRPOP6030600580P PARDEResdaesemap90009065 50.9agwanelargyrs HTTEOUPS-2506.0000000000000000000 000000RANGAROO
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy