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________________ श्रद्धा का लहराता समन्दर श्रमण संस्कृति के महान संत - साध्वीश्री वसन्त कुंवरजी जैन श्रमण संस्कृति की एक गौरवशाली परम्परा रही है। युगों-युगों से आत्म-कल्याणार्थ, धर्मप्रचारार्थ एवं मानवमात्र के हित हेतु संसार, स्वजन एवं भौतिक सुख-सम्पदा का परित्याग करके संयम पथ को अंगीकार करने वाले मनीषियों की एक लम्बी श्रृंखला जैन संस्कृति में विद्यमान है। श्रमणसंघ के उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी म. सा. ने अपने दीर्घ संयमी जीवन में तप, त्याग और वैराग्य की एक ज्योतिर्मय मूर्ति के रूप में जैन श्रमण संस्कृति को आलोकित करते हुए मुमुक्षु मानवों का पथ-प्रदर्शन किया। आपश्री ने श्रमणसंघ को आचार्य के रूप में एक विद्वान शिष्य आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि जी म. सा. को इस श्रमण संस्कृति की बागडोर सौंपकर श्रमणसंघ पर महान उपकार किया है जिसे कोई भी व्यक्ति या श्रमण-श्रमणी विस्मृत नहीं कर सकते। उपाध्याय श्री का स्वभाव सरल एवं हमेशा प्रसन्न मुख ही रहता था। आप श्रमणसंघ के महान् संतों में एक थे। आपका विचरण भारतवर्ष के अन्दर उत्तर से दक्षिण व पूर्व से पश्चिम तक रहा। आप श्रमण संस्कृति के महान संत थे। आपके दर्शन करने का सौभाग्य मुझे भी आपके इंदौर चातुर्मास के समय मिला। आप स्वभाव के बहुत ही मधुर एवं सरल थे। आपने श्रमण संघ को अपने संयम एवं साधनामय समय में संगठन एवं एकता के प्रयास में काफी योगदान दिया। धर्म ध्येय के विराट् धनी श्री पुष्कर मुनि : -साध्वीश्री 'तेजकुंवर' जी. म. (परम विदुषी महासती स्व. श्री यशकुंवर जी म. सा. की सुशिष्या) धर्म के व्याख्याकार इस संसार में बहुत होते हैं। परन्तु धर्म को धारण कर उसके ध्येयों को आत्म सात कर, युग-निर्माण का कार्य करता हुआ मानव जाति का पथ प्रदर्शक बन जाये, ऐसी विलक्षण प्रतिभाएँ यदा-कदा ही जन्म लेती हैं। श्री जैन श्रमण संघ के महान मुनि, धार्मिक शिक्षाओं को मूर्त रूप देने वाले इस बेजोड़ शिल्पी का श्री वर्धमान जैन श्रमण संघ में विशिष्ट स्थान है। पुष्कर मुनि पवित्रता का पर्याय है। श्री पुष्कर मुनिजी महाराज में धर्म की आराधना एवं धर्म की पावनता का बीजारोपण उनके धार्मिक एवं पावन ब्राह्मण कुल में जन्म लेने से ही हो गया था। आपश्री एक दिन मुनि शिरोमणि श्री ताराचंद्र जी महाराज के सम्पर्क में आये एवं उनसे धर्म के रहस्यों पर उस बाल्यावस्था में ही विचार-विमर्श करने लगे। बालक की धार्मिक रुचि देखकर स्वयं 10000008 Jain Education International ६५ महाराज साहब भी हतप्रभ रह गये। गुरुदेव से प्रभावित होकर बालक अम्बालाल ने अपने जीवन को सार्थक बनाने के लिए उनकी निश्रा पाने का निश्चय कर लिया। किसे पता था एक छोटा-सा ये ब्राह्मण बालक तीर्थराज पुष्कर की सी गहराई प्राप्त कर संसार के पापों को हरने वाले महान् साधु बन जायेंगे। श्री पुष्कर मुनि ने अखण्ड तपस्या एवं अपनी योग शक्ति के बल पर संस्कृत, प्राकृत एवं कई भारतीय भाषाओं के ज्ञाता बन गये। जैन धर्म के विपुल ग्रन्थों का अध्ययन, चिन्तन एवं उनको आत्मसात करके एक नवदर्शन का मार्ग प्रशस्त किया। उन्होंने अन्य धर्मों एवं सम्प्रदायों के ग्रन्थों का भी गहन अध्ययन किया। इस महान तपस्या एवं आराधना के लिए आचार्य श्री आनन्दऋषि जी ने उन्हें उपाध्याय की पदवी प्रदान कर श्री वर्धमान श्रमणसंघ को कृतकृत्य किया। उन्होंने विविध जैन ग्रन्थों की रचना कर जैन साहित्य में वृद्धि ही नहीं की बल्कि साधु समाज के लिए एक अनुकरणीय कार्य किया है। 邪 श्रमणसंघ में आपश्री जी एक महान हस्ती के रूप में थे। आपश्री जी की अनुपस्थिति श्रमण संघ के लिए क्षति पूर्ण है। ऐसी विभूतियाँ अथक परिश्रम से ही प्राप्त होती हैं। आपश्री जी को चिर शान्ति प्राप्त हो यही मेरी भावनाजलि अर्पित है। महापुरुषों की विराट् गौरवगाथा -साध्वी प्रीतिसुधा 'प्रिया' ( मरुधरासिंहनी श्री तेजकुंवर जी म. सा. की सुशिष्या) महापुरुषों का जीवन हमारे नैतिक, धार्मिक, नैष्टिक व व्यावहारिक जीवन में प्रेरणा प्रदान करता है। आपकी उज्ज्वल लीला हमें सुसंगठित व निष्ठा परायण बनने के लिए उत्साहित करती है। आपका जन्म संवत् १९६७ आश्विन शुक्ला १४ के दिन सिमटारा ग्राम की भूमि आपश्री के जन्म से धन्य हो गई। शुक्ला चवदश का जन्म किसी-किसी भाग्यशाली को ही प्राप्त होता है। जिसने शुक्ला चतुर्दशी को जन्म लिया वह स्वतः ही भाग्यशाली बनता है। आपका धैर्य व साहस सराहनीय है। आप श्रमणसंघ के उपाध्याय पद से इसीलिए विभूषित हुए कि “विक्रमार्जित राज्यस्यरचयमेव मृगेन्द्रता" वाली उक्ति को स्वयं चरितार्थ करता है। आपका अध्ययन सर्वतोमुखी था। बाल्यकाल में आपका अध्ययन नहीं के बराबर था किन्तु जब श्री ताराचन्द्र जी म. सा. से १९८१ में ज्येष्ठ शुक्ला १० के दिन दीक्षित हुए तब से गुरु कृपा के कारण अध्ययन चालू हुआ। आप प्राकृत, संस्कृत, हिन्दी, मराठी, गुजराती, कन्नड़ एवं राजस्थानी आदि अनेक विषयों में, पारगामी हुए। Private & Pemorial uses 2000
SR No.012008
Book TitlePushkarmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, Dineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1994
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size105 MB
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