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________________ अभिनन्दन-पुष्प ६३ संयम लेते ही आपने अपनी निर्मल बुद्धि एवं सम्पूर्ण शक्ति को ज्ञानाभ्यास में लगाकर थोड़े ही समय में दशवकालिक, उपासकदशांग, निरयावलिका, अनुत्तरोववाई आदि सूत्र ग्रन्थों का अध्ययन किया। जैन तत्त्वज्ञान सम्बन्धी थोकड़ों का अभ्यास दत्तचित होकर किया, साथ ही जैन आगमों और सिद्धान्तों के अभ्यास के साथ ही विशिष्ट ज्योतिष शास्त्र का गहन अध्ययन कर निपूण हए। ब्रह्मचर्य के तेज से इनका व्यक्तित्व इतना निखरा हुआ प्रतीत होता है कि मानों अरुणाचल पर लालवर्णीय सूर्योदय हो रहा हो। ऐसे जैन शास्त्रीय समुदाय मैं प्रतिष्ठा प्राप्त करने वाले तथा भगवती सरस्वती देवी के वरद् पुत्र श्री कस्तूरचन्दजी महाराज रतलाम नगर में नीमचौक स्थानक में विराजमान हैं, मालव मणि के समान रतलाम नगरी की शोभा को चमका रहे हैं। सन्तों, महापुरुषों एवं मनीषियों की वाणी जीवन निर्माण एवं लोक कल्याण की पवित्र प्रेरणा का सन्देश लिए हुए होती है। आपके अगाध पाण्डित्यपूर्ण ओजस्वी एवं मर्मस्पर्शी प्रवचन का पान कर कोई भी मुमुक्षु विरला ही मिलेगा जो प्रवचन को सुनकर प्रभावित न होता हो। मधुर, सारगर्भित एवं अद्भुत शैली प्राञ्जल्य को सुनकर दुष्ट से दुष्ट आत्मा भी अपना आत्मोत्थान किये बिना नहीं रह सकती है। महापुरुषों का प्रमुख लक्ष्य धर्म का प्रचार-प्रसार एवं पतितों का उद्धार करना होता है। इसी उद्देश्य को समक्ष कर राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश तक के चारों ओर के प्रदेशों में भ्रमण कर अहिंसा के अवतार भगवान महावीर के दिव्य एवं अनुपम सन्देश को कुटियों से लेकर महलों तक अपने भावपूर्ण एवं ओजस्वी प्रवचनों के द्वारा सत्य-अहिंसा का पाठ जनमानस को देकर अज्ञान के अन्धकार को मिटाकर उसके स्थान पर ज्ञान की अक्षय दीपशिखा प्रज्वलित कर दीन-दु:खियों के हृदय को परम आनन्द की अनुभूति प्रदान कर उनको जीवन के कल्याण का सन्मार्ग बताया। आपकी वाणी में वह अमत है जो कई सागरों के मन्थन करने पर भी प्राप्त नहीं होता है। ऐसी अमतमयी वाणी से ओतप्रोत उपदेश का पान करने जो भी आपकी शरण में आता है वह अपने जीवन को धन्य एवं कृत-कृत्य कर लेता है। आपकी व्याख्यान छटा बड़ी आकर्षक, मनोहर, प्रिय, सरस-सरल, मनोरंजक और प्रभावशाली है। साथ ही आप ज्योतिष शास्त्र के प्रकाण्ड विद्वान् हैं। आपके अनुभव का पान करने पर मौलिक चिन्तन और असीम शास्त्रज्ञान का सहज ही परिचय हो जाता है। स्मरण शक्ति और बौद्धिक क्षमता में अद्भुत इस शिरोमणि आत्मा का आज ८५ वर्ष की वय में भी ज्ञान इतना ठोस, प्रामाणिक और कंठाग्र है कि शास्त्रों की एक-एक पंक्ति अर्थ एवं भावार्थ सहित कंठस्थ है। मुनियों का जीवन सूर्यवत् परोपकारी हुआ करता है। जैसे सूर्य के कारण ही जल-वृष्टि होती है और संजीवनी शक्ति प्राप्त होती है वैसे ही सन्तों के जीवन चरित्र से मुमुक्षु जीवों की कषाय स्थिति क्षीण होकर वह पवित्र हो जाता है। ऐसी आपकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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