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________________ अभिनन्दन-पुष्प ज्ञान-गरिमा मंडित उपाध्याय श्री कस्तूरचंदजी महाराज 0 श्री ईश्वर मुनिजी महाराज श्रमण संस्कृति के प्रतीक परम पूज्य ज्योतिषाचार्य, मालवरत्न, शासन-सम्राट उपाध्याय श्री कस्तूरचन्दजी महाराज साहब जैन समाज के जाज्वल्यमान नक्षत्र हैं । आपका जन्म विक्रम सम्वत् १९४६ ज्येष्ठ कृष्णा १३ रविवार को जावरा शहर में हुआ। मान्यवर श्री रतिचन्दजी एवं सुश्री फूलीदेवी आप जैसे पुण्यवान् पुत्र को पाकर फूले नहीं समाये। चन्द्र-कला ज्यों आप बढ़ने लगे। योग्यावस्था के अनुसार माता-पिता ने आपको अध्ययन के लिए पाठशाला में प्रवेश कराया। दत्त-चित्त होकर अध्ययन करने लगे। उन्हीं दिनों जीवन के महान निर्माता श्री मज्जैनाचार्य खूबचन्दजी महाराज का जावरा नगर में पदार्पण हुआ। हृदय को उद्वेलित करने वाले व्याख्यान होने लगे। वैराग्य रसास्वादन करने के लिए हमारे चरितनायक भी अपने साथियों के साथ जा पहुँचे । पूर्वजन्म के शुभ संस्कारों के फलस्वरूप पूज्य प्रवर के प्रवचन सुने और वैराग्य भावना जाग्रत हो उठी। यद्यपि धर्माराधना काल में एक के बाद एक विघ्न-बाधा उभरते हैं तथापि धुन के पक्के साधक अपने निर्णीत मार्ग का परित्याग नहीं करते हैं। अन्ततोगत्वा पारिवारिक जनों की अनुमति प्राप्त कर सम्वत् १९६२ कार्तिक शुक्ला त्रयोदशी गुरुवार को पूज्यश्री खूबचन्दजी महाराज साहब के सान्निध्य में रामपुरा में दीक्षा व्रत स्वीकार किये । लघुवय में संयमी बन कर हिन्दी, संस्कृत, प्राकृत, गुजराती एवं ज्योतिष सम्बन्धी गुण ज्ञान में आशातीत सफलता प्राप्त की। विद्वद्वर मुनिमहासती वृन्द आपके मुखाविन्द से पांडित्यपूर्ण ज्ञान की चर्चायें सुनते-सुनते आनन्द विभोर हो जाते हैं। ___ जैन वाङमय में आपका विशाल अनुभव है तथापि आप अभिमान से कोसों दूर हैं। आप सरल स्वभावी एवं कठोर संयम पालक रहे हैं। आपने अपने जीवन काल में अनेक सन्त एवं सती वर्ग को अध्ययन करवाया है। संयमी जीवन निर्वाह के आवश्यक सभी साधन आपश्री के भण्डार में विद्यमान हैं जिन्हें समय-समय पर अभेद भाव से आप अपने वरद् कर-कमलों से प्रदान किया करते हैं। दीन-दुखी, अनाथ, अनाश्रितों को देखकर आपका मृदु मन पसीज जाता है। फलस्वरूप आपकी बलवती प्रेरणा से लगभग सभी प्रान्तों में विधवा सहयोग, छात्रवृत्ति एवं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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