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________________ अभिनन्दन - पुष्प मेवाड़ संघ शिरोमणि प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज श्रीमद् आचारांग सूत्र का एक वाक्य है- 'धम्म विउ उज्जु' अर्थात् जो सद्धर्म का विज्ञाता है, वह ऋजु स्वभावी होता है । ऋजुता अर्थात् कापट्य ग्रन्थि का भेदन हो जाना जीवन की एक महत्त्वपूर्ण सफलता मानी गयी है । संयमी जीवन का यह आधारभूत सत्य आज हमारे साधु समाज में किस तरह जी रहा है, यह सब यहाँ स्पष्ट करना अभी आवश्यक नहीं है । ग्रन्थि रहित सरल जीवन के आज दर्शन कठिन हैं किन्तु मालवरत्न, परम श्रद्धेय श्री कस्तूरचन्द जी महाराज का भव्य - व्यक्तित्व जब तक उपस्थित है, भद्रता की वास्तविकता का संदर्शन मिलता रहेगा । श्री कस्तूर चन्द जी महाराज का संयमी जीवन सत्तर वर्ष की यात्रा कर आगे बढ़ रहा है । जिस वर्ष मेरा जन्म हुआ उस वर्ष आप संयम के पथ पर आये । बीस वर्ष बाद मैं भी उस पथ का राही बना तब से अब तक यह सह-यात्रा चल रही है । शारीरिक ट से दूरस्थ होकर भी एक ही संघ के अंग होने से आत्मिक सम्पर्क तो सदा ही रहा, आज भी है । इस आत्मिक सम्पर्क के सन्दर्भ में मेरे अनुभव ने आपको एक भद्र मुनिराज के रूप में स्वीकार किया और मैं यह समझता हूँ कि मेरी यह स्वीकृति कतई अनुचित नहीं है । सुदीर्घ संयमी जीवन की यात्रा के अनेक घटनाक्रम समाज के सामने हैं किन्तु आपको कहीं भी उलझते नहीं पाया । सरलता की साक्षात् मूर्ति श्री कस्तूरचन्दजी महाराज के पास शुद्ध अनुभवों का एक विशुद्ध खजाना है । विशुद्ध शब्द का प्रयोग मैं इसलिए कर रहा हूँ कि वहाँ मिलावट की कोई संभावना नहीं है । महिमा मण्डित श्री नन्दलालजी महाराज, पूज्य श्री खूबचन्दजी महाराज, शास्त्रज्ञ श्री देवीलाल जी महाराज, पूज्य श्री मन्नालल जी महाराज, पंडित कवि श्री हीरालाल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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