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________________ ३४ 3 मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ प्रश्न, तर्क की कसौटी पर आगम वाचनार्थ कुछ मुनिवृन्द गुरुदेव के कल्याणकारी सान्निध्य में उपस्थित होकर बोले - "हम स्थानांग सूत्र की प्रारम्भिक वाचना एवं धारणा गुरु भगवंत के मुखारविन्द से करना चाहते हैं । अतएव हम आपके अनुग्रह की प्रतीक्षा में हैं ।' प्रत्युत्तर में महाराज श्री ने फरमाया कि - "संतो ! अभी अहमदाबाद से दो प्रश्न आये हैं । इन दोनों प्रश्नों के उत्तर लिखवाकर फिर मैं आप लोगों को स्थानांग सूत्र के विषय में कुछ समझाऊँगा । वहाँ तक समय की प्रतीक्षा करें।" मुनियों की जिज्ञासा आगे बढ़ी। विनयपूर्वक पूछ बैठे - “भगवंत ! क्या प्रश्न आये हैं ? यदि हमारे जानने योग्य हों तो हमें भी बताने का अनुग्रह करें। ताकि हमारे ज्ञान अभिवृद्धि में सहायक बन सकें । संयती राजा और जयघोष - विजयघोष मुनि किस तीर्थंकर के शासन में हुए हैं ?" प्रश्न दोहराते हुए गुरुदेव ने कहा । “भगवन्त ने क्या समाधान लिखाया ?" मुनियों ने पूछा । समाधानोद्घाटन करते हुए गुरु भगवंत ने कहा- "संयती राजा और जयघोषविजयघोष ये सभी भगवान महावीर के शासन में हुए हैं । विषय को स्पष्ट करते हुए महाराज श्री ने आगे कहा कि भगवान ऋषभदेव और भगवान महावीर के समय ही पाँच महाव्रत थे । भगवान ऋषभदेव का समय काफी लम्बा हो चुका है । इसलिए राजा संयत और जयघोष - विजयघोष भगवान महावीर के शासन में हुए हैं। उत्तराध्ययन सूत्र के २५ वें अध्ययन की २३ - २४-२५-२६ गाथाओं में अहिंसा - सत्य अचौर्यशील एवं अपरिग्रह व्रती का अलग-अलग वर्णन किया गया है । अठारहवें अध्ययन में १२ चक्रवर्तियों के नामोल्लेख । उनसे पता चलता है कि संयति राजा काफी बाद में हुआ है । वह समय महावीर का ही ठीक लगता है क्योंकि भगवान महावीर के समय में मुनि के लिए पाँच महाव्रत थे ।” वन्दन कर मुनिवृन्द आगम-वाचना में दत्त-चित्त हो गये । 47 चर्चा और समाधान सं० २०३१ की घटना है । गुरु भगवंत के सुखद सान्निध्य में कुछ मुनिवृन्द शास्त्रीय-अध्ययन में तल्लीन थे । रुक-रुक कर बीच में समाधान की खोज में मुनियों की ओर से प्रश्न चालू थे । समाधान के अन्तर्गत महाराज श्री ने एक आगम पाठ का रहस्योद्घाटन करते हुए फरमाया कि - लगभग सात-आठ शताब्दी पूर्व आचार्यों द्वारा समवायांग सूत्र के मूल पाठ में 'सय' शब्द अधिक लिख गया है । वस्तुत: आज दिन तक उस शब्द का न मंदिरमार्गी टीकाकार आचार्यों ने और न स्थानकवासी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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