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________________ निक्षेपवाद : एक अन्वीक्षण ३३१ कहना अथवा पानी भरने के लिये घड़ा मँगवाया है, पर उसमें पानी नहीं भरा गया है तथापि उसे पानी का घड़ा है-इस प्रकार कहना, यह द्रव्य निक्षेप है। नाम और स्थापना इन दोनों निक्षेपों में शब्द के उत्पत्तिलभ्य अर्थ की अपेक्षा की गई है। किन्तु द्रव्य निक्षेप का विषय द्रव्य ही होता है। भूत एवं भावी पर्यायों में जो द्रव्य है उसकी विवक्षा से जो व्यवहार किया जा रहा है जैसे कोई जीव इन्द्र होकर मनुष्य योनि में उत्पन्न हुआ है या मनुष्य योनि का जीव इन्द्र होगा तब वर्तमान मनुष्य पर्याय को इन्द्र कहना-यह द्रव्य निक्षेप है। व्यवहार में जो हम कार्य में कारण का उपचार करके जो औपचारिक प्रयोग करते हैं अथवा कारण में कार्य का उपचार करके जो औपचारिक प्रयोग किया करते हैं वे सभी द्रव्य निक्षेप की परिधि में आ जाते हैं। भाव निक्षेप किसी पदार्थ की वर्तमान पर्याय के अनुसार ही, उसको उसी रूप में कहना भाव-निक्षेप है। जिस शब्द का प्रयोग किया जाय उस शब्द का उत्पत्तिलभ्य अर्थ वस्तु में स्पष्टतया परिलक्षित होना चाहिए। परमैश्वर्य सम्पन्न जीव को इन्द्र कहना-कोयला होने पर कोयला, राख होने पर राख, पूजा करते समय पर पुजारी कहना-उसे भावनिक्षेप कहते हैं। भावनिक्षप की अनेक परिभाषाएँ हैं। वर्तमान पर्याय उस विशिष्ट क्रिया से उपलक्षित हो रही है तो भाव निक्षेप है। इन्द्र शब्द का ज्ञाता वर्तमान काल में उसके अर्थ में उपयुक्त हुआ है तो शुद्ध नय के दृष्टिकोण से वही भाव इन्द्र है अर्थात् यथार्थ इन्द्र है ।२।। नाम स्थापना आदि के भेद इस प्रकार हैंनाम स्थापना द्रव्य भाव तदाकार अतदाकार आगम नोआगम आगम नोआगम ज्ञ शरीर, भव्य शरीर, तद्व्यतिरिक्त | लौकिक कुप्रावाचनिक लोकोत्तर लौकिक, कुप्रावाचनिक लोकोत्तर संक्षेप में कहना चाहिए कि निक्षेप में शब्द और वाच्य की मधुर संगति है। अर्थ सूचक शब्द के पीछे अर्थ की स्थिति को द्योतित करने वाला जो विशेषण प्रयुक्त होता है यही निक्षेप पद्धति की उपयोगिता है। चाहे विशेषण का प्रयोग न भी किया जाय तथापि वह विशेषण अन्तहित अवश्य रहता है। १ वर्तमानपर्यायोपलक्षितं द्रव्यं भावः । २ जो पुण जहत्थजुत्तो सुद्धनयाणं तु एस माविंदो । इंदस्स वि अहिगारं वियाणमाणोतवजुत्तो॥ Jain Education International For Private &Personal Use Only -बृहत्कल्पभाष्य..jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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