SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ करुणा के अमर देवता ११ धर्म-स्थान की ओर देखते ही नहीं थे, कभी सामायिक की आराधना करते ही न थे, उन्हें बलवती प्रेरणा प्रदान की। सामायिक के सही स्वरूप को विभिन्न तरीकों से समझाकर मंगलमय धर्म मार्ग की ओर प्रवृत्त किये। आगम पठन-पाठन एवं समझाने के सरल-सुबोध ढंग को प्रत्यक्ष देखकर वहाँ विराजित वयोवृद्धा महासति श्री सूरज कुंवर जी महाराज एवं गुलाब कुंवर जी महाराज आदि सतियां काफी प्रभावित हुईं। फलस्वरूप हस्तलिखित १८ शास्त्र हमारे चरित्रनायक को समर्पित कर बोलीं- “पूज्यवर ! आगमों के प्रति आपकी रुचि देखकर हम आपको अमूल्य आगम रत्न भेंट करते हैं। आप ज्ञान भण्डार की सुरक्षा करें।" इस प्रकार यह चातुर्मास धार्मिक अनुष्ठानों द्वारा बड़ा ही शानदार ढंग से सम्पन्न हुआ। साधना के प्रारम्भिक जीवन से चरित्रनायक श्री जी की सुनहरी डायरी गुरु-भक्ति श्रद्धा से ओत-प्रोत रही है। यही कारण था कि-आप भले कहीं पर भी वर्षावास करते पर चातुर्मास पूर्ण होने के पश्चात् अपने आराध्य गुरुदेव के पावन सान्निध्य में दर्शनार्थ पहुँच ही जाते थे। इस परम्परा का बहुत ही पवित्र-भावना से पालन कर गुरु वात्सल्य के प्रिय पात्र बने एवं शास्त्रीय निम्नवाणी आपने साकार बताई आयारमट्ठा विणयं पउंजे सुस्सूसमाणो परिगिज्झबक्कं । जहोवइट्ठ अभिकंखमाणो, गुरुं तु णासाययई स पुज्जो । -दश० अ० ६/उ० ३ जो साधक आचार प्राप्ति के लिए गुरुदेव की विनय-भक्ति एवं आज्ञा की परिपालना करता हुआ विचरण करता है वह पूज्य होता है । __ अजमेर चातुर्मास कोटा एवं रामपुरा के भव्य चातुर्मास पूर्ण कर चरित्रनायक जी अपने गुरुदेव के साथ अजमेर पधारे । अजमेर राजस्थान का एक प्रमुख नगर है। जैन समाज का जहाँ काफी प्रभुत्व रहा है। जैनधर्म के प्रति जिनकी स्तुत्य श्रद्धा-भक्ति रही है। अजमेर संघ के अत्याग्रह पर भावी आचार्य प्रवर श्री खूबचन्द जी महाराज एवं श्रद्धेय गुरुदेव श्री कस्तूरचन्द जी महाराज का सं० १९७२ का चातुर्मास वहाँ हुआ। व्याख्यान में जनता की सराहनीय उपस्थिति रहती एवं दोपहर में चरित्रनायक श्री जी स्वयं भगवती सूत्र का प्रवचन करते थे। कई मुमुक्षु जिनवाणी से लाभान्वित हुए। कार्तिक मास में मन्दसौर संघ की ओर से सूचना मिली कि-"गुरुजी जवाहर लाल जी महाराज का स्वास्थ्य उत्तरोत्तर गिरता जा रहा है। अतिशीघ्र आजीवन अनशन (संथारा) करने वाले हैं।" बस अजमेर से श्रद्धेय श्री खूबचन्द जी महाराज का, पालनपुर से दिवाकर जी महाराज का, सीतामऊ से गुरुदेव श्री नन्दलाल जी महाराज का एवं रतलाम से पं० रत्न श्री देवीलाल जी महाराज का विहार मन्दसौर की ओर हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy