SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १० मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ पं० महान् कवि श्री माधो मुनि जी महाराज, पं० श्री शिवदयाल जी महाराज एवं प्रख्याति प्राप्त विदुषी महासति श्री पारवती जी महाराज आदि अनेक त्यागी आत्माओं के पावन-दर्शन, मिलन, प्रवचन श्रवण एवं सस्नेह ज्ञान-दान का आदान-प्रदान हुआ। जहाँ-जहाँ आपके चरण-कमल पहुँचे वहाँ चतुर्विध संघ में स्नेह संगठन की अच्छी प्रतिष्ठा हुई। सत्प्रेरक मुनियों के पावन सान्निध्य में जावरा निवासी रतनबाई कटारिया की भगवती दीक्षा प्रख्याति प्राप्त विदुषी महासति श्री चन्दाजी के नेत्राय में हुई । देश भक्त लाला लाजपतराय ने भी मुनियों के पवित्र दर्शन किये एवं पारस्परिक वार्तालाप के अन्तर्गत मुनियों की ओर से उन्हें समयोचित मार्ग-दर्शन भी मिला। हम पहले ही बता चुके हैं कि-चरित्रनायक श्री जी की मनोवृत्ति सदैव गुणग्राही रही है। भले बालक हो कि वृद्ध, जैन हो जैनेत्तर, साधु हों किंवा श्रावक, जहाँ भी अच्छाई दृष्टिगोचर हुई कि-सहर्ष आप उसे स्वीकार करने में हिचकिचाते नहीं हैं। उनका जीवन प्रारम्भ से ही मधुकर के समान रहा है जो काँटों को छोड़कर मधुरस पीता रहता है, उनकी वृत्तियां ईख के समान हैं जो कड़वी खाद से भी मधुरता खींचकर जीवन को माधुर्य से परिपूर्ण करती रही है । पंजाब की विहार यात्रा के दौरान पं० रत्न श्री शिवदयाल जी महाराज साहब से व्यवहार सूत्र का अध्ययन कर आपने ज्ञान-गरिमा की अभिवृद्धि की तथा लोक संघर्ष तो अनेक प्रकार के नये अनुभव भी अजित किये। इस प्रकार पंजाब प्रान्त में धर्मोद्योत करते हुए पुन: जयपुर शहर में मुनियों का पदार्पण हुआ। उन दिनों वहाँ आचार्य श्री विनयचन्द जी महाराज, श्री शोभालाल जी महाराज एवं वयोवृद्ध महासति श्री जड़ाव कुंवर जी महाराज विराजमान थे। पारस्परिक मुनि वृन्द में बहुत ही मधुर व्यवहार-शास्त्रीय अध्ययन-अध्यापन-ज्ञान-दान का खुलकर आदानप्रदान भी हुआ। कोटा चातुर्मास अब आपकी प्रवचन शैली काफी प्रभावशील बन चुकी थी। प्रत्येक प्रवचन में आगमिक अनुभव की गहरी झलकियाँ आने लगीं। जहाँ अनभिज्ञ मानव-आगम वाणी को नीरस मानकर आँख चुराता है, दूर भागने की कोशिश करता है, वहाँ आपके आगमिक व्याख्यान इतने रुचिपूर्ण ढंग से होने लगे कि-घंटों तक श्रोता सुनते हुए अघाते नहीं हैं । शास्त्रीय प्रवचन (वांचना) इतनी मधुर एवं सुरुचिपूर्ण कि-श्रोता झूम-झूम कर आनन्द विभोर होकर बोल उठते कि-ऐसा वैज्ञानिक विवेचन हमने अपने कानों से पहली बार ही सुना है । सुदृढ़ योग्यता प्राप्त करने के लिए आपको काफी वर्षों तक महामना कई मुनियों की पर्युपासना में तन्मय होना पड़ा है। सं० १९७० का प्रथम स्वतंत्र वर्षावास (चातुर्मास) आपका कोटा हुआ । इस वर्षावास में पूरा उत्तरदायित्व आप पर ही था। जनता में दान-शील-तप-भाव की आशातीत प्रभावना हुई। कई नर-नारी जो कभी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy