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________________ ३०० मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ अहिंसा का अमृत बाँटते रहे हैं। उनके अन्तर में प्रेम-पीयूष उड़ेलते रहे हैं। अगणित व्यक्तियों को हिंसा-जनित मांस-मदिरा के व्यसनों का परित्याग करवाकर उन्हें धर्माभिमुख किया है। जैसे शंकराचार्य ने भारत के चारों कोनों पर मठ स्थापित करके ब्रह्माद्वत का विजय स्तम्भ रोपा है, वैसे ही महावीर के अनुयायी अनगार निर्ग्रन्थों ने भारत जैसे विशाल देश के चारों कोनों में अहिंसावत की भावना के विजय स्तम्भ रोप दिये हैं, ऐसा कहा जाय तो अत्युक्ति नहीं होगी। लोकमान्य तिलक ने इस बात को यों कहा था कि-गुजरात की अहिंसा-भावना जैनों की ही देन है, पर इतिहास हमें कहता है कि अहिंसामूलक धर्म वृत्ति में निर्ग्रन्थ-सम्प्रदाय का थोड़ा-बहुत प्रभाव अवश्य काम कर रहा है। उन सम्प्रदायों के प्रत्येक जीवन व्यवहार की छानबीन करने से कोई भी विचारक यह सरलता से जान सकता है कि इसमें निर्ग्रन्थों की अहिंसा भाव का पुट अवश्य है। . वस्तुत: निर्ग्रन्थ परम्परा के श्रमणों का अहिंसा के उत्कर्ष में विशेष अवदान रहा है । श्री हीरविजय सूरि ने भारत के मुगल सम्राट अकबर को अपने प्रभाव में खींच कर अहिंसा का दिव्य सन्देश दिया और सम्राट से कुछ प्रमुख तिथियों पर "अमारि-घोषणा" जारी करने का वचन भी प्राप्त किया। कई मांसाहारी जातियों को अहिंसा धर्म में दीक्षित किया। भारत में बहुत-सी मांसाहारी जातियाँ आज अहिंसक जीवन बिता रही हैं, इसका श्रेय अधिकांश में निर्ग्रन्थ सम्प्रदाय के श्रमणों को ही प्राप्त है। मध्यकाल में कुछ ऐसे सन्त महात्माओं की अवतरणा भी हुई है कि जिनका उपदेश, वाणी व रचना अहिंसा-दया का अमृत कोष कहा जा सकता है। भारत की वायु में अहिंसा के जो परमाणु देखे जाते हैं, वे सब इन्हीं सन्त-महात्माओं की देन हैं। भारत उनके उपकारों से उपकृत है। महात्मा गांधी ने भारत में नव जीवन का प्राण स्पन्दित करने के लिए अहिंसा का ही आश्रय ग्रहण किया था। मैं समझता हूँ गांधीजी की सफलता का रहस्य भी अहिंसा ही है, और अहिंसा के सहारे से ही वे एक बहुत बड़े राष्ट्र को सर्वतन्त्र-स्वतन्त्र बना सके। इसमें कोई शक नहीं कि गांधीजी ने अहिंसा का राजनीति में प्रयोग करके भारत के अहिंसक वातावरण को और अधिक सजीव एवं व्यावहारिक बनाया है। यही नहीं, कहना चाहिए कि गांधीजी ने अहिंसा के इतिहास में एक नया पृष्ठ जोड़ा है। उन्होंने राजनीति के क्षेत्र में अहिंसा भगवती की प्रतिष्ठा करके उसके व्यवहार क्षेत्र में भी उत्साहजनक अभिवृद्धि की है। इस प्रकार अहिंसा के इतिहास की सुनहरी कड़ियां भगवान ऋषभदेव से लेकर वर्तमान गांधी युग तक सतत् जुड़ती रही हैं। १ दर्शन और चिन्तन (हिन्दी) खण्ड २, पृ० सं० २७६ पं० सुखलालजी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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