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________________ मालव-संस्कृति को जैनधर्म को देन २३३ से नीचे की ओर का ढालू क्षेत्र उस सीमा तक चला गया है, जहां समतल भूमि आरम्भ होती है। पूर्व से पश्चिम तक फैली विन्ध्यमेखलाओं का विस्तार, जो दक्षिणापथ से इसे विलग करता है-मालव-जनपद की भौगोलिक सीमा रेखा का अंकन करता है। इसीलिये इसे मालवा का पठार भी कहा गया है । मालवा और उज्जैन के सम्बन्ध में पाश्चात्य विद्वानों ने अनेकों संदर्भो में कई मत व्यक्त किये हैं।' प्राचीन मुद्राओं, शिलालेखों एवं पुरातत्त्वीय सामग्री ने तथा संस्कृत, पाली, प्राकृत और अपभ्रंश साहित्य ने भी मालव महिमा और उज्जयिनी के पुरातन इतिहास पर नये सिरे से प्रकाश डाला है। पौराणिक गाथाओं तथा बौद्ध व जैन कथाओं में इसके रोचक वर्णन भरे पड़े हैं। मालवा के प्रथम सम्राट भरत थे-शैव और वैष्णवों के समान ही मालवा की चिकनी मिट्टी में जैनधर्म की जड़ें भी गहराई तक पहुँची हुई हैं। इसका उल्लेख जैनधर्मग्रन्थों और उनकी परम्परागत मान्यताओं में उपलब्ध होता है । मालवा की प्राचीन नगरी उज्जयिनी महर्षि सान्दीपनि का विद्यापीठ रहा है। इस विद्याकेन्द्र की प्राचीनता का बोध कराने वाली यह मान्यता जैनियों में विद्यमान है कि 'कल्प काल में सभ्य और कर्मठ जीवन व्यतीत करने की शिक्षा सर्वप्रथम अन्तिम मनु नाभिराय के पुत्र प्रथम जैन तीर्थंकर ऋषभदेव ने दी थी। इसी शिक्षा का परिणाम था कि देश में नगरादि की स्थापना प्रारम्भ हुई और ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम से इस देश का नाम भारतवर्ष कहा जाने लगा। ऋषभदेव की आज्ञानुसार इन्द्र ने भारतवर्ष में बावन देशों की रचना की थी। अवन्ती देश का नाम सुकोशल था और जिसकी राजधानी अवन्तिका थी। कालान्तर में यही उज्जयिनी के नाम से प्रख्यात हुई। ऋषभदेव द्वारा इन्द्र से बावन देशों की रचना करवाने के पश्चात् अनेकों क्षत्रिय-पुत्र इनके शासक बनाये गये । परन्तु जब राजकुमार भरत ने सम्पूर्ण भारतवर्ष को एक साम्राज्य के रूप में स्थापित किया, तब सर्वप्रथम उन्होंने जो छह खण्ड पृथ्वी जीती थी, उसमें अवन्ती देश भी सम्मिलित था। इसीलिये अवन्ती के प्रथम सम्राट चक्रवर्ती भरत ही माने गये। १ इम्पीरियल गेजेटियर 'इंडिया' (३४३८) २ सर जॉन मालकम का 'सेन्ट्रल इण्डिया', पार्टीजर का 'एन्शेन्ट इण्डिया', मार्शल की 'गाइड सांची', टॉलमी का 'एन्शेन्ट इण्डिया', जूलियन का 'हुएत्सांग', केम्बेव फ्लीट का 'एपिग्राफिका इण्डिका', टर्नर का 'महावंश', फाहियान का 'भारत वर्णन', 'गेजेटियर' तथा 'इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटानिका'-आदि में अशोक, गुप्तकाल, बौद्ध और जैन धर्म की पृष्ठभूमि, मालवा का रमणीय और समृद्ध जन-जीवन तथा उज्जयिनी की सुन्दरता एवं महत्ता पर विभिन्न दृष्टियों से विचार किया गया है । ३ संक्षिप्त जैन इतिहास (सूरत), प्रथम भाग । ४ महापुराण (अन्तिम) १५६।१५ ५ जिनसेनाचार्य कृत 'महापुराण' (इन्दौर संस्करण) ६ महापुराण, पृ० १०७६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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