SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 265
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मालव-संस्कृति को जैनधर्म की देन डॉ० बसन्तीलाल बंग, एम. ए., पी-एच. डी. मालव भूमि की महत्ता, उसके समृद्ध जन-जीवन, प्राकृतिक रमणीयता, उर्वर-धरा और सौन्दर्य पूर्ण-स्थलों के कारण तो है ही, साथ ही, उसमें बसी उज्जयिनी (उज्जैन), माहिष्मति (महेश्वर), दशपुर (मन्दसौर), धारानगरी (धार), विदिशा (नाम परिवर्तन के पूर्व भेलसा), गन्धर्वपुरी (गन्धावल) ओंकारेश्वर (मान्धाता) और सांची जैसी पुरातन, ऐतिहासिक और धार्मिक नगरियों ने भी उस महत्ता को महिमामय बना दिया है। इनमें उज्जयिनी नगरी अति प्राचीन है। आज भी यह कहना असम्भव है कि उज्जैन को सर्वप्रथम किसने बसाया था। वेदों, संहिताओं, ब्राह्मणग्रन्थों, उपनिषदों और पुराणों में अनेकों स्थलों पर इसकी महिमा के गान गाये गये हैं । जैन और बौद्ध साहित्य में भी इसका गौरव यथावत् स्थापित है । भारत के मानवाकार मानचित्र में मालवा उसका मध्यस्थान और उज्जैन को नाभिदेश की संज्ञा दी गई है । इसीलिये आध्यात्मिकों ने इसे 'मणिपूर चक्र' के नाम से भी सम्बोधित किया है। उज्जयिनी प्रत्येक कल्प में भिन्न-भिन्न नामों से जानी जाती रही ।' इसीलिये इसका एक नाम प्रतिकल्पा भी रहा। इसके अतिरिक्त भी इसे प्राचीन साहित्य मनीषियों ने कई नाम दिये, जो इतिहास की करवटों के साथ परिवर्तित होते रहे। इतिहास और अन्य प्रमाणों के आधार पर 'मालव-जनपद' प्राचीन 'अवन्ती देश' का समृद्ध भाग रहा है। अवन्तिका इस जनपद की प्रमुख नगरी थी और 'अवन्तिजा' इसकी प्रमुख भाषा। शासन सत्ताओं के परिवर्तन के साथ मालव जनपद की सीमारेखाएँ भी बदलती रही हैं। परन्तु भौगोलिक दृष्टि से इसकी सीमा निर्धारित करना सदैव ही सम्भव रहा है। मालवा और राजपूताना के मध्य अरावली की पर्वत-मालाएँ और घने जंगलों से आच्छादित भू-क्षेत्र तथा अरावली के वायव्यकोण में सिन्ध और अन्य नदियों से घिरा हुआ उपजाऊ भाग तथा दक्षिण में लाल पत्थरों की खदानों १ उज्जयिनी के एक से छः कल्पों में क्रमशः स्वर्णगंगा, कुशस्थली, अवन्तिका, अमरावती, चूड़ामणि, पद्मावती नाम रहे हैं । २ कनकशृङ्गा, कुमुदवती, विशाला, प्रतिकल्पा, भोगावती, हिरण्यावती. आदि नामों के उल्लेख भी मिलते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy