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________________ प्राचीन भारतीय मूर्तिकला को मालवा की देन २२६ नई दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में प्रदर्शित दशभुजा दुर्गा दभोई दुर्ग से प्राप्त है। वह वाग्देवी की प्रतिमा के ही समान सुन्दर है । धार से उपलब्ध श्वेत संगमरमर की मनोरम पार्वती-प्रतिमा भी अनोखी है। यह उदयादित्य के समय निर्मित हई थी। सुहानिया, ग्यारसपुर, उदयपुर इत्यादि में परमारयुगीन गणेश प्रतिमाएँ हैं। बडोह में नत्यगणेश की प्रतिमा है, उज्जैन के समान । भोजपुर में अनेक प्रतिमाएं उपलब्ध हैं। यहाँ का शिवलिंग साढ़े सात फीट ऊँचा है। साथ ही यहाँ कुबेर की भी प्रतिमा प्राप्त होती है । घुसई से हरिहर की प्रतिमा प्राप्त होती है। पाली से उपलब्ध एवं झालावाड़ में प्रदर्शित अर्धनारीश्वर की प्रतिमा भी सुन्दर है । ग्यारसपुर, पछवाली इत्यादि स्थानों से त्रिमूर्ति की आकर्षक प्रतिमाएँ प्राप्त होती हैं। झालरापाटन में एक अष्टभुजी प्रतिमा है, जिसमें ब्रह्मा, विष्णु, महेश तथा सूर्य-चार देवता एक शरीर-रूप में अंकित हैं । कागपुर से आठवीं सदी की मयूरासीन कार्तिकेय प्रतिमा, उज्जैन से कपिल मुनि की प्रतिमा, उज्जैन से ही नागयुग्म की प्रतिमा उपलब्ध हैं। मोड़ी से कल्पवृक्ष तथा कामधेनु का अंकन प्राप्त है । दूदाखेड़ी तथा झारड़ा से भी कामधेनु की लघु प्रतिमा प्राप्त होती है। परमार युग में मनोहर जैन पाषाण प्रतिमाएं निर्मित हुईं। उनके शरीर सन्तुलित तथा मखमद्रा आकर्षक हैं। ममोन से तीर्थंकर की ८ फीट १० इंच ऊँची प्रतिमा प्राप्त होती है। परिचर के रूप में दो यक्ष व्यक्त हए हैं तथा लघुरूप में कई तीर्थंकर प्रदर्शित हैं। मस्तक के पीछे प्रभामण्डल है। कागपुर से चौमुख की अनोखी प्रतिमा प्राप्त हुई है। भोजपुर के जैन मंदिर में २० फीट ऊंची आदिनाथ की प्रतिमा है। साथ ही इन्द्र सहित पार्श्वनाथ भी प्रदर्शित हैं। गंधावल में अधिकांश जैन प्रतिमाएँ प्राप्त होती हैं जिनमें से कुछ १० फीट तक ऊँची हैं। ऊन के जैन मंदिरों से भी १२-१३वीं सदी की प्रतिमाएं प्राप्त होती हैं। चैनपुर में १३ फीट ३ इंच ऊँची तीर्थंकर प्रतिमा प्राप्त होती है । चन्देरी के जैन मन्दिर में पार्श्वनाथ की प्रतिमा सं० १२५२ की तथा तीर्थंकर की अन्य प्रतिमा संवत् १३१६ की है । वहीं १२६१ संवत् की पद्मावती देवी की प्रतिमा भी है। झारड़ा में जैन देवियों की दो प्रतिमाएं एक वृक्ष के नीचे चबूतरे पर सिंहासनासीन हैं। उनके आठ भुजाएँ हैं । संवत् १२२६ में निर्मित प्रथम प्रतिमा अधिक पूर्ण है। इसके हाथ में विटप, धनुष, अंकुश, पाश, अक्षसूत्र इत्यादि हैं। तीन हाथ खण्डित हैं। एक वृषभ नीचे खड़ा है तथा अनुचर भी प्रदर्शित हैं। द्वितीय प्रतिमा १२२६ संवत् की है। इसका सिर नहीं है, नष्ट हो गया है। इन दोनों प्रतिमाओं के पयोधर पीन होने से ग्रामवासी इन्हें 'बोवावारी माता' कहते हैं। ऐसी प्रतिमाओं को भोज 'सुस्तनी सुस्तना प्रतिमा' कहता है. (शृगार प्रकाश, पृ० २६५)। उज्जैन के दिगम्बर जैन संग्रहालय में कुल ५१६ प्रतिमाएं संग्रहीत हैं जिनमें से ५६ लेखयुक्त हैं। आदिनाथ या ऋषभनाथ की ३७ प्रतिमाएँ प्राप्त होती हैं । अजितनाथ, संभवनाथ, अभिनन्दननाथ, सुमतिनाथ, पद्मप्रभ, सुविधिनाथ, शान्तिनाथ, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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