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________________ मालवा : एक भौगोलिक परिवेश २१७ रेल मार्ग आपस में कटते हैं । सागर, बीना, गुना भी इस प्रदेश का बड़ा रेलमार्ग है। दिल्ली-मथुरा, बड़ौदा-बम्बई प्रमुख रेल लाइन भी इस प्रदेश से गुजरती है। मालवा प्रदेश के प्रमुख नगरों से होकर न केवल बड़ी रेल लाइन बल्कि छोटी लाइनें भी अनेक शहरों को आपस में समीप लाती हैं। इसके प्रतिकूल कुछ जिलों जैसे-झाबुआ तथा खरगाँव में रेल सेवाएं उपलब्ध भी नहीं है । अनेक जिलों में रेल सेवायें नाम मात्र की हैं । धार-राजगढ़, बांसवाड़ा-प्रतापगढ़, अचनेरा-झालावाड़ ऐसे ही जिले हैं। इस प्रदेश में प्रत्येक १०० वर्ग कि० मी० पर केवल १.४२ कि० मी० रेलमार्ग का औसत आता है। यहाँ सड़क सेवायें अधिक उपलब्ध हैं। इस प्रदेश से होकर राष्ट्रीय महत्त्व की सड़कें नं० ३ (बम्बई-दिल्ली) नं० २६ (सागर-खरवन दोन) तथा नं० १२ (सामपुरभोपाल तथा बरेली) गुजरती है। मालवा में सड़कों का योग १३०० कि० मी० है । उपर्युक्त राष्ट्रीय सड़कों के अतिरिक्त राज्य स्तर की भी अनेक सड़कें इस प्रदेश की परिवहन सेवा में लगी हैं। इनमें से महू-नीमच (२६० कि० मी०) इन्दौर-उज्जैनझालावाड़ (२३६ कि० मी०) तथा देवास-भोपाल-सागर (२३५ कि० मी०) सबसे अधिक उल्लेखनीय हैं। मालवा प्रदेश के परिवहन मार्गों में वितरण पर स्थल की बनावट का सुस्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है। यहाँ की अधिकांश सड़कें सतपुड़ा पहाड़ियों तथा नर्मदा घाटी के समानान्तर बनाई गई हैं । नर्मदा के उत्तर में अधिकांश सड़कें उपगमन मार्ग हैं, परन्तु झाबुआ, धार तथा पश्चिमी नीमच में सड़क सेवाएँ अच्छी हैं । नर्मदा घाटी में सड़कों का घनत्व कम है । हर्दा, हरसूद, खण्डवा, पश्चिमी बाँसवाड़ा, बड़वानी, उदयपुरा, रेहली, बेतूल, पश्चिमी गुना आदि क्षेत्रों में बहुत कम पहुँच है। मालवा में कुल मिलाकर १०५२६ कि० मी० पक्की तथा ५५२८ कि० मी० कच्ची सड़कें हैं। इनका घनत्व क्रमशः ७ कि० मी० तथा ५ कि. मी० प्रति १०० वर्ग कि. मी. है। मालवा प्रदेश पश्चिम में बम्बई तथा उत्तर में दिल्ली से जुड़ा हुआ है। इन्दौर तथा भोपाल वायुमार्गों द्वारा बम्बई तथा दिल्ली और देश के अन्य हवाई मार्ग से जुड़े समस्याएँ एवं भविष्य मालवा प्रदेश में कतिपय बहुत महत्वपूर्ण समस्यायें हैं। मिट्टी की उर्वरा शक्ति समाप्त होने ऊसर निर्माण, खर-पतवार वृद्धि, जल जमाव, वृक्षों के कटाव, अनियंत्रित चरागाही एवं घासों को जलाने आदि से उत्पन्न भूमि अपरदन की समस्या सबसे बड़ी है। भूमि प्रबन्ध एवं परिस्थितिकी सन्तुलन (Ecological Balance) फिर से बनाना आज की सबसे बड़ी योजना है। अनावृष्टि एवं फसल विनाश, उत्पादन वृद्धि, गहरी खेती, आये दिन के अकाल आदि जैसी समस्याओं पर विजय पाने के लिए सिंचाई परियोजनाओं की समुचित व्यवस्था इस प्रदेश की मांग है। नदियों की बाढ़ नियंत्रण एवं अतिरिक्त जल का उपयोग, जल-विद्युत उत्पादन एवं सिंचाई कार्यों का करना यहाँ की जनोपयोगी योजनायें होंगी। वनों एवं कृषि पर आधारित उद्योगों के विकासार्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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