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________________ १६८ Jain Education International मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ श्रमण संघ के प्राण ! क्षमा के कांतिलाल बाफना हस्तीमल बोहरा पुण्योदय से पाये गुरुवर, महा गुणों की खान । हर्षे - हर्षे मेरे प्राण ॥ सागर, ज्ञान के आगर, चमके भाग्यवान । हर्षे - हर्षे मेरे प्राण ॥टेर ॥ 'रतिचन्द जी' पिता तुम्हारे, माता 'फूली' के हैं प्यारे । देश मालवा के उजियारे, गुण गाते हैं मुनिगण सारे ॥ उसी धर्मभूमि की गुरु ने आज बढ़ाई शान ॥१॥ जग की माया नश्वर जानी, लघु वय में संयम की ठानी । गुरु मिले थे ज्ञानी - ध्यानी, अमृतमय थी जिनकी वाणी ॥ 'खूब गुरु' को पाके आपका जीवन हुआ महान् ||२|| गंभीर गुणों की खान तुम हो, भवियों के निधान तुम हो । पतितों के पतवार तुम हो, श्रमण संघ के प्राण तुम हो ॥ करते स्व-पर का देखो, जीवन का कल्याण ||३|| जन-जन को तुम जगा रहे हो, जिन शासन को दिपा रहे हो । पाठ प्रेम का पढ़ा रहे हो, सन्देश धर्म का सुना रहे हो । 'कांति-हस्ती' शरण ले रहे, आज चरण की आन ||४|| For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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