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________________ १६६ Jain Education International मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ चरण-वन्दना वाले, जिनेन्द्र मुनि 'काव्यतीर्थ' हीरे तुल्य चमकने मुनिवर हीरालाल महान् । आगम तत्त्व विशारद जिनका, प्रवर्तकों में ऊँचा स्थान ॥ छोटे बड़े सभी सन्तों का, आप सदा करते सम्मान | इसीलिए है सबके मन में, महामुनि का ऊंचा स्थान ॥ भूले-भटके पथिकों के हित, मुनि होते हैं एक प्रकाश । अमरों और नरों का होता, सत्य साधनों पर विश्वास || सरल सुगम्य विवेचन द्वारा, देते जनता को प्रतिबोध । श्रोताओं को आया करता, एक नया आमोद-प्रमोद || आराधना अमर करते हैं, सत्य साधना के हामी । विराधना के प्रबल विरोधी, वीर मार्ग के अनुगामी ॥ देश समाज राष्ट्र के हित में, लगा दिया जीवन सारा । एक त्याग के सम्मुख झुकता, त्रिभुवन का तन-मन प्यारा ॥ श्रद्धांजलियाँ स्वीकृत करके, हमको उपकृत आप करें। रही खामियाँ त्रुटियाँ जो भी, उदारता से माफ करें ॥ 'मुनि जिनेन्द्र' वन्दन करता, श्री हीरा मुनि के चरणों में । सन्तों का शरणा होता है, चारों मंगल शरणों में ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012006
Book TitleMunidwaya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni, Shreechand Surana
PublisherRamesh Jain Sahitya Prakashan Mandir Javra MP
Publication Year1977
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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